Science-Technology | अंतरिक्ष

क्या शौचालयों का न होना धरती के साथ-साथ अतंरिक्ष में भी महिलाओं के रास्ते की बाधा रहा है?

पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान के करीब दो दशक बाद पहली बार नासा ने महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने के बारे में सोचा था

Anjali Mishra | 12 May 2022

कुछ साल पहले अमेरिका की मशहूर साइंस-फिक्शन लेखिका मैरी रॉबिनेट कोवल का एक आलेख द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा था. इसमें उन्होंने बताया था कि 1969 में नासा द्वारा किया गया चंद्र-अभियान दरअसल पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए डिजाइन किया गया एक अंतरिक्ष अभियान था. उस समय ऐसा भले ही जान-बूझकर न किया गया हो लेकिन यह महिलाओं को कम महत्व दिए जाने की बात जरूर कह देता है. इस पर बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया रही कि यह किसी तरह का लैंगिक भेदभाव नहीं था बल्कि उस समय किसी भी महिला को अंतरिक्ष भेजना संभव नहीं था. ऐसा कहने वालों ने इसके लिए एक अटपटा कारण दिया – महिलाओं को अंतरिक्ष इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि तब तक वहां पर पेशाब करने के लिए कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी थी. इन टिप्पणियों का जवाब देते हुए उस समय मैरी रॉबिनेट ने ट्विटर पर कई ट्वीट किए थे. ये ट्वीट, अंतरिक्ष में पेशाब या शौच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक का ठीक-ठाक अंदाजा दे देते हैं.

मैरी रॉबिनेट कोवल अपनी इस ट्वीट श्रंखला में 1958 से 1963 के दौरान चलाए गए नासा के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान ‘मर्करी’ का जिक्र करती हैं. वे बताती हैं कि इस अभियान से जुड़े डॉक्टर इस बात के लिए चिंतित थे कि गुरुत्वाकर्षण न होने की सूरत में इंसान न तो कुछ निगल सकता है और न ही पेशाब कर सकता है. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना ली थी.

इसकी वजह बताते हुए वे आगे कहती हैं कि जब एलन शेफर्ड अतंरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी बने तब केवल पंद्रह मिनट का मिशन प्लान किया गया था. यानी शेफर्ड को केवल अंतरिक्ष में पहुंचना था और कुछ मिनट बिताकर वापस आ जाना था. इसलिए यह माना गया कि इस दौरान हाजत से जुड़ी किसी तरह की तैयारी करने की जरूरत नहीं है. लेकिन लॉन्चपैड में काफी देर होने के चलते मिशन के दौरान एक ऐसा मौका भी आया जब शेफर्ड को बॉथरूम जाने की बहुत जरूरत महसूस हुई. उन्होंने मिशन कंट्रोल से अपने स्पेससूट में पेशाब करने की अनुमति मांगी. फ्लाइट सर्जन और सूट टेक्नीशियन्स से सलाह करने के बाद उन्हें यह अनुमति दे दी गई. इसके बाद कोई और चारा न होने के चलते एलन शेफर्ड भीगे कपड़ों में ही अंतरिक्ष गए और वापस आए.

बाद में, इस समस्या का हल कॉन्डम की तरह दिखने वाला एक शीथ (पाउच) बनाकर निकाला गया. हालांकि इस तकनीक ने टेस्टिंग के दौरान तो ठीक तरह से काम किया लेकिन अंतरिक्ष में यह हर बार फट जाता था. शुरूआत में इन्हें स्माल, मीडियम, लार्ज के साइज में बनाया गया था लेकिन बाद में जब इनका आकार थोड़ा बड़ा कर दिया गया तो ये काम चलाने लायक बन गये. दूसरी तरफ शौच के लिए भी यात्रियों को पीछे की तरफ एक बैग चिपकाकर रखना होता था. इन तरीकों से शुरूआती अंतरिक्ष अभियानों – जेमिनी और मर्करी – का काम तो चल गया लेकिन इस दौरान अंतरिक्ष यात्री लगातार अपने ही मल-मूत्र की गंध से परेशान रहे.

मैरी रॉबिनेट आगे बताती हैं कि चंद्र अभियान मिशन अपोलो के लिए जरूरतें अलग थीं इसलिए इस दौरान शौच का तरीका तो वही रखा गया लेकिन पेशाब करने के लिए एक नई तकनीक ईजाद की गई. इस तकनीक के तहत कॉन्डम सरीखे पाउच को एक वॉल्व से जोड़ा गया. इस वॉल्व को दबाते ही यूरीन अंतरिक्ष में चला जाता था. लेकिन इसकी खामी यह थी कि अगर वॉल्व को दबाने में एक सेकंड की देरी हुई तो यूरीन स्पेसशिप में तैरने लगता था. और अगर इसे जरा पहले खोल दिया जाता तो ब्राम्हांड का निर्वात शरीर के अंगों को भी बाहर खींच सकता था. वैसे, यह जानना मजेदार लग सकता है कि अंतरिक्ष में फंसा हुआ यह मूत्र किसी सुंदर चमकदार चीज की तरह दिखता है.

