डिजिटल इंडिया सबसे पहले कैश लेता है, फिर गूगल पे जैसे साधनों की ओर देखता है और इन दोनों की अनुपस्थिति में ही क्रेडिट कार्ड के बारे में सोचता है
Anjali Mishra | 11 February 2021 | फोटो: पिक्साबे
सत्याग्रह के नियमित पाठक यह जानते हैं कि पोर्टल पिछले दिनों कुछ समय के अवकाश पर था. इस दौरान इसमें काम करने वाले कई साथी हिंदुस्तान के अलग-अलग शहरों में या तो यूं ही घूम रहे थे या घूमते हुए नई कहानियां तलाश रहे थे. इस सफर में हममें से ज्यादातर के साथ एक नहीं बल्कि बार-बार ऐसा हुआ कि किसी सामान या सेवा की कीमत अदा करने के लिए, क्रेडिट कार्ड के बजाय हमसे कैश भुगतान करने के लिए कहा गया. एक निजी अनुभव को उदाहरण की तरह इस्तेमाल करें तो इस आलेख की लेखिका ने जब दक्षिण गोवा के कोल्वा बीच पर स्थित एक व्यस्त रेस्टरॉन्ट में भरपेट खाना खाने के बाद बिल पेमेंट के लिए कार्ड बढ़ाया तो रेस्तरां के मैनेजर देवराज शेट्टी ने स्वाइप मशीन इस्तेमाल करने के बजाय कैश पेमेंट की मांग की. इसमें असमर्थता जताने पर वे थोड़ा और आग्रह के साथ यह बात दोहराते दिखे.
इसका कारण पूछने पर शेट्टी का कहना था कि ‘क्रेडिट कार्ड के साथ अक्सर ऐसा होता है कि उस समय तो आपको मैसेज आ जाता है कि आपके पैसे कट गए हैं लेकिन वो हमारे अकाउंट में नहीं आए होते हैं. मैसेज देखने के बाद कस्टमर तो चलता बनता है, हम अटक जाते हैं. कई बार ऐसा हो चुका है जब बाद में ट्रांजैक्शन फेल हो गया, कस्टमर को वो पैसे वापस चले गए और हमको चूना लग गया.’ देवराज शेट्टी रेस्तरां में एचडीएफसी बैंक की कार्ड स्वाइप मशीन का इस्तेमाल कर रहे थे. जाहिर है उनका बैंक भी वही था जो देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय बैंकों में से एक है. जब हमने उनसे पूछा कि आपने इस बारे में अपने बैंक से शिकायत नहीं की तो उनका कहना था कि ‘बैंक वाला क्या करेगा! एकाध बार ब्रांच में पूछा तो उन्होंने बोल दिया कि नेटवर्क नहीं रहा होगा. बात सही है, कई बार नेटवर्क भी नहीं होता है.’ यहां पर यह भी चौंकाने वाली बात रही कि काफी लंबी बातचीत के बाद भी क्रेडिट कार्ड से पेमेंट के लिए राज़ी न होने वाले शेट्टी गूगल-पे से पैसे लेने के लिए तुरंत तैयार हो गए.
गोवा जैसे बेहद लोकप्रिय पर्यटन स्थल में, जहां देश क्या दुनिया भर से लोग आते हैं, इंटरनेट कनेक्टिविटी न होने और डिजिटल पेमेंट न स्वीकारे जाने के कई वाक़ये हमारे साथ हुए. ऐसा सिर्फ रेस्तरां या छोटे दुकानदारों के साथ ही नहीं थ्री-फोर स्टार होटल्स के साथ भी देखने को मिला. सत्याग्रह में हमारी सहयोगी नीतू कुमार ने जब फोन पर गोवा के अगोंडा बीच पर स्थित एक नामी होटल बुक करने की कोशिश की तो उनसे साफ तौर पर कहा गया कि अगर वे गूगल-पे या कैश भुगतान कर सकती हैं तो ही यह बुकिंग ली जाएगी. ज़ाहिर है यह शर्त न मानने पर उन्हें किसी दूसरे होटल का रुख करना पड़ा.
