मामूली बुखारों के लिए गैर-मामूली डॉक्टर चाहिए होते हैं क्योंकि वे ही इस मर्ज की जटिलता को समझ पाते हैं
ज्ञान चतुर्वेदी | 22 मई 2021 | फोटो: पिक्साबे
बुखार को कभी-भी बिना ठीक-सा विशेषण लगाए नहीं बताया जाता. मामूली बुखार, हड्डी-तोड़ बुखार, ऐसा तेज बुखार कि जैसा कभी हमें जिंदगी में हुआ ही नहीं, हल्का बुखार, मियादी बुखार आदि कई तरह से मरीज इसके बारे में बताता है. बुखार को लेकर इतनी तरह की गलतफहमियां हैं, बतकहियां हैं और चिकित्सा विज्ञान की सीमाएं हैं कि इस मामूली-सी प्रतीत होती बीमारी के इन पक्षों को जानना जरूरी हो जाता है.
पहली बात तो यह समझी जाए कि कोई भी, कितना भी कम बुखार हो, वह कभी मामूली नहीं होता. हर बुखार इस बात की घोषणा है कि शरीर में कुछ ऐसा गलत हो रहा है जिससे लड़ने के शरीर के अपने हथियारों के चलने के कारण यह गर्मी पैदा हो रही है. बल्कि हल्के बुखार कई मायनों में ज्यादा खतरनाक हैं. थोड़ा-थोड़ा बुखार हो रहा हो तो कई बार आदमी लंबे समय तक इसकी परवाह ही नहीं करता और बाद में बीमारी बढ़ाकर डॉक्टर के पास पहुंचता है.
दूसरी बात यह कि हल्के-हल्के निन्यान्वे सौ वाले, कभी-कभी आने वाले बुखारों की जड़ में बेहद खतरनाक यानी जानलेवा होने की हद तक खतरनाक कारण भी हो सकते हैं. टीबी, एड्स, कई तरह के कैंसर, आंतों की बीमारियां, यहां-वहां पनपती पस (मवाद) आदि किसी के कारण भी ऐसा हो सकता है. प्राय: यह हल्का बुखार विभिन्न तरह की जांचों में आपके खासे पैसे लगवा सकता है. हो सकता है कि तब भी डॉक्टर किसी ठीक नतीजे पर न पहुंच पाएं और आप डॉक्टरों की जमात को ही कहते फिरें कि स्साले यहां-वहां से कट लेने के लिए ऐसा करते रहते हैं.
हल्का बुखार गठिया से लेकर साइकोलोसिस फीवर तक, कुछ भी हो सकता है. हो सकता है ऐसे मामलों डॉक्टर भी कुछ जांचों का सुझाव न दे पाए और दो माह बाद पता चले कि बुखार वाले मरीज को तो हड्डी में टीबी थी या आंतों में कैंसर था. कुल मिलाकर कहना यह है कि हल्के बुखार को कभी-भी हल्के में न लें. हमेशा किसी बहुत अच्छे डॉक्टर से इस पर सलाह लें क्योंकि मामूली बुखारों की डायग्नोसिस के लिए गैर-मामूली डॉक्टर ही चाहिए जो इस जटिल चीज को समझता हो.
इससे भी पूर्व मैं सलाह दूंगा कि बुखार लगे तो थर्मामीटर से नापकर कागज पर लिख लें. डॉक्टर को इस जानकारी से बड़ी मदद मिलेगी. बहुत से मरीज कहते हैं कि हमारा हड्डी का बुखार है या अंदरूनी बुखार है जो रहता तो है पर किसी थर्मामीटर में नहीं आ पाता. इस बारे में आप यह बात गांठ बांध लें कि ऐसा कोई बुखार नहीं होता जो थर्मामीटर में रिकॉर्ड न हो.
हालांकि बुखार जैसा लगने के पचासों और भी कारण हो सकते हैं और तब उनका इलाज भी कुछ अलग ही होगा. अगर आप बुखार की बात कहें और कोई डॉक्टर यह सुनकर ही उसकी दवा दे दे तो यह ठीक नहीं है. तो पहले यह तय करें कि बुखार है कि नहीं. जब भी बुखार जैसा लगे तब उसे नापें और फिर यह जानकारी डॉक्टर से साझा करें.
