ड्रोन

Economy | तकनीक

क्या नए नियम ड्रोन उद्योग की कमर तोड़ने का काम भी कर सकते हैं?

विशेषज्ञों के मुताबिक ड्रोन के मामले में सुरक्षा का ध्यान रखना तो जरूरी है लेकिन नियम इतने कठोर भी नहीं होने चाहिए कि इस उद्योग का भट्टा ही बैठ जाए

अभय शर्मा | 14 August 2020 | फोटो : पिक्सल्स डॉटकॉम

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) ने बीती दो अगस्त को ड्रोन के परिचालन से जुड़े दिशा निर्देश जारी किए हैं. इससे पहले साल 2018 में नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) भी ड्रोन को उड़ाने से जुड़े नियम जारी कर चुका है. बीसीएस के नये नियम ड्रोन्स के रखरखाव, उन्हें चलाने वाले लोगों के प्रशिक्षण एवं उनकी पृष्ठभूमि की जांच के साथ-साथ इनसे संबंधित साइबर सुरक्षा के मानक भी तय करते हैं. बीसीएएस के इन दिशा निर्देशों को लेकर काफी लोग नाराज हैं. जानकारों का कहना है कि इन नियमों से ड्रोन ऑपरेटरों से लेकर ड्रोन के निर्माणकर्ता तक कोई भी खुश नहीं है. ड्रोन बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि अगर ये नियम जारी रहते हैं तो भारत में ड्रोन का बाजार लगभग खत्म हो जाएगा. ड्रोन ऑपरेटरों का कहना है कि बीसीएएस के इन नियमों के तहत ड्रोन का संचालन करना बेहद मुश्किल काम है.

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो के दिशा निर्देश

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के मुताबिक ड्रोन, ड्रोन का संचालन केंद्र (पायलट स्टेशन) और ड्रोन को नियंत्रित किए जाने वाले कम्युनिकेशन लिंक आदि को मिलाकर ‘ड्रोन संचालन प्रणाली’ बनती है. दिशा निर्देशों के अनुसार ड्रोन के मालिक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ड्रोन संचालन प्रणाली हर वक्त सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में रहे. साथ ही संचालन के बाद जिस जगह पर ड्रोन रखे जाएं, उस जगह पर भी सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए. नैनों और माइक्रो ड्रोनों को छोड़कर अन्य सभी ड्रोनों के लिए सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग को कम से कम तीस दिनों तक संभाल कर रखना जरूरी है. नैनो श्रेणी का ड्रोन वह होता है जिसका वजन 250 ग्राम से कम होता है. 250 ग्राम से दो किलोग्राम के बीच के वजन वाला ड्रोन माइक्रो श्रेणी में आता है.

बीसीएएस का कहना है कि ड्रोन संचालन प्रणाली एक तरह से किसी विमान के कॉकपिट जैसी है. इसलिए ड्रोन के मालिक को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि ड्रोन जहां रखा जाए बिलकुल सुरक्षित हो.

दिशा निर्देशों के मुताबिक ड्रोन से जुड़े डेटा, कम्युनिकेशन लिंक और सेवाओं की भी सुरक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि ड्रोन और उसका पायलट स्टेशन. ऐसे में ड्रोन को इस तरह से रखा जाए और इस तरह से उड़ान के लिए तैयार किया जाए कि उसमें छेड़छाड़ को न केवल रोका जा सके, बल्कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे पकड़ा भी जा सके. बीसीएएस का यह भी कहना है कि ड्रोन के मालिक द्वारा यह भरोसा दिलाया जाए कि ड्रोन से संबंधित कम्युनिकेशन लिंक और सेवाओं की हैकिंग और स्पूफिंग नहीं की जा सकती है.

बीसीएएस के दिशा निर्देश में कहा गया है कि ड्रोन के संचालक या मालिक को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसके प्रत्येक स्टाफ को बीसीएएस की ओर से प्रस्तावित एक दिवसीय ऑनलाइन ‘विमानन सुरक्षा जागरुकता प्रशिक्षण’ प्राप्त हो. दिशा निर्देशों में साफ तौर पर यह भी लिखा है कि ड्रोन के पायलट और उससे जुड़े हर एक स्टाफ और यहां तक कि ड्रोन की रखवाली के लिए रखे गए व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच भी तय प्रक्रिया के तहत की जाये.