अगोंडा बीच पर एक गेस्ट हाउस और रेस्तरां चलाने वाले ऐबी फर्नांडिस एक अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि ‘ऑनलाइन बुकिंग्स मतलब मेक माय ट्रिप या यात्रा डॉट कॉम वगैरह से मिलने वाली बुकिंग छोड़ दें तो हम ज्यादातर कैश या गूगल-पे से ही पेमेंट लेते हैं. क्रेडिट कार्ड से लेने पर कई बार ऐसा हुआ कि पेमेंट अटक गया. पिछले दिनों तो कई दिनों के लिए एचडीएफसी बैंक का सर्वर बिल्कुल ही काम नहीं कर रहा था.’ यह पूछने पर कि सर्वर फेल होने या इंटरनेट कनेक्टिविटी ना होने की सूरत में तो गूगल-पे पर भी ट्रांजैक्शन हो पाना संभव नही हैं, जवाब में ऐबी मुस्कुराते हुए कहते हैं कि ‘हां, ऐसा भी हो जाता है. इसीलिए तो हम कैश पेमेंट चाहते हैं!’ आगे की बातचीत में वे इस साल कोरोना वायरस के कारण पड़ी मार का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘वैसे, मैं आपको ईमानदारी की एक बात बताता हूं, ऑनलाइन पेमेंट नहीं लेने से हमें टैक्स में थोड़ा फायदा हो जाता है लेकिन कई बार कस्टमर को बहुत समझाना पड़ता है. इस साल वैसे ही आधा सीजन खत्म हो चुका है और अब जाकर कुछ कमाई होनी शुरू हुई है तो सब कुछ एकदम सही-सही रख पाना हमारे लिए पॉसिबल भी नहीं है. ऐसा हुआ तो हम लागत भी नहीं निकाल पाएंगे अपनी. दूसरी बात ये है कि हम अगर चाहें कि सबकुछ ऑनलाइन ही रखें तो मेन्टीनेंस और जीएसटी के इतने झंझट हैं कि कस्टमर्स से बात करना ही आसान लगने लगता है. फिर भी मैं कहूंगा कि क्रेडिट कार्ड से पेमेंट लेने में सबसे बड़ी दिक्कत पेमेंट के अटक जाने की है. कैश ठीक है नहीं तो फिर गूगल-पे!’
लेकिन क्रेडिट कार्ड्स के लिए अस्वीकार्यता का यह भाव सिर्फ गोवा या होटल इंडस्ट्री में ही नहीं है. लखनऊ के महानगर इलाके में एक ब्यूटी सलून चलाने वाले मोहित रस्तोगी भी इससे परहेज करते दिखते हैं और बताते हैं कि ‘क्रेडिट कार्ड से पेमेंट लेने के लिए हमें पहले स्वाइप मशीन लेनी होगी, बैंक उसके चार्जेज़ लेता है. हर ट्रांजैक्शन पर हमें प्रोसेसिंग फीस भी देनी होती है. इसके बाद जो भी हमारी इनकम होगी उस पर 18 परसेंट जीएसटी लग जाता है. अब अगर मान लीजिए आपका बिल 500 रुपए का है तो 90 रुपए तो टैक्स के हो गए. लक्मे या लुक्स जैसे बड़े सलून में तो कस्टमर 500 रुपए के बिल पर 590 का पेमेंट करके चला आएगा लेकिन हम अगर ऐसा कर दें तो वह दोबारा आएगा ही नहीं. इसलिए झंझट से बच जाएं और अपनी लागत निकलती रह सके, इसलिए हम कैश पेमेंट लेना ही प्रेफर करते हैं. अगर वो नहीं हो पा रहा है तो गूगल-पे, पेटीएम या फोन-पे ठीक है क्योंकि उसमें तुरंत आपको पेमेंट का एसएमएस मिल जाता है, क्रेडिट कार्ड से हुई पेमेंट आने में कई बार कई दिन भी लग जाते हैं.’
इन तीनों उदाहरणों पर गौर करें तो यह बात बार-बार दोहराई गई है कि क्रेडिट कार्ड से होने वाली पेमेंट अक्सर अटक जाती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर नेटवर्क या इंटरनेट सुविधा में दिक्कत होने के कारण ही डिजिटल पेमेंट में मुश्किल आ रही है तो फिर गूगल-पे के साथ ऐसा क्यों नहीं हो रहा है. या फिर, कोई और वजह है जो छोटे और मझोले व्यापारियों के लिए गूगल-पे को अधिक सुविधाजनक बना देती है. इन सवालों के जवाब देते हुए कानपुर में रहने वाले बैंकिंग प्रोफेशनल संकेत मिश्रा कहते हैं कि ‘अगर कहीं पर गूगल-पे के जरिए ट्रांजैक्शन्स हो रहे हैं तो फिर क्रेडिट कार्ट से क्यों नहीं होगा, यह समझ पाना मुश्किल लगता है. जहां तक ट्रांजैक्शन पूरा न होने या अमाउंट रिवर्ट होने की बात है. अगर ऐसा होता भी है तो हजार में एकाध बार ही ऐसा होने के चांसेज हैं, हर ट्रांजैक्शन में ऐसा होने लगे तो क्रेडिट कार्ड इंडस्ट्री बैठ जाएगी. होता यह है कि आम तौर पर बैंक स्वाइपिंग मशीन चालू खातों के लिए जारी करते हैं और क्रेडिट कार्ड से पेमेंट लेने का मतलब है कि वह पैसा बिजनेस अकाउंट में जा रहा है यानी वह पैसा टैक्सेबल हो गया है. ऐसे में यह हो सकता है कि जो लोग अपने निजी खातों में पेमेंट लेना चाहते हैं, टैक्स बचाना चाहते हैं तो स्वाभाविक है कि कैश या गूगल-पे के जरिए ही पेमेंट चाहेंगे.’
