अमेज़न बनाम फ्लिपकार्ट

अर्थ जगत | कारोवॉर

अमेज़न बनाम फ्लिपकार्ट : जंग जिसमें हर रंग है

किताबों की बिक्री से शुरू हुई ये दोनों कंपनियां भारतीय बाजार में सबसे आगे रहने के लिए जी-जान एक किए हुए हैं

अनुराग भारद्वाज | 07 मार्च 2018

बहुत पुरानी बात नहीं है. 2014 में फ्लिपकार्ट ने मिन्त्रा को 2000 करोड़ रु में ख़रीद लिया था. बताते हैं कि इसके बाद बेंगलुरु के होटल में फ्लिपकार्ट के सचिन, बिन्नी और मुकेश बंसल मिन्त्रा की टीम के साथ के बैठकर भविष्य की रणनीति तैयार कर रहे थे. सचिन बंसल कुछ आंकड़ों को लेकर बहुत उत्साहित थे और बैठक में मौजूद लोगों को आने वाले समय की चाल समझा रहे थे. सचिन ने कहा कि ऑनलाइन सेल्स का 40 फीसदी हिस्सा स्मार्टफोन के ज़रिये अंजाम दिया जा रहा है. उनका यह भी कहना था कि आम स्मार्टफोन धारक अमूमन अपने फ़ोन में पांच मोबाइल एप रखता ही है – फेसबुक, यूसी ब्राउज़र, हॉटस्टार और आख़िरी एक रिटेल एप्लीकेशन जिससे वह अपनी ख़रीददारी करता है. उन्होंने आगे कहा कि यह पांचवां एप या तो अमेज़न का होगा या फ्लिपकार्ट का. उनकी मंशा थी कि यह अमेज़न नहीं होना चाहिए. बाक़ी फिर इतिहास है.

ऑनलाइन रीटेल बाज़ार की जंग हिंदुस्तान में फ्लिपकार्ट बनाम अमेज़न की रस्साकशी के लिए जानी जाती है. इसमें तकनीक सबसे बड़ा योगदान दे रही है. यह ग्राहकों को समझने की एक असाधारण कोशिश भी है. आइये, देखते हैं कि दोनों कंपनियों के बीच में क्या-क्या हुआ और कौन भविष्य में बाज़ी मार सकता है?

शुरुआती इतिहास

जेफ़ बेजोस ने पांच जुलाई 1994 को वाशिंगटन में अमेज़न की स्थापना की थी. इसकी शुरुआत एक ऑनलाइन बुकस्टोर के तहत हुई थी. बाद में कंपनी मोबाइल फोन से लेकर ऑनलाइन वीडियो तक सब कुछ बेचने लगी. टर्नओवर और बाजार पूंजीकरण के हिसाब से यह अलीबाबा के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ऑनलाइन कंपनी है.

इसी अमेज़न में काम करने वाले आईआईटी के दो स्नातकों सचिन और बिन्नी बंसल ने अक्टूबर, 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना की. इसका भी शुरुआती काम अमेज़न की तरह ऑनलाइन किताबें बेचने का ही था. आम धारणा के विपरीत सचिन और बिन्नी रिश्तेदार नहीं हैं. फ्लिपकार्ट तेजी से बढ़ी और अमेज़न के अक्टूबर, 2012 में हिंदुस्तान में प्रवेश के पहले वह भारतीय ऑनलाइन बाज़ार में सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी.

जब अमेज़न यहां आ रही थी तो ज़ाहिर है कि सचिन और बिन्नी बंसल की नींदें उड़ गयीं थीं क्योंकि फ्लिपकार्ट अमेज़न का भारतीय संस्करण ही था. जिस बैठक का ज़िक्र ऊपर किया गया है, वह अमेज़न को मात देने के लिए ही रखी गयी थी. सचिन जानते थे कि अमेज़न को चीनी बाज़ार में अलीबाबा ने मात दी है. वे इस इतिहास को भारत में भी दोहराना चाहते थे. इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे. सबसे पहले शुरुआत हुई दुनिया के सबसे चतुर दिमागों को अपने साथ मिलाने से.

गूगल और अन्य कंपनियों के उच्च अधिकारी उठाये गए

बंसल मित्र समझ चुके थे कि आने वाले में समय में तकनीक इंसानों की ख़रीदारी पैटर्न पर असर डालेगी. इसके मद्देनज़र उन्हें टेक्नॉलॉजी के दिग्गज चाहिए थे. पीयूष रंजन गूगल के वाइस प्रेसीडेंट थे और कंपनी के स्तंभ माने जाते थे. उन्हें फ्लिपकार्ट ने चीफ टेक्नॉलॉजी ऑफिसर की पोजीशन पर नियुक्त किया. ठीक इसी प्रकार गूगल के ही पुनीत सोनी को चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर के तौर पर लाया गया.