दिशा निर्देशों के अनुसार ड्रोन के साथ किसी भी तरह की सुरक्षा संबंधी घटना या दुर्घटना होने पर इसकी जानकारी तुरंत स्थानीय पुलिस, बीसीएएस नियंत्रण कक्ष और बीसीएएस के क्षेत्रीय निदेशक को दी जानी चाहिए. नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो की तरफ से साफ़ तौर पर यह भी कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी ड्रोन को तभी उड़ा सकता है, जब उसे स्थानीय प्रशासन और नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) से इसके लिए जरूरी अनुमति मिल गयी हो.

बीसीएएस के दिशा निर्देशों पर सवाल क्यों?

साल 2018 में तत्कालीन नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा था कि ड्रोन का बाजार अरबों डॉलर का है और भारत में इस क्षेत्र का भविष्य काफी बेहतर दिखा रहा है. सिन्हा का कहना था, ‘हमारे विमानन क्षेत्र और भारत के स्टार्टअप उद्योग के लिए यह अच्छा अवसर है, ड्रोन पारिस्थितिकी के लिहाज से भारत वैश्विक लीडर बनने के लिए तैयार है.’

हाल के दिनों में भी ऐसी खबरें आयी हैं कि केंद्र सरकार ड्रोन इंडस्ट्री को प्रोत्साहन देने के लिए नीतियां बना रही है. नीति आयोग के मुताबिक ड्रोन निर्माण के लिए देश को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सरकार ड्रोन उद्योग के लिए एक इनक्यूबेशन फंड बनाने की योजना पर काम कर रही है. एक सरकारी अधिकारी का बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहना था कि ‘नीति आयोग इस फंड की अवधारणा लाया है, जिसका उद्देश्य शैक्षणिक स्तर तथा उद्योग के बीच के अंतर को समाप्त करना होगा, जिससे भारत में ड्रोन निर्माण के पूरे तंत्र को नयी ऊंचाई पर ले जाया जा सके.’

लेकिन, तकनीक से जुड़े जानकार, ड्रोन विशेषज्ञ और विमानन मंत्रालय के कुछ पूर्व अधिकारी बीसीएएस के नए नियमों का हवाला देते हुए सरकार की इस मंशा पर सवाल खड़े करते हैं. ये लोग कहते हैं कि ड्रोन के परिचालन और रखरखाव को लेकर जिस तरह के दिशा निर्देश जारी किए जा रहे हैं उनसे ड्रोन निर्माता कंपनियां हतोत्साहित होकर भारत छोड़ देंगी क्योंकि ऐसे नियमों के बाद लोग ड्रोन खरीदने से ही कतराएंगे.

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ सनत कौल सत्याग्रह से बातचीत में कहते हैं, ‘2018 में जब डीजीसीए (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने पहली बार ड्रोन को लेकर दिशा निर्देश जारी किए थे, तो (नो परमीशन-नो टेक ऑफ  के कांसेप्ट के तहत) ड्रोन में ऐसी चिप लगाने की बात कही गयी जिससे ड्रोन पर (एजेंसी का) कंट्रोल रहेगा. यह चिप तय करेगी कि ड्रोन कब उड़ेगा, कहां जाएगा कितनी दूरी तक उडेगा… ऐसे नियमों ने ड्रोन की लोकल इंडस्ट्री को परेशान कर दिया. आयातक कंपनियां भी डर गयीं कि इन नियमों के साथ भारत में ड्रोन कैसे बेचा जा सकेगा क्योंकि लोकल चिप लगना जरूरी है. इन नियमों से ड्रोन को बनाने वाले और उड़ाने वाले दोनों ही नाराज थे.’ डॉ कौल आगे कहते हैं, ‘डीजीसीए के बाद अब सीबीएएस के दिशा निर्देशों ने तो ड्रोन बनाने और उड़ाने वालों के लिए मुश्किलें ही मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. अगर आप (सरकार) चाहते हैं कि देश में ड्रोन इंडस्ट्री आगे बढे तो उसे डीजीसीए और सीबीएस दोनों के ही दिशा निर्देशों की फिर से समीक्षा करनी पड़ेगी.’

