जगजीवन राम

Politics | पुण्यतिथि

जब बॉबी पर बाबूजी भारी पड़ गए थे!

आपातकाल के समर्थन में लोकसभा में प्रस्ताव लाने वाले बाबू जगजीवन राम ने बाद में कांग्रेस से इस्तीफा देकर जनता पार्टी के साथ 1977 का चुनाव लड़ा था

राहुल कोटियाल | 06 July 2020 | फोटो: parliamentofreligions.org

बात जनवरी 1977 की है. देश में आपातकाल लागू हुए 19 महीने बीत चुके थे. इस दौरान संविधान में इस हद तक संशोधन कर दिए गए कि उसे ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंडिया’ की जगह ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंदिरा’ कहा जाने लगा था. उसमें ऐसे भी प्रावधान जोड़ दिए गए थे कि सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल को कितना भी बढ़ा सकती थी. विपक्ष के सभी बड़े नेता जेलों में कैद थे और कोई नहीं जानता था कि देश इस आपातकाल की गिरफ्त से कब मुक्त हो सकेगा.

तभी 18 जनवरी को अचानक ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव करवाने की घोषणा कर दी. आपातकाल समाप्त करने की यह घोषणा आपातकाल लागू होने की घोषणा से भी ज्यादा अप्रत्याशित थी. इंदिरा गांधी ने अचानक यह फैसला क्यों लिया था? इस सवाल का सही जवाब आज भी कोई नहीं जानता. जनवरी 1977 में चुनावों की घोषणा करते हुए इंदिरा गांधी का कहना था, ‘करीब 18 महीने पहले हमारा प्यारा देश बर्बादी के कगार पर पहुंच गया था. राष्ट्र में स्थितियां सामान्य नहीं थी. चूंकि अब हालात स्वस्थ हो चुके हैं, इसलिए अब चुनाव करवाए जा सकते हैं.’

18 जनवरी को जब इंदिरा गांधी ऑल इंडिया रेडियो पर चुनावों की घोषणा कर रही थी, ठीक उसी वक्त देश भर की जेलों में कैद विपक्षी नेताओं को रिहा किया जाने लगा था. अगले ही दिन, 19 जनवरी को मोरारजी देसाई के दिल्ली स्थिति घर में चार पार्टी के नेताओं की एक मीटिंग हुई. ये पार्टियां थीं – जन संघ, भारतीय लोक दल (किसान नेता चरण सिंह की पार्टी), सोशलिस्ट पार्टी और मोरारजी देसाई की पार्टी कांग्रेस (ओ). इस मीटिंग में तय हुआ कि इस बार ये सभी पार्टियां मिलकर एक ही चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगी. इसके चार दिन बाद ही 23 जनवरी को जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में जनता पार्टी की औपचारिक घोषणा हो गई.

जनता पार्टी के गठन के दस दिन बाद ही दिग्गज दलित नेता जगजीवन राम ने भी केंद्र सरकार से इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी. बाबूजी के नाम से लोकप्रिय जगजीवन राम ताउम्र कांग्रेस में रहे थे और नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी तक की कैबिनेट में मंत्री रह चुके थे. आपातकाल के दौरान भी वे कांग्रेस से जुड़े रहे थे. बल्कि वे ही आपातकाल के समर्थन में लोकसभा में प्रस्ताव लेकर आए थे.

बाबू जगजीवन राम इस दौर में दलितों के सबसे बड़े नेता थे और उनका व्यापक जनाधार हुआ करता था. वे अपनी राजनीतिक कुशाग्रता के लिए भी जाने जाते थे. इसलिए उनका इस्तीफ़ा कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका भी था और इस बात का इशारा भी कि कांग्रेस के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी हैं. इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में इस बारे लिखते हैं कि बाबू जगजीवन राम के इस्तीफे से सीधे यह संकेत गया कि कांग्रेस की नाव भले ही पूरी तरह से न भी डूब रही हो लेकिन वह बुरी तरह से चूने जरूर लगी है.

