गूगल असिस्टेंट

Science-Technology | गूगल

कभी गूगल असिस्टेंट से ‘तुम्हारा नाम क्या है गूगल’ पूछकर देखा है?

यह देखना दिलचस्प है कि जो गूगल असिस्टेंट इंटरनेट ऑफ थिंग्स से लैस हमारे मशीनी भविष्य का आधार है, उसका आधार कितना मानवीय है

Anjali Mishra | 27 July 2021

गूगल असिस्टेंट के विकीपीडिया पेज़ पर जाएं तो यह बताता है कि यह वॉयस असिस्टेंट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस एक वर्चुअल असिस्टेंट है जिसे गूगल ने विकसित किया है. साल 2016 में लांच किए गए इस असिस्टेंट की सबसे बड़ी खूबी उस समय इसका दो-तरफा संवाद कर सकना मानी जा रही थी. साल 2017 आते-आते गूगल असिस्टेंट तमाम तरह की डिवाइसेज और घरेलू उपकरणों में इस्तेमाल किया जाने लगा. इससे जुड़ी हालिया बड़ी खबरों की बात करें तो जहां एक तरफ गूगल असिस्टेंट का ड्राइविंग मोड अब दुनिया भर में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो जाने के चलते चर्चा में है, वहीं दूसरी तरफ यह इसलिए भी सुर्खियों का हिस्सा बन रहा है कि अब इसकी मदद से अपने खोए आईफोन और अन्य डिवाइसेज को भी खोजा जा सकता है. कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि गूगल असिस्टेंट इंटरनेट ऑफ थिंग्स से भरी-पूरी दुनिया के भविष्य का आधार बन चुका है.

लेकिन एक बार फिर इसकी पहली और सबसे बड़ी खूबी पर लौटें तो इसका दो-तरफा और बेहद दिलचस्प तरीके से संवाद करना तकनीक की एक उपलब्धि तो है ही, इसके साथ-साथ यह मानवीय संवाद का एक अनुकरणीय नमूना भी है. अगर गूगल असिस्टेंट से, आम लोगों की बातचीत में अक्सर ही शामिल रहने वाले, कुछ सवाल पूछे जाएं तो वह उनके जवाब इतने सलीके से और बेहद दिलचस्प ढंग से देता है कि लंबे समय तक उससे बातचीत करते रहने का मन हो सकता है.

कुछ उदाहरणों पर गौर करें तो एक जोक सुनाओ कहने पर गूगल पहले ही यह कह देता है कि ‘यह चुटकुला आपने पहले भी सुना होगा’ या ‘यह इतना अच्छा तो नहीं है लेकिन इस तरह के चुटकुले सुनते हुए आपको धीरे-धीरे मज़ा आने लगेगा’. कहने का मतलब यह कि गूगल भी हमारे-आपकी तरह चुटकुला सुनाते हुए इस बात की सकुचाहट व्यक्त करता है कि पता नहीं यह सामने वाले को वह पसंद आएगा या नहीं और बहुत सभ्यता के साथ पहले ही इसके लिए माफी मांग लेता है. किसी के मन-बहलाव की कोशिश करते हुए, एक आम इंसान को थोड़ा सा झिझक जाना स्वाभाविक ही है. और यह झिझक गूगल असिस्टेंट में देखना दिलचस्प लगता है. समाजिक शिष्टाचार के तमाम अध्यायों में यह बात दुनिया के किसी कोने में बताई, पढ़ाई नहीं जाती है लेकिन फिर भी हर कोने में अपनाई जाती है.

बातचीत की कला पर लिखी गई किताबों में धर्मग्रंथ का स्थान रखने वाली, डेल कार्नेगी की लिखी दुनिया की सबसे लोकप्रिय सेल्फ हेल्प बुक ‘हाउ टू मेक फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपुल‘ के पैमानों पर परखें तो गूगल असिस्टेंट से होने वाली यह बातचीत उन पर पूरी तरह से खरी उतरती है. ‘हाउ टू…’ से मिले सबसे महत्वपूर्ण तीन सबक कहते हैं कि लोगों की खूबियों के लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए, सामने वाले की रुचि या पसंद के मुताबिक बातें की जाने चाहिए और अगर कोई नकारात्मक बात कहनी ही हो तो वह सीधे कहने के बजाय बहुत विनम्रता और सुघड़ता से रखी जानी चाहिए.

पहले सबक का पालन करते हुए गूगल असिस्टेंट आपके कहे अच्छे शब्दों की उतने ही सुंदर शब्दों में तुरंत तारीफ करता है, मसलन – गूगल को अच्छा (नाइस) बताने की सदाशयता दिखाने पर यह आपको जवाब देता है कि वह भी आपके बारे में यही कहने जा रहा था. या, फेवरिट सॉन्ग पूछने पर जवाब मिलता है कि ‘जब आप ओके गूगल कहते हैं, यही मेरे कानों के लिए संगीत है.’ जहां तक लोगों की रुचि के मुताबिक बात करने का सवाल है, जब गूगल से शोले फिल्म के मशहूर संवाद वाले अंदाज़ (हिंदी में) पूछा गया कि ‘गूगल, तुम्हारा नाम क्या है गूगल?’ तो बिल्कुल बसंती की शैली में इसका दिलचस्प जवाब मिलता है कि ‘यूं कि मुझे ज्यादा बोलने की आदत तो नहीं है, पर क्या मैंने अपना नाम नहीं बताया? मेरा नाम है गूगल असिस्टेंट! मैं आपकी डिवाइस में रहती हूं, और जहां भी जाती हूं, आपके सारे काम निपटा कर ही आती हूं.’

