असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और एआईयूडीएफ प्रमुख बदरुद्दीन अजमल

राजनीति | असम

क्या भाजपा को अब असम अपने हाथ से फिसलता लग रहा है?

असम विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस उस एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन करने जा रही है जिस पर कभी वह भाजपा की बी-टीम होने का आरोप लगाया करती थी

अभय शर्मा | 03 सितंबर 2020 | फोटो : रिपुन बोरा / ट्विटर

असम में साल 2006 में हुए विधानसभा चुनाव की बात है. तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता तरुण गोगोई से एक पत्रकार ने बदरुद्दीन अजमल के बारे में पूछा, तो उन्होंने पलट कर सवाल किया, ‘यह बदरुद्दीन कौन है?’ 2006 के इस चुनाव से साल भर पहले ही असम में इत्र के मशहूर व्यापारी बदरूदीन अजमल ने अपनी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का गठन किया था. यानी तब यह पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में थी. इस चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई. एआईयूडीएफ ने भी अपने प्रदर्शन से सभी को चौंकाया और नौ फीसदी वोटों के साथ राज्य की कुल 126 में से दस सीटें हासिल करने में सफल रही. इसके बाद 13 सालों तक तरुण गोगोई यही कहते रहे कि एआईयूडीएफ एक मुस्लिम और सांप्रदायिक पार्टी होने के साथ-साथ भाजपा की बी-टीम भी है जिसे असम में कांग्रेस के वोट काटने के लिए बनाया गया है.

लेकिन, इस साल मार्च में राज्यसभा चुनाव के दौरान एक तस्वीर वायरल हुई जिसने असम की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे दिया. इस तस्वीर में पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर मुस्कराते हुए विधानसभा भवन से बाहर आ रहे हैं. यह राज्यसभा चुनाव असम की तीन सीटों पर हुआ था और इसमें कांग्रेस और एआईयूडीएफ दोनों ने ही वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुयान को संयुक्त उम्मीदवार बनाया था. यह तस्वीर तब ली गयी थी, जब तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल भुयान का नामांकन दाखिल करवाकर वापस लौट रहे थे. इसके बाद यह साफ़ हो गया था कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच के रिश्ते बदल गए हैं. बीते चार महीनों से सूत्रों के हवाले से ऐसी खबरें भी आ रही थीं कि 2021 की शुरुआत में होने वाले असम विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों के नेता बातचीत कर रहे हैं. फिर अगस्त महीने की शुरुआत में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के नेताओं ने यह साफ़ कर दिया कि उनकी पार्टियां एक गठबंधन बनाकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगी. इनके मुताबिक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से हरी झंडी मिलते ही गठबंधन की आधिकारिक घोषणा कर दी जायेगी.

सत्याग्रह को दिए साक्षात्कार में असम कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने भी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए इस महागठबंधन के होने की पुष्टि की है. उन्होंने कहा, ‘हम एक महागठबंधन बनाने जा रहे हैं, इसमें वे पार्टियां शामिल होंगी जो भाजपा की गलत नीतियों के चलते उसे सत्ता से हटाना चाहती हैं. एआईयूडीएफ के अलावा सीपीआई, सीपीएम और छोटी-छोटी कई क्षेत्रीय पार्टियों से भी महागठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है.’ एआईयूडीएफ के महासचिव और मुख्य प्रवक्ता अमीनुल इस्लाम ने भी ऐसी ही बात कही. ‘पहले एक-दूसरे के लिए काफी बातें कही गयीं. लेकिन अब उन बातों को भूलकर कांग्रेस और एआईयूडीएफ दोनों आगे बढ़ रही हैं. साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत महागठबंधन बनाने का राज्य कांग्रेस कमेटी फैसला ले चुकी है. उन्होंने हमें इससे अवगत कराया, जिसका हमने स्वागत किया है’ गठबंधन की अन्य पार्टियों के बारे में अमीनुल इस्लाम का कहना था कि ‘इस महागठबंधन में अजित भुयान की पार्टी, वामपंथी पार्टियां और कृषक मुक्ति संग्राम समिति जैसी कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल हो सकती हैं. हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा कुछ समय बाद ही होगी क्योंकि चुनाव होने में अभी आठ महीने का समय बाकी है.’