डॉ सनत कौल वर्तमान में इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर एविएशन, एयरोस्पेस एंड ड्रोन्स (आईएफएफएएडी) की भारतीय शाखा के अध्यक्ष हैं. वे ड्रोन इंडस्ट्री के उभार की जरूरत पर बल देते हुए कहते हैं, ‘यूरोप, जापान और अमेरिका में यह इंडस्ट्री तेजी से आगे बढ़ रही है क्योंकि ड्रोन के इस्तेमाल से चीजें आसान हो गयी हैं. शादी और फोटोग्राफ़ी से इतर कृषि और मेडिकल में इससे काम काफी आसान हो गया है… तेल और गैस की सैकड़ों किमी की पाइप लाइन डालने के लिए होने वाले सर्वे में ड्रोन का बड़ा उपयोग सामने आया है, लेकिन यहां (भारत में) जहां तक आंखों से दिखता है, केवल उतनी दूरी तक ही ड्रोन को उड़ाने की इजाजत है… आप ही बताइये, अगर इस तरह के नियमों में छूट नहीं मिलेगी तो यहां यह सब कैसे होगा.’

बीसीएएस ने अपने दिशा निर्देशों में कहा है कि ड्रोन का मालिक यह सुनिश्चित करे कि ड्रोन से संबंधित कम्युनिकेशन लिंक और सेवाओं की हैकिंग और स्पूफिंग नहीं की जा सकती है. एजेंसी के इस निर्देश को तकनीक से जुड़े कई जानकार सही नहीं मानते. इनका कहना है कि किसी सॉफ्टवेयर की हैकिंग और स्पूफ़िंग के लिए उसके यूजर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट आकाश पाण्डेय सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं, ‘किसी सॉफ्टवेयर की हैकिंग, स्पूफ़िंग या डेटा चोरी का काम हैकिंग में एक्सपर्ट हैकर्स करते ही रहते हैं. ऐसे में ड्रोन का यूजर यह गारंटी कैसे दे सकता है कि उसके ड्रोन का डेटा चोरी नहीं हो सकता या उसके जीपीएस सिग्नल को कोई हैक नहीं कर सकता या फिर उसके सॉफ्टवेयर से कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता. हां, अगर यूजर खुद ऐसा करता है तो इसके लिए वह जिम्मेदार है. लेकिन कोई यूजर खुद अपने ड्रोन की हैकिंग और स्पूफ़िंग भला क्यों करेगा.’

डिजिटल तकनीक के जाने-माने विशेषज्ञ जितेन जैन भी कुछ यही बात बताते हैं. इस बारे में एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में वे कहते हैं, ‘अगर यूजर छेड़छाड़ करता है तब तो वह जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन अगर कोई बाहर से किसी सॉफ्टवेयर को टैम्पर करता है तो उसके लिए आप यूजर को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते… हर चीज के लिए यूजर को दोष नहीं दिया जा सकता है. इसके लिए ड्रोन निर्माता कंपनी और सरकारी इंटेलीजेंस एजेंसी की भी जवाबदेही बनती है.’

हाल ही में ड्रोन बनाने वाली चीन की चर्चित कंपनी डीजेआई में डाटा चोरी का मामला सामना आया था. कंपनी पर आरोप लगा कि वह ड्रोन को कंट्रोल करने वाले ऐप से ज्यादा डेटा निकाल रही थी और उसे चीन भेज रही थी. विशेषज्ञों का कहना है कि इस डेटा का इस्तेमाल आगे जाकर गलत उद्देश्य के लिए किया जा सकता है. कंपनी ने भी माना कि वह ज्यादा डेटा निकाल रही थी, लेकिन ऐसा वह केवल हॉवी ड्रोन (नैनो ड्रोन या खिलौना ड्रोन) के साथ ही कर रही थी. तकनीक के जानकार कहते हैं कि इस घटना से यह पता लगता है कि ड्रोन को लेकर उसके यूजर से ज्यादा ड्रोन निर्माता कम्पनी से सवाल किए जाने की जरूररत है.

जितेन जैन सीबीएएस के अन्य दिशा निर्देशों को लेकर भी असहमति जताते हैं. वे कहते हैं, ‘ड्रोन को कैमरों की निगहबानी में रखने की बात समझ से परे है, अगर आप यह सोचते हैं कि कोई ड्रोन को चुरा कर ले जाएगा और कुछ गलत कर देगा तो यह बात एक कार पर भी लागू होती है, ऐसे में सरकार को कार को भी कैमरे की नजर में रखने की बात करनी चाहिए. कैमरे में रखने के बाद भी चोरी हो सकती है… चोरी न हो इसकी जिम्मेदारी यूजर के अलावा पुलिस और सरकार की भी है.’ जितेन आगे कहते हैं, ‘सबकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, आप हर चीज की जिम्मेदारी यूजर के ऊपर ही छोड़ना चाहते हो… इस तरह के दिशा निर्देश व्यवहारिक नहीं लगते.’