अमेज़न भी पीछे नहीं थी. जेफ़ बेजोस ने अपने सबसे विश्वस्त कर्मचारी अमित अग्रवाल को हिंदुस्तान भेजकर इनसे टक्कर लेने की तैयारी की थी. जहां फ्लिपकार्ट मोबाइल एप्लीकेशन पर ज़ोर देने की रणनीति अपना रही थी, वहीं अमेज़न अमेरिकी बाज़ारों के आधार पर डेस्कटॉप और लैपटॉप के ज़रिये ग्राहकों को खरीदारी के लिए उत्साहित कर रही थी. आंकड़ों के मुताबिक़ अमेरिकी 70 फीसदी खरीदारी बड़ी स्क्रीन-यानी डेस्कटॉप और लैपटॉप से कर रहे थे.

अमेज़न ने विज्ञापन पर ज़बरदस्त पैसा ख़र्च किया, फ्लिपकार्ट ने अपने ‘एप’ पर

चीन में मिले सबक को ध्यान में रखकर अमेज़न ने भारत के लिए लगभग 12,500 करोड़ रुपये का एडवरटाइजिंग बजट रखा. और 2014 के आम चुनावों में जब देश भर के लोग ऑनलाइन चुनाव परिणाम खंगाल रहे थे, तब लगभग हर वेबसाइट पर अमेज़न के विज्ञापन दौड़ रहे थे. उस दिन अमेज़न ने अपने एक महीने का विज्ञापन बजट एक दिन में ख़र्च कर दिया था. फ्लिपकार्ट हैरत में पड़ गयी थी क्योंकि इसकी उम्मीद तो किसी को भी नहीं थी और उसकी 7 साल की बढ़त को एकदम से ख़तरा उत्पन्न हो गया था. तब फ्लिपकार्ट ने ब्राउज़र पर आने वाले ट्रैफिक की परवाह न करते हुए अपने ‘एप’ के इस्तेमाल को बढाने अपनी पर पूरी ताक़त झोंक दी थी.

विक्रेताओं को लुभाने के तरीक़े

दोनों कंपनियां तकनीक की लड़ाई लड़ रही थीं. ग्राहकों को लुभाने के नए नए तरीके ईजाद किये जा रहे थे. तभी इन कंपनियों को महसूस हुआ कि इस पूरे खेल में एक सबसे अहम कड़ी है सेलर यानी विक्रेता. दोनों ने अपनी रणनीति में अामूलचूल बदलाव कर दिए. फ्लिपकार्ट ने विक्रेताओं को ट्रेनिंग प्रोग्रामों में बुलाया, रजिस्ट्रेशन पर डिस्काउंट दिए. वहीं अमेज़न ने यूट्यूब पर ‘अमेज़न सेलर्स यूनिवर्सिटी’ नाम का एक वीडियो जारी किया जिससे विक्रेता उसे देखकर अमेज़न के प्लेटफार्म पर अपने उत्पाद बेच सकें.

फ्लिपकार्ट ने ‘कारीगर के द्वार’ नाम का प्रोग्राम लांच किया और कई लघु उद्योग संस्थाओं से संपर्क साधकर विक्रेताओं को लुभाया. आज दोनों कंपनियों के पास तकरीबन एक लाख से ज़्यादा रीटेलर्स हैं जो सुई से लेकर कार तक बेच रहे हैं.

फेस्टिवल ऑफर्स की शुरुआत

पिछले साल दिवाली से कुछ पहले फ्लिपकार्ट ने अमेज़न की ताक़त को भांपकर फेस्टिवल ऑफर्स की शुरुआत की. आंकड़ों के मुताबिक़ फ्लिपकार्ट ने उन दिनों में लगभग डेढ़ अरब डॉलर करोड़ का व्यवसाय किया. उन दिनों ग्राहकों को भारी डिस्काउंट दिए गए और इसमें एप्पल और अन्य कंपनियों के मोबाइल फ़ोन की ख़रीदारी का बहुत बड़ा हिस्सा था. हालांकि, टीवी से लेकर वाशिंग मशीनें भी बेची गईं.

अमेज़न ने भी इन्हीं दिनों डिस्काउंट सेल शुरू. की पर चूंकि फ्लिपकार्ट ने पहले इसे लांच कर दिया था तो उसने बाज़ी मार ली. आंकड़ों के मुताबिक़ फ्लिपकार्ट और उसकी सहयोगी कंपनियों ने इन दिनों में लगभग कुल व्यापार का 58 फीसदी हिस्सा अपने नाम किया. वहीं अमेज़न के हिस्से में 27 प्रतिशत व्यापार आया.