5 अप्रैल, 1908 को बिहार के भोजपुर में जन्मे जगजीवन राम स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे थे. 1946 में जब जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में अंतरिम सरकार का गठन हुआ था, तो जगजीवन राम उसमें सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बने थे. उनके नाम सबसे ज्यादा समय तक कैबिनेट मंत्री रहने का रिकॉर्ड भी दर्ज है. वे 30 साल से ज्यादा समय केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री रहे हैं. माना जाता है कि 1977 में उनके कांग्रेस से अलग होने के कारण जनता पार्टी को दोगुनी मजबूती मिल गई थी.

कांग्रेस से इस्तीफ़ा देकर जगजीवन राम ने अपनी नई पार्टी बनाई जिसका नाम था ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ (सीऍफ़डी). उन्होंने यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी जनता पार्टी के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेगी ताकि बंटे हुए विपक्ष का लाभ कांग्रेस को न मिल सके. इसके बाद तो जनता पार्टी और भी मजबूत हो गई. लोकनायक जयप्रकाश नारायण कांग्रेस के खिलाफ ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे थे. पटना, कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, चंडीगढ़, हैदराबाद, इंदौर, पूना और रतलाम में जनसभाएं करते हुए मार्च की शुरुआत में वे दिल्ली पहुंच गए. मार्च के ही तीसरे हफ्ते में चुनाव होने थे. बाबू जगजीवन राम ने घोषणा की कि छह मार्च को दिल्ली में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया जाएगा. इस जनसभा को कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस ने एक दिलचस्प चाल चली.

रामचंद्र गुहा ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं कि जगजीवन राम की ‘इस जनसभा से भीड़ को दूर रखने के लिए कांग्रेस ने ठीक जनसभा के वक्त उस दौर की मशहूर रोमांटिक फिल्म ‘बॉबी’ का दूरदर्शन पर प्रसारण करवाना तय किया. 1977 में देश में सिर्फ दूरदर्शन ही हुआ करता था और उसका नियंत्रण पूरी तरह से सरकार के हाथों में ही था. आम दिनों में यदि बॉबी फिल्म टीवी पर दिखाई जा रही होती तो दिल्ली की लगभग आधी आबादी टीवी स्क्रीनों के इर्द-गिर्द ही सिमटी रहती.’ लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ. ‘उस दौर के एक अखबार ने अगले दिन हैडलाइन बनाई कि आज बाबूजी ने बॉबी पर जीत हासिल की.’ करीब दस लाख लोगों ने दिल्ली में बाबूजी और जयप्रकाश नारायण को सुना और इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त रूप से लड़ने का संकल्प किया.

चुनाव नतीजों के बारे में रामचंद्र गुहा लिखते हैं, ‘इन नतीजों ने कइयों को खुश किया, कुछ को नाराज़ किया और सभी को चौंका दिया था.’ इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों ही अपनी-अपनी सीट तक हार गए. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सभी 85 सीटें और बिहार में सभी 54 सीटें हार गई. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 25 और 40 में से सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिली.

हालांकि दक्षिण भारत में आपातकाल के बाद भी कांग्रेस को नुकसान नहीं हुआ. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने 42 में से 41 सीटें जीती, कर्नाटक में 28 में से 26, केरल में 20 में से 11 और तमिलनाडु में 39 में से 14 सीटें. लेकिन जनता पार्टी और सीऍफ़डी गठबंधन ने देशभर में 298 सीटें जीतते हुए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. इस तरह देश में पहली बार मोरारजी देसाई के रूप में कोई गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बना. बाबू जगजीवन राम इस सरकार में रक्षा मंत्री बने और आगे चलकर देश के पहले दलित उप-प्रधानमंत्री भी.

>> Receive Satyagrah via email or WhatsApp
>> Send feedback to english@satyagrah.com

  • After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Society | Religion

    After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Satyagrah Bureau | 19 August 2022

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Politics | Satire

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Anurag Shukla | 15 August 2022

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    World | Pakistan

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    Satyagrah Bureau | 14 August 2022

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Society | It was that year

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Anurag Bhardwaj | 14 August 2022