नोएडा में कंसल्टेंसी फर्म चलाने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट, विपिन गुप्ता भी कुछ इसी तरह की बात कहते हैं कि ‘गूगल-पे के साथ यह सुविधा है कि आप हर दिन नए नंबर पर पेमेंट ले सकते है और यह पर्सनल अकाउंट भी हो सकता है. अलग-अलग और पर्सनल अकाउंट्स में पेमेंट लेने से आपका पैसा भी टैक्सेबल नहीं होता और आपको कोई चार्ज भी नहीं देना पड़ता है. इसके उलट क्रेडिट कार्ड्स के मामले में बैंक हर ट्रांजैक्शन पर चार्ज लेते हैं जो आम तौर पर दो या तीन परसेंट होता है. यह कितना होगा यह उस कार्ड्स पर भी निर्भर करता है जिससे पेमेंट किया जा रहा है. दूसरी ज़रूरी बात यह है कि वेंडर को हर दिन कार्ड सेटलमेंट रिपोर्ट निकालनी होती है जब तक कार्ड सेटलमेंट रिपोर्ट नहीं निकालेंगे तब तक उनका पैसा बैंक में नहीं आएगा. इसमें अगर कभी लेट हो जाए या कोई और गड़बड़ हो तो कई बार पेमेंट आने में दो से तीन दिन भी लग जाते हैं.’
विपिन अपनी बातचीत में जिस कार्ड सेटलमेंट रिपोर्ट का जिक्र करते हैं, वह भी असल में क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शन का ही हिस्सा है. संक्षेप में समझें तो क्रेडिट कार्ड से होने वाले ट्रांजैक्शन के दो हिस्से होते हैं जिनमें से पहला है- ऑथराइजेशन और दूसरा है – क्लीयरिंग और सेटलमेंट. जब कोई कार्ड स्वाइप किया जाता है तो दुकानदार (मर्चेंट) अपने बैंक में कार्ड और ट्रांजैक्शन की जानकारी देकर ऑथराइजेशन मांगता है. यह ऑथराइजेशन मिलने के बाद उसे एक रिसीट मिलती है जिसे वह 24 घंटे के भीतर अपने बैंक में जमा करवाता है. इसे कार्ड सैटलमेंट (बैचिंग) करना कहा जाता है जिसके बाद ही उसके अकाउंट में पैसे क्रेडिट होते हैं. यानी ग्राहक के क्रेडिट कार्ट से पैसे कटने का संदेश आने और स्वाइप मशीन से ऑथराइजेश की पर्ची निकलने के कई घंटों बाद तक भी न ग्राहक के पैसे कटे होते हैं और न वे दुकानदार तक पहुंचे होते हैं. यह प्रक्रिया तब पूरी होती है जब दुकानदार कार्ड सेटलमेंट रिपोर्ट अपने बैंक में जमा करता है. कई बार क्रेडिट कार्ड गेटवे में दिक्कत होने के चलते इसमें कुछ दिनों का समय भी लग जाता है. इसके अलावा, कुछ बैंक समय पर सेटलमेंट ना करने पर अतिरिक्त चार्ज भी लेते हैं.
