दिशा रवि

Politics | मोदी सरकार

वे कौन से छह कारण हो सकते हैं जिनके चलते दिशा रवि की गिरफ्तारी हुई होगी?

हाल में गिरफ्तार पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है

रामचंद्र गुहा | 18 February 2021 | फोटो: ट्विटर

हमारी धरती स्वच्छ और सुरक्षित रहे, यह चाहने वाली 21 साल की एक कार्यकर्ता को गिरफ्तार करने की जरूरत भारतीय राज्य व्यवस्था को क्यों महसूस हुई होगी? क्या यह देश नहीं चाहता कि इसके युवा संकीर्ण और निजी स्वार्थों से आगे बढ़कर सामाजिक हित से जुड़े मुद्दों के बारे में सोचें? हमारी सरकार ने एक ऐसी युवा नागरिक को आखिर क्यों सलाखों के पीछे भेज दिया है जो अपने और अपने हमवतनों के लिए एक बेहतर भविष्य चाहती है? दिल्ली पुलिस को बेंगलुरू स्थित उसके घर जाकर उसे गिरफ्तार करने और फिर राजधानी लाने जैसी कठोर कार्रवाई की क्या जरूरत थी? ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जागरूकता फैलाने वाले एक अहिंसक अभियान और किसानों के विरोध के समर्थन में ट्वीट करने में ऐसा भला क्या है कि शक्तिशाली और आत्मनिर्भर कहलाने वाली भारतीय राज्य व्यवस्था को उससे राजद्रोह का खतरा लग रहा है?

ये सवाल दिशा रवि की गिरफ्तारी की खबर के बाद मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछे. भारत के कई दूसरे घरों में भी ऐसे सवाल निश्चित रूप से पूछे गए होंगे. बेंगलुरू की इस युवती की गिरफ्तारी और पुलिस हिरासत के फैसले में जिस तरह की मनमानी का परिचय दिया गया वह किसी तर्क से समझ में नहीं आती. कानून के शासन और लोकतांत्रिक संविधान से चलने वाली किसी भी राज्य व्यवस्था को ऐसा नहीं करना चाहिए लेकिन, भारतीय राज्य व्यवस्था ने किया. आखिर क्यों?

दिशा रवि एक युवा और आदर्शवादी नागरिक हैं जिन्हें पुलिस ने किसी नोटिस के बगैर बेंगलुरु स्थित उनके घर से उठाया और फिर उन्हें हवाई जहाज में बैठाकर पांच दिन की कड़ी पूछताछ के लिए दिल्ली ले गई. मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के बारे में हम जो जानते हैं, जिस तरह का रुख इसने गुजरात में और उसके बाद केंद्रीय सत्ता में रहते हुए दिखाया है, उससे मुझे इस कार्रवाई के छह कारण समझ में आते हैं.

पहला कारण यह है कि यह सरकार स्वतंत्र सोच से डरती है. उसे लगता है कि भारतीयों को आज्ञाकारी और एक जैसी सोच रखने के साथ-साथ व्यवस्था और मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति वफादार होना चाहिए और साथ ही उन्हें इस देश के महान और दूरदर्शी नेता को पूजनीय समझना चाहिए. सरकार अपने लिए एक ऐसी आदर्श परिस्थिति चाहती है जिसमें उसकी नीतियों और कार्यों की कोई आलोचनात्मक, निष्पक्ष और विस्तृत समीक्षा न की जा सके. वैसे तो 2014 के बाद से ही लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की जगह काफी सिकुड़ती गई है, फिर भी यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. अभी भी स्वतंत्र प्रेस और सिविल सोसायटी के थोड़े-बहुत हिस्से (हालांकि वे भी तेजी से सिकुड़ रहे हैं) बचे हुए हैं और कुछ बड़े राज्य भी जहां अभी भाजपा की सत्ता नहीं है.

राजनीति हो या नागरिक समाज, भारत में उस व्यवस्था का प्रभुत्व है जिसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी चलाती है. लेकिन उसे इससे संतोष नहीं है. वह पूर्ण आधिपत्य चाहती है. इसी महत्वाकांक्षा के चलते वह संसद में बहस पर अंकुश लगाती है, राज्यों के अधिकार घटाती है और मीडिया की आजादी पर लगाम कसती है. प्रधानमंत्री ने बीते साढ़े छह साल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है. इसके साथ ही उन्होंने बड़ी सावधानी के साथ एक ‘गोदी मीडिया’ का निर्माण किया है और उसे आगे बढ़ाया है. इस तरह वे पत्रकारिता जगत की तरफ से उनकी सरकार के काम को कसौटी पर कसने की कवायद घटाने में सफल रहे हैं. लेकिन अभी तक वे इसे पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए हैं. यही वजह है कि न्यूजक्लिक जैसी स्वतंत्र वेबसाइटों और स्वतंत्र विचारों वाले दूसरे पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है.