दोनों पार्टियों की राज्य में स्थिति

2005 में जब बदरुद्दीन अजमल ने एआईयूडीएफ का गठन किया था तो उनका कहना था कि असम में अवैध घुसपैठियों की पहचान करने के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न किया जा रहा है. मुस्लिमों को इससे बचाने के लिए ही उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन किया है. इसके बाद एआईयूडीएफ ने असम में तेजी से पांव पसारे और कुछ ही सालों के भीतर यहां की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गयी. असम में करीब 35 फीसदी मुस्लिम आबादी है और यही तबका बदरुद्दीन अजमल की पार्टी की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आया है.

मुस्लिम मतदाताओं के बीच जनाधार के चलते ही एआईयूडीएफ ने 2006 के असम विधानसभा चुनाव में दस सीटें जीतीं. 2011 के विधानसभा चुनाव में 12 फीसदी वोट के साथ उसने राज्य की 126 में से 18 सीटों पर कब्जा जमाया और विधानसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई. 2016 के चुनाव में एआईयूडीएफ का मत प्रतिशत बढ़कर 13 फीसदी तक पहुंच गया, हालांकि इस बार उसकी सीटें घटकर केवल 13 ही रह गयीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के तीन प्रत्याशी संसद में पहुंचे थे. 2019 में एआईयूडीएफ को राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से दो सीटें मिलीं.

कांग्रेस की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनाव से बाद से असम में उसका राजनीतिक ग्राफ लगातार नीचे गिरा है. 2011 के विधानसभा चुनाव में 78 सीटें पाने वाली कांग्रेस 2016 के विधानसभा चुनाव में महज 26 सीटों पर सिमट कर रह गयी. इसके बाद निकाय और ग्राम पंचायत चुनाव में भी उसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को तीन सीटें ही मिलीं, राज्य में अब तक का उसका यह सबसे खराब प्रदर्शन था.

दोनों कैसे करीब आए

असम की राजनीति पर करीब से निगाह रखने वाले कुछ पत्रकार बताते हैं कि एआईयूडीएफ को मुस्लिमों की पार्टी के तौर पर देखा जाता है. इसके कुछ नेता भड़काऊ बयानबाजी के लिए भी चर्चा में रहे हैं. इन लोगों के मुताबिक अब तक कांग्रेस असम में बहुसंख्यक हिंदू वोटों को खोने की चिंता के चलते एआईयूडीएफ से दूर रहा करती थी. लेकिन बीते साल आए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) ने राज्य की राजनीतिक परिस्थितयों को बदल दिया है. राज्य में हुए सीएए के तीखे विरोध ने लगभग सभी विपक्षी पार्टियों को भाजपा के खिलाफ एक छतरी के नीचे ला दिया है. असम कांग्रेस के महासचिव अपूर्व कुमार भट्टाचार्जी भी ऐसा मानते हैं. सत्याग्रह से बातचीत में वे कहते हैं, ‘सीएए का सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने किया. दोनों पार्टियों ने एक ऐसे शख्स (अजीत कुमार भुयान) को राज्यसभा चुनाव में समर्थन देकर संसद भेजा, जो सीएए के विरोध के चलते चर्चा में रहे थे. कांग्रेस और एआईयूडीएफ दोनों असम की जनता की भलाई चाहते हैं. दोनों ही असम समझौते में विश्वास रखते हैं, न कि भाजपा द्वारा लाये गए सीएए कानून में.’

असम समझौता 1985 में हुआ था. इसमें कहा गया था कि 24 मार्च, 1971 की मध्यरात्रि के बाद भारत आये विदेशी नागरिकों को असम में ‘अवैध विदेशी नागरिक’ माना जाएगा. हाल के सालों में असम में हुए एनआरसी में भी इसी को आधार माना गया. लेकिन, असम की कई समाजसेवी संस्थाओं और राजनीतिक दलों का कहना है कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया सीएए कानून असम समझौते का उल्लंघन करता है. इनके मुताबिक यह कानून 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए गैर मुस्लिम विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने की वकालत करता है.

कांग्रेस प्रवक्ता रितुपर्णा कोनवार साफ़ तौर पर कहते हैं, ‘सीएए से पहले, स्थिति अलग थी… लेकिन सीएए के बाद स्थिति बदल गई है. हमें ऐसे दलों का एक महागठबंधन बनाने की जरूरत है, जो असम समझौते में विश्वास करते हैं, और जो सीएए और भाजपा के विरोध में हैं.’