यह वॉल्व मौजूद होने के बाद भी चांद की सतह पर पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों नें कॉन्डमनुमा थैली में ही पेशाब करने का विकल्प चुना था. इससे जुड़ा फन-फैक्ट यह है कि बज एल्ड्रिन चांद पर चलने वाले दूसरे मनुष्य भले ही हों लेकिन वे वहां पर पेशाब करने वाले पहले हैं.

मैरी साल 1995 में आई हॉलीवुड फिल्म अपोलो-13 का जिक्र करते हुए बताती हैं कि सबने देखा होगा कि फिल्म में एस्ट्रोनॉट फ्रेड हेज बीमार हो गए थे. दरअसल मिशन के दौरान हुई एक दुर्घटना के बाद मिशन कंट्रोल ने यात्रियों को पेशाब करने वाले वॉल्व का इस्तेमाल करने से रोक दिया था. हालांकि यह कोई परमानेंट बैन नहीं था लेकिन यात्री इसे समझ नहीं पाए. इसलिए वे ऐसे हर बैग या कंटेनर को पेशाब के लिए इस्तेमाल करने लगे जिसमें पेशाब की जा सकती थी. इसका सबसे आसान तरीका यह था कि पेशाब को अपने स्पेससूट में ही इकट्ठा कर लिया जाए. हेज ने घंटों तक ऐसा किया. इसके चलते पहले उन्हें यूटीआई (यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) हुआ जो बाद में बढ़कर किडनी इंफेक्शन में बदल गया.

पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान मर्करी के करीब दो दशक बाद और चंद्र अभियान के करीब एक दशक बाद यानी 1980 में नासा ने महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने का फैसला लिया. मैरी इस पर चुटकी लेते हुए लिखती हैं कि अब नासा को नलियों वाली तकनीक से इतर कोई और तरीका ढूंढने की जरूरत थी. इसलिए स्पेसवॉक करने के लिए नासा ने एमएजी (मैग्जिमम एब्जॉर्बेंसी जर्मेंट) बनाया जो एक तरह का डायपर था. इसका इस्तेमाल पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों ने भी करना शुरू कर दिया क्योंकि इससे स्पेस क्राफ्ट में गंदगी फैलने आशंका कम थी.

इसके अलावा नासा ने एक जीरो-ग्रैविटी टॉयवेट भी बनाया. मैरी बताती हैं कि इसके बावजूद अंतरिक्ष में पेशाब या शौच करना आज भी एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें एक पंखा, एक टारगेटिंग सिस्टम और ढेर सारी दुआओं की जरूरत पड़ती है. दरअसल, शौच करने के लिए अंतरिक्ष यात्री यहां एक खास तरह के ग्लव्स का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वहां मल शरीर से अपने आप बाहर नहीं आता है. यहां पेशाब करना अपेक्षाकृत आसान काम कहा जा सकता है लेकिन इसमें भी एक फनल, एक ट्यूब, एक बैग या कंटेनर और पेशाब का प्रेशर बनाने के लिए पंखे की जरूरत पड़ती है. इसके साथ ही यह जान लेना भी जरूरी है कि ग्रैविटी नहीं होने के चलते अंतरिक्ष में ज्यादातर वक्त लोगों को बाथरूम इस्तेमाल करने की जरूरत महसूस नहीं होती है. शरीर के भीतर सफाई होती रहे इसके लिए उन्हें शेड्यूल बनाना होता है.

ये जानकारियां बताती हैं कि आखिरकार अंतरिक्ष यात्राओं के लिए महिलाओं के हिसाब से तैयार की गई तकनीक, कहीं ज्यादा कारगर साबित हुई. ये तकनीक काफी देर से विकसित की गईं लेकिन इसलिए नहीं कि ऐसा पहले नहीं किया जा सकता था. बल्कि इसलिए कि पहले महिलाओं को वहां भेजे जाने के बारे में सोचा ही नहीं गया.

>> Receive Satyagrah via email or WhatsApp
>> Send feedback to english@satyagrah.com

  • After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Society | Religion

    After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Satyagrah Bureau | 19 August 2022

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Politics | Satire

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Anurag Shukla | 15 August 2022

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    World | Pakistan

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    Satyagrah Bureau | 14 August 2022

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Society | It was that year

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Anurag Bhardwaj | 14 August 2022