दिशा रवि की गिरफ्तारी का दूसरा कारण यह है कि मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान स्वतंत्र सोच से तो डरती है, लेकिन ऐसा खास तौर पर तब होता है जब इस सोच की अभिव्यक्ति युवाओं की तरफ से होती है. 20-30 के युवा भारतीयों में धार्मिक बहुलतावाद, जातिगत और लैंगिक न्याय, लोकतांत्रिक पारदर्शिता और पर्यावरण जैसे मुद्दों की तरफ एक आदर्शवादी झुकाव होता है. ये आदर्श न सिर्फ संघ परिवार के आदर्शों से अलग बल्कि अक्सर उनके खिलाफ भी होते हैं. इन युवा नागरिकों के पास देश को लेकर अपनी उम्मीदों को पूरा करने के लिए ज्यादा समय और वक्त होता है. तो इन्हें सत्ता से मिली शक्ति के दुरुपयोग और अगर जरूरत हो तो कानूनी प्रक्रियाओं के जरिये जेल भेज दिया जाना चाहिए. देश के लिए एक बेहतर भविष्य चाहने वाले, आदर्शवादी और निस्वार्थ भाव से काम करने वाले युवाओं के साथ पहले भी ऐसा होता रहा है और दिशा रवि की गिरफ्तारी इसी सिलसिले की नई कड़ी है.

ये आदर्शवादी नौजवान संघ परिवार के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं, विपक्षी पार्टियों से भी बड़ी. जैसा कि दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने लिखा, ‘इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाकर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया था. मोदी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि उनमें से ज्यादातर के पास न ज्यादा विश्वसनीयता बची है और न असर. तो वे उन सच्चे और युवा एक्टिविस्टों को गिरफ्तार करते हैं जो लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ये मोदी की ‘इमरजेंसी विद अ डिफरेंस’ है.’

दूसरी पार्टियों के सांसदों और विधायकों की तरह इन युवा एक्टिविस्टों को पैसे या दबाव जैसे तरीकों से भाजपा में नहीं लाया जा सकता. न ही उन पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद या फिर वंशवाद के आरोप लगाए जा सकते हैं. निखिल वागले गलत नहीं कह रहे. मानसिक और विचारधारा के स्तर पर संघ परिवार, राहुल गांधी या ममता बनर्जी की तुलना में उमर खालिद और नताशा नरवाल से कहीं ज्यादा डरता है.

दिशा रवि की गिरफ्तारी का तीसरा कारण यह है कि मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान किसी भी तरह से खबरें मैनेज करना चाहता है. किसानों के विरोध प्रदर्शन से निपटने का सरकार ने जो तरीका अपनाया और कुछ विदेशी हस्तियों के ट्वीट पर उसने जिस तरह की अतिवादी प्रतिक्रिया दी उससे उसकी काफी जगहंसाई हुई. लोगों का ध्यान भटकाने के लिए अब सरकार अति राष्ट्रवाद का अपना पुराना दांव आजमा रही है और यह दावा कर रही है कि कनाडा में बेकार बैठे खालिस्तानी, स्वीडन की एक किशोरी और बेंगलुरु की एक युवती देश के खिलाफ एक गहरी अंतरराष्ट्रीय साजिश रच रहे हैं.

तो अब दिल्ली पुलिस छांट-छांटकर कुछ बातें लीक करेगी और गोदी मीडिया और भाजपा की आईटी सेल उन्हें आधार बनाकर अपना भोंपू बजाएंगे. इस तरह सरकार उम्मीद कर रही है कि हमारी राजधानी की सीमाओं पर बैठे किसानों की तकलीफ की कहानी कम से कम कुछ समय के लिए पृष्ठभूमि में चली जाएगी.

मेरे गृहनगर बेंगलुरु की इस युवती की गिरफ्तारी की चौथी वजह है कि मौजूदा सत्ता तंत्र ज़ेनोफोबिक (विदेशियों को न पसंद करने वाली) प्रवृत्ति का है. यह बात उसके जड़ राष्ट्रवाद को क्रोधित करती है कि इस तरह के स्वदेशी नाम वाली एक भारतीय नारी गोरी चमड़ी और ईसाई पृष्ठभूमि वाले जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ताओं के साथ नियमित रूप से संपर्क में थी. उनका राष्ट्रवाद तो यह कहता है कि अगर दिशा रवि नाम की किसी लड़की को समंदर पार किसी से बात करनी है तो वह ‘ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी’ की न्यूयॉर्क या वाशिंगटन सेल से ही करे.