अधिग्रहण की कवायद

अमेज़न के भारतीय बाज़ारों में आने की ख़बर पर बंसल मित्रों ने कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया दी थी जैसी बजाज मोटर्स के राहुल बजाज ने 1991 में भारतीय बाज़ार विदेशी माल के लिए खुलने पर दी थी. न तब राहुल बजाज की सुनी गयी, और न अब फ्लिपकार्ट के मालिकों की बात पर ध्यान दिया गया. बंसल मित्र समझ गए कि रोने-धोने से कुछ नहीं होगा. अपने आकार को बढ़ाने के लिए उन्होंने कई कंपनियों का अधिग्रहण किया. 2014 के बाद फ्लिपकार्ट ने ‘मिंत्रा’, ‘फ़ोनपे’, ‘जबॉन्ग’ जैसी कंपनियां ख़रीद डालीं. 2017 में उसने स्नैपडील को 5700 करोड़ रु में ख़रीदने की पेशकश तक कर डाली जो बाद में नाकामयाब रही. 2014 के पहले, फ्लिपकार्ट ने ‘वी-रीड’, ‘माइम 360’, ‘चकपक.कॉम’ जैसी कंपनियों को अपनी जेब में कर लिया था.

फ्लिपकार्ट की मुश्किलें बढ़ीं

आख़िर अमेज़न से टक्कर लेना कोई मामूली बात तो नहीं है. एक समय ऐसा भी आया जब फ्लिपकार्ट कुछ मुश्किलों में घिर गयी. उसके द्वारा लाये हुए सभी बड़े अधिकारियों जैसे पीयूष रंजन, पुनीत सोनी आदि ने कंपनी छोड़ दी. वहीं अमेज़न ने उस पर बराबर हमले किये. पिछले साल अगस्त चर्चित निवेशक सॉफ्ट बैंक ने फ्लिटकार्ट में लगभग ढाई अरब डॉलर का निवेश किया है. इसने कंपनी में नयी जान फूंक दी है.

आख़िर दोनों कंपनियां कहां ठहरती हैं?

एक बड़ी कंपनी द्वारा विभिन्न शहरों में कराये गए सर्वे में कुछ आश्चर्यजनक परिणाम सामने आये. अपनी लगातार कोशिशों की वजह से फ्लिपकार्ट देश की सबसे विश्वसनीय ऑनलाइन कंपनी बनकर उभरी तो वहीं अमेज़न पर लोगों का अनुभव बेहतर रहा. मेट्रो शहरों में दोनों कंपनियां एक दूसरे को कड़ी टक्कर देती दिख रही हैं तो छोटे शहरों में फ्लिपकार्ट आगे नज़र आती है. वित्तीय आंकड़ों को देखें तो इनमें फिलहाल तो फ्लिपकार्ट ही आगे नज़र आती है.

आगे क्या होने वाला है?

यूं तो जेफ़ बेज़ोस दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति कहे जाते हैं और उनकी कंपनी अमेज़न के पास बेशुमार ताक़त भी है. अमेज़न अपने आप को एक ऑनलाइन रीटेल कंपनी न कहकर दुनिया की सबसे बड़ी डाटा सेंटर कंपनी कहलाना पसंद करती है. वहीं फ्लिपकार्ट के सचिन, बिन्नी और मुकेश बंसल फ्लिपकार्ट को इंटरनेट के सर्च इंजन का सबसे चहेता बनाना चाहते हैं. उनके मुताबिक वे फ्लिपकार्ट को देश की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेल कंपनी कहलाना पसंद करेंगे. अमेज़न के पास जहां दुनिया में ऑनलाइन बेचने का तजुर्बा है, तो फ्लिपकार्ट की ताक़त है भारतीय बाज़ार की उसकी समझ.

आने वाले समय में ऑनलाइन बाज़ार और बढ़ने वाला है. ऐसे में दोनों ही कंपनियां तकनीक और ग्राहकों की समझ को लेकर आगे बढ़ेंगी. कौन जीतेगा, यह कहना मुश्किल है. पर अभी तो फ्लिपकार्ट ही आगे नज़र आती है और नज़र आता है ग्राहकों के लिए ख़रीदारी के नए-नए आयामों के स्थापित होना. एक साक्षात्कार में पीयुष रंजन कहते हैं, ‘हमें ये समझना होगा कि हम जो कर रहे हैं क्या वो ग्राहकों के लिए सही है? कोई भी रणनीति इससे बड़ी नहीं हो सकती.’

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