मैं यह सलाह नहीं दे रहा कि जेब में थर्मामीटर लेकर घूमें और जब-तब मुंह में रखते फिरें. मुद्दे की बात यही है कि बुखार लगने पर नापकर उसका रिकॉर्ड रखना जरूरी है. बुखार रिकॉर्ड न हो तो डॉक्टर को यही कहें कि मुझे बुखार जैसा लगता है पर होता नहीं. इस तरह की स्थिति एनीमिया, थकान, तनाव से लेकर अन्य बहुत सी गंभीर बीमारियों से भी हो सकती है.
और नापने में भी याद रखें कि आदमी के नॉर्मल टेंपरेचर में भी बहुत से नॉर्मल उतार-चढ़ाव हो सकते हैं. यहां मुझे एक वाकया याद आता है. हिंदी के एक बड़े कहानीकार हैं, उनकी बिटिया को टायफाइड हुआ था. टायफाइड ठीक होने के बाद भी रोज शाम होते-होते उसे 99.8 डिग्री तक ‘बुखार’ चढ़ जाता था. कहने वालों ने कहा कि टायफाइड बिगड़ गया है. मुझसे इस पर सलाह ली गई तो मेरी राय थी कि यह शरीर के तापमान में सामान्य उतार-चढ़ाव है. साहित्यकार साब समझदार आदमी थे, मेरी बात समझ गए. दरअसल सामान्यतौर पर शाम को कभी हमारे शरीर का तापमान 99.9 तक भी पहुंच जाए तो इसे बुखार न मानें.
तेज बुखार होने पर डॉक्टर आमतौर पर कहते हैं कि मरीज की कोल्ड स्पॉन्जिंग की जाए. कह तो देते हैं लेकिन डॉक्टर बताते नहीं कि यह कैसे की जाए. वे नर्स से कह देते हैं और नर्स आपसे कह देती है कि ठंडे पानी की पट्टियां रखिये. लेकिन कहां रखिए, कैसे रखिए, यह बताने का समय किसी के भी पास नहीं.
आप दिनभर लगे रहते हैं और बुखार है कि उतरता नहीं. इसका सीधा कारण यह है कि लोग कोल्ड स्पॉन्जिंग के सामान्य नियमों का पालन नहीं करते. इसका पहला नियम तो यही है कि इसे बर्फ के पानी से न करें. बर्फीला ठंडा पानी उल्टे खून की नलियों को सिकोड़ देता है जिससे शरीर और ठंडे कपड़े के बीच तापमान का आदान-प्रदान नहीं हो पाता और बुखार उतनी तेजी से नहीं उतर पाता.
इसके लिए नल में आ रहे सामान्य पानी या घड़े में भरे पानी को लें. दूसरा जरूरी काम यह करें कि गीले कपड़े को बढ़िया निचोड़कर गले पर, कांखों में, पेट पर और जांघ के संधि स्थल (हिप ज्वाइंट के पास) पर रखते जाएं. इस दौरान हर बीस-पच्चीस सेकंड में बदलकर नया गीला कपड़ा लगाएं. गर्दन, कांख, जांघ और पेट से खून की बहुत बड़ी नलियां एकदम चमड़ी के पास से गुजर रही होती हैं. इनमें बुखार से तपता हुआ गर्म खून बह रहा होता है जिसे ठंडक मिलने पर बुखार फटाफट कम होता है.
शेष शरीर पर रखी पट्टियां इतनी जल्दी न बदलें क्योंकि हाथ-पांव की चमड़ी की पतली रक्त नलियों में खून ठंडा होने में समय लेगा. हां, माथे और सिर पर बर्फ की थैली रखना चाहिए क्योंकि खोपड़ी की हड्डियों का तापमान इतनी आसानी से कम न होगा.
और आखिरी बात, स्वयं इलाज न लें. बुखार एक ऐसी बीमारी है जिसका सबसे ज्यादा सेल्फ ट्रीटमेंट होता है. याद रखें कि हर ठंड के साथ कपकंपी देने वाला बुखार मलेरिया नहीं होता. न ही वही एंटीबायोटिक इस बार भी काम करेगी जो कभी पिछले बुखार में आपको दी गई थी. बुखार होने पर डॉक्टर की बताई दवाई ही लें.
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