बेंगलुरू की इस 21 वर्षीय लड़की की गिरफ्तारी की पांचवीं वजह हर युवा और उसके माता-पिता को एक डरावना संदेश भेजना है. अगर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन में ट्वीट करने का व्यवस्था की तरफ से इतना क्रूर प्रतिकार हो सकता है तो करियर और परीक्षाओं से परे जाकर एक्टिविज्म (फिर भले पार्ट टाइम ही सही) करने वाले कई छात्र अब ऐसा करने से हिचकिचाएंगे. उनके माता-पिता और दूसरे रिश्तेदार भी उन्हें सोशल मीडिया से दूर रहने, सभाओं-बैठकों में शामिल न होने इत्यादि की सलाह देंगे. यही उनके स्कूल और कॉलेज के प्रधानाचार्य और शिक्षक भी कहेंगे. आज्ञाकारिता और बाकी सबकी तरह रहने का जो माहौल मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान चाह रहा है वह युवाओं में और गहरा हो जाएगा.

ये पांच कारण सामान्य हैं और ज्यादातर युवा कार्यकर्ताओं से जुड़ते हैं. छठी वजह सिर्फ दिशा रवि से जुड़ी है. केंद्र सरकार इस युवा कार्यकर्ता से इसलिए डरती है क्योंकि उसके संगठन, फ्राइडेज फॉर द फ्यूचर (एफएफएफ) ने पर्यावरण से जुड़े उन उल्लंघनों की तरफ लोगों का ध्यान खींचा है जो भारतीय राज्य व्यवस्था ने किये हैं. जैसा कि चर्चित वेबसाइट द न्यूजमिनट में छपा एक लेख कहता है, ‘ऐसा लगता है जैसे केंद्र सरकार इस बात से गुस्साई कि एफएफएफ ने ड्राफ्ट ईआईए 2020 (पर्यावरणीयीय प्रभाव के आकलन संबंधी अधिसूचना 2020 का मसौदा) के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया था जिसमें परियोजना पर सार्वजनिक विचार-विमर्श का दायरा घटा दिया गया है और पर्यावरण से जुड़ी मंजूरियों को परियोजना शुरू करने के बाद लेने की इजाजत दे दी गई है.’

ईआईए को कमजोर करना नरेंद्र मोदी सरकार की एक व्यापक नीति के अनुरूप ही है जिसमें सामाजिक न्याय और पर्यावरण से जुड़े हानि-लाभ की बात से ऊपर कॉरपोरेट्स के हितों को रखा जाता है. मध्य भारत में सुधा भारद्वाज और स्टैन स्वामी ने आदिवासियों की जमीनें और जंगल उन खनन कंपनियों को देने का विरोध किया था जिनके प्रमोटर सरकार के करीबी हैं. ये दोनों इस विरोध की बड़ी कीमत चुका रहे हैं. अब बेंगलुरु की दिशा रवि की बारी है.

दिशा रवि छात्र जीवन में राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रही हैं. यानी वे मानसिक रूप से एक क्रूर पूछताछ के लिए तैयार नहीं होंगी. भारतीय राज्य व्यवस्था को मैं जितना जानता हूं उसके हिसाब से यह पूरी तरह संभव है कि उसने दिशा रवि को इसीलिए गिरफ्तार किया है. सोचकर ही डर लगता है कि इस समय दिल्ली पुलिस उसके साथ क्या कर रही होगी.

जैसा कि मैंने पहले भी कहा, कानून के शासन वाली कोई भी व्यवस्था इस तरह से काम नहीं करती. लेकिन मौजूदा व्यवस्था के दिल में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए सम्मान नहीं है. यह एक ऐसी सरकार है जिसके पास इंसानियत, सभ्यता, गरिमा और पारदर्शिता जैसी कोई चीज नहीं है. इसकी प्रतिबद्धता सिर्फ संपूर्ण सत्ता के लिए है. इसकी कोशिशें केवल संपूर्ण राजनीतिक, वैचारिक और व्यक्तिगत वर्चस्व पर केंद्रित हैं. देखा जाए तो भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जो भी अच्छी बातें हैं उनका वे लोग ही रोज उल्लंघन कर रहे हैं जिन्होंने इसी संविधान के नाम पर शपथ ली है. इसीलिए जब युवाओं की तरफ से संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करने और उन्हें बनाए रखने की चुनौती मिलती है तो राज्य व्यवस्था की प्रतिक्रिया यही होती है कि उन्हें जेल भेज दिया जाए.

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