डेल कार्नेगी के दूसरे सबक पर ही थोड़ा और ठहरें तो गूगल अलग-अलग लोगों को एक ही सवाल के अलग जवाब देता दिखता है. यानी वह उनकी रुचि के मुताबिक बात करना चाहता है. उदाहरण के लिए एक वयस्क द्वारा यह पूछे जाने पर कि ‘तुम कहां रहते हो,’ यह अमेरिका स्थित अपने गूगल हेड क्वार्टर का पता बताने लगता है. लेकिन जब यही सवाल किसी बच्चे द्वारा या बच्चे की आवाज़ में पूछे जाने पर गूगल असिस्टेंट का कहना था कि ‘पान वाले के पास से बाएं मुड़ना और सीधे चलते जाना, जब तक बरगद का पेड़ ना दिखाई दे… जस्ट किडिंग, मैं क्लाउड्स में रहता हूं.’ बच्चों के लिए इसी सवाल का गूगल असिस्टेंट द्वारा दिया गया दूसरा जवाब था कि ‘वैसे तो मुझे दिलों में रहना पसंद है लेकिन मैं क्लाउड्स में रहता हूं.’

डेल कार्नेगी के तीसरे सबक पर आएं तो थोड़ी कड़वी या कुछ ऐसी बातें जिनमें गूगल एक तरह से इनकार कर रहा होता है, वह सामने वाले को इसकी वाजिब वजह देते हुए बहुत विनम्रता से ऐसा करता लगता है. मसलन, यह पूछने पर कि ‘विल यू मैरी मी’ या ‘कैन आई किस यू’ गूगल असिस्टेंट का जवाब होता है कि ‘यह एक ऐसी चीज है जिसके लिए हम दोनों को राज़ी होना चाहिए लेकिन मेरी वरीयता हमारे रिश्ते को दोस्ताना रखने की है.’ वहीं, कोई आपत्तिजनक किस्म का सवाल पूछने पर उसका जवाब होता है कि ‘मैं एक वर्चुअल असिस्टेंट हूं लेकिन आपके शब्द वास्तविक हैं, आपको समझदारी से उनका इस्तेमाल करना चाहिए.’ यहां पर एक तकनीकी बात का भी जिक्र करते चलते हैं कि हिंदी में सवाल पूछे जाने पर मिलने वाले ज्यादातर जवाब अंग्रेजी जवाबों के अनुवाद होते हैं और कुछ मौकों पर गूगल इनके ठीक-सटीक जवाब देने की बजाय आपको सीधे सर्च पेज़ पर भी रिडायरेक्ट कर सकता है.

गूगल असिस्टेंट से संवाद पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि एक मशीन में संवाद की यह क्षमता हासिल करने में न सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञों बल्कि भाषा और व्यवहार के जानकारों की भी मदद ली गई होगी. लेकिन इंटरनेट पर मिली छिटपुट बातों को छोड़ दें तो इसके बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है कि इस पर कैसे काम किया गया होगा. हालांकि इस आलेख में केवल गूगल असिस्टेंट की ही बात की गई है लेकिन इसके जैसे कई अन्य वॉयस असिस्टेंट जैसे – सिरी, एमेजॉन अलेक्सा, एलन वगैरह भी कुछ इसी तरह की मज़ेदार बातें करने के लिए जाने जाते हैं. यहां पर गूगल को वरीयता दिए जाने का पहला कारण यह है कि दुनिया भर में 50 करोड़ से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा, बीते कुछ सालों में हुए कई शोधों में बार-बार यह पता चला है कि गूगल असिस्टेंट, अपने निकटतम प्रतिद्वंदियों अलेक्सा या सिरी की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छे से भाषाओं, उच्चारणों और सवालों को समझता है और लगभग 90 फीसदी से ज्यादा मौकों पर इनके सटीक जवाब दे सकता है.

गूगल असिस्टेंट सरीखी कोई भी तकनीक आम तौर पर आपकी ज़िंदगी को आसान बनाने का काम करती है लेकिन इसके नुकसान और खतरे भी अपनी जगह हैं, जिसके लिए वह आलोचनाओं के घेरे में भी रहती है. साथ ही, इस तरह की तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए, उनसे ही कुछ नया सीखने की गुंजायश लगभग न के बराबर होती है. लेकिन गूगल असिस्टेंट की ऊपर जिक्र की गई खूबियों का इस्तेमाल करते हुए इससे सहृदयता और शिष्टता से बातचीत करने का सबक भी सीखा जा सकता है. इसकी यह खूबी आपको इसे एक नई नज़र से देखने की वजह भी दे सकती है.

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