कुछ जानकारों की मानें तो कांग्रेस ने एआईयूडीएफ की तरफ हाथ बढ़ने से पहले नफा-नुकसान पर काफी विचार-विमर्श किया है. इनके मुताबिक कांग्रेस ने सीएए की वजह से असमिया भाषी लोगों में भाजपा विरोध का रुख भांपने के बाद ही गठबंधन करने का फैसला किया है. कांग्रेस को लगता है कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन अब उतना नुकसानदायक नहीं होगा जितना अतीत में हो सकता था. दरअसल, राज्य में 36 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां असमिया भाषी लोग चुनावी नतीजे तय करते हैं. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम होने के चलते एआईयूडीएफ अपनी दावेदारी पेश नहीं करेगा और फिर यहां सीधी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच होगी. 2016 के विधानसभा चुनावों में इन 36 सीटों में से कांग्रेस को महज चार सीटें ही मिली थी. लेकिन, अब कांग्रेस को उम्मीद है कि इन क्षेत्रों में सीएए के कारण नाराज असमिया भाषी लोग भाजपा के बजाय उसे तरजीह देंगे. और यहां के जितने भी मुस्लिम वोट हैं वे भी अब नहीं बटेंगे.

एआईयूडीएफ के अस्तित्व में आने से पहले असम के ज्यादातर मुस्लिम वोट कांग्रेस को ही मिला करते थे. लेकिन बीते कुछ चुनावों से यह साफ़ हो गया है कि असम के 35 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा एआईयूडीएफ की ओर चला गया हैं. इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला. कांग्रेस और एआईयूडीएफ के नेताओं की मानें तो अगर अब वे राज्य में मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकने में कामयाब रहते हैं तो 33 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों के साथ-साथ और भी कई सीटों पर उन्हें कामयाबी हासिल होगी और इसके बाद उन्हें सत्ता की चाबी हासिल करने से कोई नहीं रोक पाएगा.

एआईयूडीएफ के महासचिव अमीनुल इस्लाम भी मुस्लिम वोटों के बिखराव की बात मानते हुए कहते हैं, ‘आप 2016 के चुनाव पर गौर कीजिये, करीब 27 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जिन पर कांग्रेस और एआईयूडीएफ दोनों के प्रत्याशी होने के चलते वोटों का जबरदस्त बिखराव हुआ और यहां भाजपा जीत गयी. कुछ सीटों पर लेफ्ट पार्टियों का भी अच्छा जनाधार है. अगर हम सभी साथ आते हैं तो निश्चित तौर पर हमारा फायदा और भाजपा का नुकसान होगा.’

एआईयूडीएफ से समझौते पर भाजपा के आरोप और कांग्रेस का जवाब

कांग्रेस और एआईयूडीएफ के गठबंधन की खबरें आम होने के बाद से भाजपा लगातार कांग्रेस पर निशाना साध रही है. असम भाजपा के कुछ नेता सत्याग्रह से बातचीत में कहते हैं कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ का कई सालों से छिपा हुआ गठबंधन था, लेकिन कांग्रेस इसे उजागर इसलिए नहीं करती थी क्योंकि एआईयूडीएफ एक सांप्रदायिक पार्टी है. भाजपा के इन नेताओं की मानें तो बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में इस छिपे गठबंधन का पता भी चला था, जब तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के सामने एआईयूडीएफ ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसके अलावा कई अन्य सीटों पर भी बदरुद्दीन अजमल और तरुण गोगोई के बीच सांठ-गांठ थी, हालांकि तब भी भाजपा ने यहां की नौ लोकसभा सीटें जीती थीं.

एआईयूडीएफ कैसे एक सांप्रदायिक पार्टी है, यह पूछने पर असम से भाजपा सांसद दिलीप सैकिया सत्याग्रह से कहते हैं, ‘आप एआईयूडीएफ के बनने की कहानी से इस बात को समझ जाएंगे. 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट ने असम में विदेशी घुसपैठियों की सही से पहचान न हो पाने के चलते राज्य में लागू अवैध प्रवासी पहचान ट्रिब्यूनल (आईएमडीटी) कानून को निरस्त किया तो संदिग्ध घुसपैठियों को बचाने के लिए ही एआईयूडीएफ का गठन किया गया था….एआईयूडीएफ के नेताओं का उद्देश्य केवल असम की सत्ता पर कब्ज़ा करना ही नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति और हमारी पहचान को खत्म करना है.. इनका छिपा एजेंडा बहुत बड़ा है.’

असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा सत्याग्रह से बातचीत के दौरान भाजपा के इन आरोपों का जवाब देते हैं. वे कहते हैं, ‘अगर एआईयूडीएफ मुस्लिम पार्टी है तो इसमें गलत क्या है, अगर वे मुसलमानों के विकास की बात करते हैं तो क्या गलत है? अपने लोगों के विकास के लिए बोलने वाला आखिर सांप्रदायिक कैसे हो गया. कोई तब तक सांप्रदायिक नहीं हो सकता जब तक वह दूसरे जाति-संप्रदाय से नफरत नहीं करता… एआईयूडीएफ हिन्दू विरोधी नहीं है.’ लेकिन सिर्फ यही बात नहीं है जिसके आधार पर रिपुन बोरा एआईयूडीएफ और कांग्रेस के साथ आने को गलत नहीं मानते. उनके मुताबिक, ‘अगर, जम्मू-कश्मीर में भाजपा आतंकी अफजल गुरु को शहीद का दर्जा देने वाली पार्टी – पीडीपी से गठबंधन कर सकती है तो कांग्रेस असम में एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन क्यों नहीं कर सकती. एआईयूडीएफ ने कभी आतंकियों का पक्ष तो नहीं लिया.’

एआईयूडीएफ के महासचिव अमीनुल इस्लाम भी भाजपा के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, ‘हम पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अब एआईयूडीएफ केवल मुसलमानों की पार्टी नहीं रही. हमारी पार्टी में सांसद और कई विधायक हिंदू हैं. इसके अलावा बड़ी संख्या में हमारे कार्यकर्ता और ऊंचे पदों पर मनोनीत किये गए कई नेता हिंदू और अन्य धर्मों से आते हैं.’

असम कांग्रेस के महासचिव अपूर्व कुमार भट्टाचार्जी एआईयूडीएफ पर लग रहे आरोपों को भाजपा की बौखलाहट बताते हैं. उनके मुताबिक, ‘एआईयूडीएफ को भारत के निर्वाचन आयोग ने मान्यता दी है, ऐसे में उसे सांप्रदायिक पार्टी नहीं कह सकते…कांग्रेस और एआईयूडीएफ के साथ आने से भाजपा बौखलाई हुई है, इसलिए उसके नेता ऐसे आरोप लगा रहे हैं, इस गठबंधन से उनकी – बांटो और राज करो – वाली रणनीति फेल होने वाली है, सत्ता खिसकने वाली है इसलिए घबराहट लाजमी है.’

हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन से कोई नुकसान नहीं होगा. भाजपा सांसद दिलीप सैकिया का मनाना है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ का वोट बैंक लगभग एक ही है जबकि भाजपा का वोट बैंक इनसे अलग है, ऐसे में गठबंधन के बाद अगर इन दोनों पार्टियों का वोटर एक हो भी जाता है तो भाजपा को नुकसान नहीं होगा. सैकिया आगे कहते, ‘अगर, कांग्रेस और एआईयूडीएफ के नेता ये सोचते हैं कि वे विधानसभा चुनाव में सीएए का मुद्दा उठाकर फायदा ले लेंगे तो ऐसा भी नहीं होने वाला है. असम के लोग इनके बहकावे में आकर एक बार भावनाओं में बह गए और प्रदर्शन कर दिया, लेकिन अब वही लोग देख रहे हैं कि सीएए कानून लागू होने के बाद से असम में एक भी घुसपैठिया नहीं घुसा है.’

राज्य भाजपा अध्यक्ष रंजीत दास भी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत को लेकर आश्वस्त दिखते हैं. एक साक्षात्कार में वे कहते हैं, ‘पूरे असम में भारतीय जनता पार्टी के 42 लाख सदस्य हैं. अगर प्रत्येक सदस्य अपने साथ केवल एक अतिरिक्त व्यक्ति को भी जोड़ता है, तो भी हमारे पास 84 लाख वोट हैं. इसलिए हम चिंतित नहीं हैं. भाजपा एक लोकतांत्रिक पार्टी है और इसलिए हम किसी भी नई राजनीतिक पार्टी या गठन का स्वागत करते हैं.’

रंजीत दास आगे जोड़ते हैं, ‘भाजपा अपनी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों के दम पर चुनाव लड़ेगी, हम लोगों को यह भी बताएंगे कि हमारे प्रयासों के चलते राज्य में विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सद्भाव बना रहा… सरकार का ध्यान एक आत्म निर्भर असम बनाने पर रहा है और इसके केंद्र में कृषि और किसान हैं.’

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