कुछ जानकार कहते हैं कि सीबीएएस के दिशा निर्देशों में कहा गया है कि ड्रोन की निगहबानी जिस सीसीटीवी कैमरे से की जा रही है, उसकी रिकॉर्डिंग कम से कम तीस दिनों तक रखी जानी चाहिए. इनके मुताबिक इस तरह से आप यूजर से यह कह रहे हो कि वह एक से डेढ़ लाख रुपए के ड्रोन के लिए पचास हजार रुपए तक का सीसीटीवी सिस्टम खरीदे. इसके बाद ड्रोन को उड़ाने की इजाजत लेने के लिए पुलिस स्टेशन और बाबुओं के चक्कर लगाए. यानी आप ड्रोन के यूजर की हर तरह से मुश्किलें बढ़ा रहे हो. एक तो उस पर सारी जिम्मेदारी डाल रहे हो फिर आर्थिक बोझ भी बढ़ा रहे हो. जानकारों की मानें तो ऐसी पॉलिसी के चलते लोग ड्रोन खरीदने से ही डरेंगे और इसका सीधा खामियाजा ड्रोन इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा.

2018 में आये डीजीसीए के दिशा निर्देश

भारत सरकार ने 2014 में मुंबई में ड्रोन द्वारा पिज्जा की डिलीवरी की घटना के बाद इनकी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद डीजीसीए ने ड्रोन के लिए नियम बनाने शुरू किये. अगस्त 2018 में उसने ड्रोन्स से जुड़े दिशा निर्देश जारी किए. इनमें उनके पायलटों से लेकर उड़ाने वाली जगहों तक के लिए नियम थे.

इन दिशा निर्देशों में कहा गया था कि ड्रोन, ड्रोन के मालिक और उसके पायलट को अपना पंजीकरण डीजीसीए द्वारा बनाए गए पोर्टल – ‘डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म’ पर कराना जरुरी होगा. इसके बाद ड्रोन को यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूआईएन) और उसके ऑपरेटर को यूनीक ऑपरेटर परमिट (यूओपी) दे दिया जाएगा. यूआईएन के लिए एक हजार रुपए और यूओपी के लिए 25 हजार रुपए फ़ीस रखी गयी. यूओपी पांच साल तक मान्य रहता है, उसके बाद दस हजार रुपए देकर उसका नवीनीकरण कराया जा सकता है. डीजीसीए के दिशा निर्देशों में यह भी कहा गया कि ड्रोन के मालिक को हर उड़ान से पहले डीजीसीए से इजाजत लेनी होगी और ऑनलाइन पोर्टल पर यह अनुमति स्वचालित तरीके से मिल जायेगी. दिशा निर्देशों के मुताबिक जो लोग ड्रोन को उड़ाना चाहते हैं उनकी उम्र 18 साल से ऊपर होनी चाहिए और उनका 10वीं कक्षा में अंग्रेजी विषय में पास होना अनिवार्य है. साथ ही ऐसे लोगों को ड्रोन उड़ाने से पहले डीजीसीए द्वारा जारी दिशा निर्देशों के तहत प्रशिक्षण लेना होगा.

डीजीसीए ने ड्रोन को कुल पांच श्रेणियों में बांटा. इनके तहत 250 ग्राम से कम वजन के ड्रोन को नैनो, 250 ग्राम से लेकर 2 किलो तक के ड्रोन को माइक्रो, दो से 25 किलो तक वजन के ड्रोन को स्मॉल, 25 से 150 किलो तक वजन वाले ड्रोन को मीडियम और 150 किलो से अधिक वजनी ड्रोन को लार्ज ड्रोन की श्रेणी में रखा गया. दिशा निर्देशों के तहत नैनो ड्रोन यानी खिलौना ड्रोन को 50 फीट की ऊंचाई तक उड़ाया जा सकता है और इसके लिए किसी प्रकार की अनुमति नहीं लेनी होगी. अन्य ड्रोन को उड़ाने के लिए डीजीसीए से मंजूरी लेना जरूरी होगा. मंजूरी मिलने के बाद ड्रोन को 400 फीट की ऊंचाई तक और जहां तक आंखों से दिखे, उतनी दूरी तक उड़ाया जा सकेगा. किसी भी ड्रोन को केवल दिन के समय ही उड़ाया जाएगा. ड्रोन को व्यवसायिक कार्यों जैसे पिज्जा डिलीवरी आदि के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. हालांकि, डीजीसीए के नियमों के मुताबिक कृषि कार्यों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

डीजीसीए के दिशा निर्देशों में यह भी कहा गया कि जिन लोगों के पास माइक्रो ड्रोन है और वे इसे 200 फीट से कम ऊंचाई पर (शादी या किसी पार्टी में) उड़ाना चाहते हैं, तो इसके लिए उन्हें स्थानीय पुलिस को 24 घंटे पहले लिखित सूचना देनी होगी. डीजीसीए ने इसी के चलते हर जिले के पुलिस मुख्यालय को डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म से जोड़ा है.