इन तमाम उदाहरणों पर गौर करने पर क्रेडिट कार्ड नहीं लिए जाने के पीछे जो मुख्य कारण समझ आते हैं, उनमें से पहला तो यही है कि लोग आयकर से बचने के लिए इन्कम कम दिखाना चाहते हैं और हर महीने जीएसटी फाइल करने और इससे जुड़े दूसरे झंझटों से बचना चाहते हैं. दूसरे नंबर पर क्रेडिट कार्ड से भुगतान लेने में लगने वाला अतिरिक्त चार्ज और ज्यादा समय भी लोगों के लिए गूगल-पे बेहतर विकल्प बना देता है. लेकिन इनके साथ ही, कुछ मानवीय और व्यावहारिक समस्याएं भी हैं जिसके चलते लोग क्रेडिट कार्ड या ऑनलाइन पेमेंट से बचते दिखते हैं और दुर्भाग्य से कोरोना महामारी से बिगड़े आर्थिक हालात ने इन्हें और गंभीर बना दिया है. इन वजहों से अब ऑनलाइन ट्रांजैक्शन से परहेज करने वालों में कैब ड्राइवर्स भी शामिल हो चुके हैं.
दिल्ली-एनसीआर या मुंबई जैसे महानगरों में रहने वाले और ओला-ऊबर का इस्तेमाल करने वाले तमाम लोग यह किस्सा बताते मिल जाएंगे कि कैसे कैब ड्राइवर ने उन्हें फोन करके पूछा कि ‘पेमेंट कैश है या ऑनलाइन’ और जवाब में ऑनलाइन सुनने के बाद राइड कैंसल कर दी. बैंगलोर में रहने वाले ओला ड्राइवर सुरेश सत्याग्रह से बातचीत में बताते हैं कि ‘पहले हमें तब दिक्कत होती थी जब सारी राइड्स ऑनलाइन पेमेंट्स वाली मिलती थीं. ऐसे में हाथ में कुछ कैश ही नहीं आ पाता था. अब जब से कोरोना वायरस की मार हुई तो अक्सर ऐसा होता है कि 15-20 दिनों तक हमारी पेमेंट हमारे अकाउंट तक ही नहीं पहुंच पाती है. इसीलिए हम कई बार कस्टमर से कहते हैं कि आप एप पर कैश पेमेंट का विकल्प चुनिए और हमें हमारे गूगल-पे अकाउंट पर पेमेंट कर दीजिए.’ सुरेश से हुई इस बातचीत का दिलचस्प पहलू यह है भी कि वे बहुत विनम्रता से बात करते हैं, बहुत आग्रह से चाय पिलाने का ऑफर भी देते हैं लेकिन बहुत मनाने पर भी ऑनलाइन पेमेंट लेने कि लिए राज़ी नहीं होते. मीठे स्वभाव के बावजूद अपनी बात पर उनका इस तरह अड़े रहना उनकी समस्या के वास्तविक और गंभीर होने का यकीन दिलाता है.
ग्रेटर नोएडा में रहने वाले, ऊबर ड्राइवर सईद मोहम्मद भी बिजनेस पर कोरोना का असर होने की बात कहते हैं कि ‘कोरोना से पहले ऊबर के साथ यह था कि ग्राहक पेमेंट करे या ना करे, राइड खत्म होते ही हमें हमारे पैसे मिल जाते थे. लेकिन अब जब तक ग्राहक पे नहीं करता है तब तक हमें पैसे क्रेडिट नहीं होते हैं. दूसरा यह भी है कि अब एक तो गिनती की ही राइड्स मिलती हैं और ऊबर का कट भी बढ़ गया है तो न पैसा हाथ में होता है और न अकाउंट में. इसलिए कई बार मजबूरी में हमें ग्राहक से कहना पड़ता है कि वो कैश पेमेंट ही कर दें.’
इन तमाम उदाहरणों से जो बात समझ आती है वह यह कि एक आम भारतीय को डिजिटल पेमेंट्स का वह माध्यम चाहिए जिस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सके. यानी, उस पर कुछ ही सेकंड्स में भुगतान मिल जाए और उसे तुरंत खर्चा भी जा सके. लेकिन क्या गूगल-पे इस उम्मीद और भरोसे पर खरा उतर सकता है. इस पर बात करते हुए बैंकर संकेत मिश्रा कहते हैं कि ‘लोगों को भले ही अभी गूगल-पे आसान लग रहा है लेकिन वह भरोसेमंद नहीं है. आप ही सोचिए अगर बैंक अकाउंट में गड़बड़ी हुई तो आप तुरंत पास की ब्रांच में जा सकते हैं. गूगल-पे के लिए कहां जाएंगे. इसके अलावा, अगर बैंक प्रोसेसिंग फीस ले रहे हैं तो क्या गूगल हमेशा ही फ्री रहने वाला है? शायद नहीं. पेटीएम भी अब वॉलेट में पैसे रखने पर चार्जेज लेता है. आने वाले टाइम में गूगल भी लेगा या फिर हो सकता है हमें किसी और तरह इसकी कीमत अदा करनी पड़े.’
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