डीजीसीए ने ड्रोन के एयर स्पेस को तीन भागों – रेड जोन, येलो जोन और ग्रीन जोन में बांटा है. रेड जोन में ड्रोन को उड़ाने की अनुमति नहीं होगी और इस जोन में एयरपोर्ट, तटीय सीमा, अंतरराष्ट्रीय सीमा, सैन्य इलाके, सभी राज्यों के सचिवालय और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाके शामिल हैं. येलो जोन में ड्रोन को तय सीमा तक उड़ाने की अनुमति होगी. जबकि ग्रीन जोन में ड्रोन के लिए स्वतः अनुमति मिल जाएगी. बीते मार्च में सरकार ने देश भर में करीब 80 वर्ग किमी के छह ग्रीन जोन बनाये हैं. ये जोन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में स्थित हैं.

अगस्त 2018 में आये डीजीसीए के इन दिशा निर्देशों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति डीजीसीए के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उसे आईपीसी की धारा 287, 336, 337, 338 के तहत जुर्माना व सजा दी जायेगी. साथ ही उसका यूआईएन और यूएओपी भी निलंबित व रद्द किया जा सकता है.

इन नियमों के बाद अब बीसीएएस के दिशा निर्देशों ने ड्रोन मालिकों और उन्हें बनाने वालों की मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं.

लेकिन, सुरक्षा भी तो जरूरी है!

बीते सालों में दुनिया भर में ड्रोन के जरिये कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया है. आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इराक और सीरिया में अपने कई हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया था. भारत के पंजाब और कश्मीर में आतंकियों द्वारा ड्रोन के जरिये रेकी और हथियार उतारने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इसके अलावा बीते साल दुनिया की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली इमारत अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास – व्हाइट हाउस – के ऊपर भी एक व्यक्ति ने काफी देर तक ड्रोन को घुमाया और फिर उसके लॉन में उसे उतार दिया. बीते साल ही जापान में एक वैज्ञानिक ने सरकार द्वारा फिर से परमाणु रिएक्टर खोले जाने पर नाराजगी जाहिर करते हुए ड्रोन के जरिये रेडियो एक्टिव सैंड (पदार्थ) को जापानी प्रधानमंत्री के घर की छत पर उतार दिया. जापान की सुरक्षा एजेंसियों को इसका पता हफ्ते भर बाद लगा.

यानी, अगर देखा जाए तो ड्रोन एक ऐसा खतरनाक मंजर पेश कर सकता है जिसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती है. ऐसी घटनाओं को देखते हुए ड्रोन को लेकर चौकसी बरतना बेहद जरूरी है. जानकार भी कहते हैं कि ड्रोन के मामले में सुरक्षा का ध्यान रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन इसके चलते नियम इतने भी कठोर न हों जाएं जिनसे ड्रोन इंडस्ट्री बिल्कुल भी आगे न बढ़ सके. इन लोगों के मुताबिक सरकार को दिशा निर्देश बनाते समय सुरक्षा और इंडस्ट्री दोनों का ही ध्यान रखना चाहिए, जिस तरह से अन्य देशों में रखा गया है.

डॉ सनत कौल सत्याग्रह से हुई बातचीत के दौरान कहते हैं, ‘ड्रोन का गलत इस्तेमाल न हो, शायद इस वजह से इस तरह के नियम बनाये गए हैं. लेकिन तमाम नियमों के बाद भी आप किसी चीज के गलत इस्तेमाल को नहीं रोक सकते. ऐसे नियमों के बाद भी कोई सूटकेस में ड्रोन लाकर गड़बड़ कर सकता है, आप उसे कैसे रोकोगे… इसके लिए तो आपको इंटेलिजेंस नेटवर्क को बेहतर बनाने की जरूरत है, जो गलत तरह की चीजों को ट्रैक करे… ये (सीबीएएस की) पॉलिसी समझ से परे है क्योंकि इससे आप लीगल चीज को बंद कर रहे हैं.’

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