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विज्ञान-तकनीक | ज्ञान है तो जहान है

अगर नींद से जुड़ी परेशानियों से निपटना चाहते हैं तो पहले उसकी यह बारहखड़ी जरूर समझ लें

नींद की समस्याएं बहुतायत में हैं. शायरों ने तो इसे प्यार से जोड़ा हुआ है, लेकिन यह शायरी के सौंदर्यशास्त्र से एकदम उलट चीज है

ज्ञान चतुर्वेदी | 01 मई 2021 | फोटो: पिक्साबे

नींद की समस्या एक ऐसी बीमारी है जिससे तकरीबन पचास प्रतिशत वयस्क परेशान रहते हैं पर बोलते कुछ प्रतिशत ही हैं क्योंकि वे जानते हैं कि यहां नींद में खलल पड़ने को बीमारी ही नहीं माना जाता. ज्यादातर डॉक्टर भी नहीं मानते. मेरे पास आने वाले मरीज, यहां-वहां की तकलीफ बताते हुए, उठते-उठते, ‘पुनश्च’ जैसा कुछ यूं बताते हैं, ‘साहब, आजकल नींद बहुत परेशान करती है! टूट-टूटकर आती है. देर रात तक आती ही नहीं. आकर टूट जाती है. नींद तो पूरी आती है परंतु नींद से उठकर भी दिनभर ऐसी थकान बनी रहती है कि क्या कहें.’ वे मुझे ये बातें बेहद क्षमा भाव से बताते हैं मानो बेवकूफी की कोई बात सुनाने के लिए शर्मिंदा हो रहे हों. कुछ मरीज़ यह भी जोड़ देते हैं कि अब उनकी उम्र भी तो ऐसी हो चुकी है, परंतु फिर भी…! कुल मिलाकर नींद की समस्या बताने को मरीज़ खुद भी डॉक्टर का समय खराब करना मानता है.

नींद की समस्याएं बहुतायत में हैं. शायरों ने तो इसे प्यार से जोड़ा हुआ है लेकिन हम आपको नींद का चिकित्साशास्त्र बताने की कोशिश करेंगे. यह शायरी के सौंदर्यशास्त्र से एकदम उलट चीज है. क्या करें? यथार्थ तो यही है मित्रो.

नींद का चिकित्साशास्त्र बेहद मायावी, मनोरंजक और पेंचदार है. किसी को नींद आखिर क्यों आती है? मान लो कि आंखें बंद ही न करो तो? नींद नहीं आएगी क्या? बचपन में मां से कथा सुनी थी. एक पढ़ाकू व्यक्ति अपनी पलक काट देता है ताकि फिर कभी नींद ही न आए. हम तब भोले थे. कहानी को सच्चा मान गए थे. परंतु क्या वास्तव में आंखें बंद करने का नींद से ऐसा कोई सीधा संबंध है? और जो गहरी नींद में सो जाओ तो फिर कमरे में कोई खटपट होने से, या किसी के पुकारने से आप तुरंत जाग कैसे जाते हो? क्या नींद के सिस्टम में ही जगाने का सिस्टम भी बना हुआ है? यह सब क्या है?

नींद में सपने कब आते हैं? सुबह के सपने याद रहते हैं या देर रात देखे गए? कुछ बच्चे और नौजवान अचानक ही नींद से उठकर रोने-चीखने-चिल्लाने क्यों लगते हैं? इनका कोई चिकित्सीय अध्ययन भी है या कि बस यूं ही. नींद में पूरा दिमाग सो जाता है या इसका कुछ हिस्सा जागकर निगरानी करता रहता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है या नहीं? क्या नींद न आना पागलपन, डिप्रेशन वगैरह का भी संकेत हो सकता है? और बहुत ज्यादा नींद आने को आप क्या कहेंगे? क्या नींद के कम आने, ज्यादा आने, बीच में बार-बार टूटने की जड़ में कुछ शारीरिक विकार भी हो सकते हैं? क्या स्वयं नींद की समस्याओं से भी शारीरिक बीमारियां पैदा हो सकती है? नाइट शिफ्ट में नौकरी करने वालों की नींद की समस्याओं का क्या हल हो सकता है? रातभर खर्राटे मारकर सोते हैं और साथ सोने वालों को सोने नहीं देते और फिर वे ही दिनभर उनींदे रहते हैं तो क्यों? वे इतना सोने के बाद भी क्यों कहते हैं कि हम तो रातभर ठीक से सो ही नहीं पाए, भाई साहब! क्या किसी को अचानक ही ऐसी नींद भी आ सकती है कि आदमी नींद को रोक ही ना सके और अचानक उसके हाथ-पांव तक कुछ देर तक ऐसे लुंज-पुंज हो जाएं मानो लकवा-सा पड़ गया हो?

हम उपर्युक्त बातों में से कुछ के कुछ पक्षों को आपके समक्ष रखने का प्रयास करेंगे. कुछ इसलिए कि पूरी बातें कर पाने की तो शायद हमारे पास जगह ही न हो. चलिए कोशिश करते हैं. एक बेहद कठिन से विषय को एकदम सरल तरीके से समझने की.

प्रश्न यह उठता है कि आदमी सोता क्यों है और वह कौन सा सिस्टम है जो आदमी को जगाए रहता है? सोने और बेहोश होने में क्या फर्क है? हमारे शरीर के समस्त कार्य-व्यापार अंतत: दिमाग द्वारा संचालित होते हैं. शरीर का ‘कॉरपोरेट ऑफिस’ सा होता है मस्तिष्क. कोई भी ऑफिस लगातार तो काम नहीं कर सकता न? ऑफिस भी कुछ घंटों के लिए बंद होता है. आदमी सामान्य तौर पर सात से आठ घंटे सोता है. हां, नवजात शिशुओं और बूढ़ों का मामला अलग है. नवजात शिशु घंटों सोते हैं परंतु उनकी नींद टूट-टूट जाती है. बूढ़ों की नींद भी बार-बार टूटती है.

दिमाग का ‘विद्युत संचार’ कह लें उसे जिसे हम EEG द्वारा रिकॉर्ड करते हैं. जागृत दिमाग का EEG अलग होता है. सोने पर EEG अलग होता है. मस्तिष्क जब सोता है तब EEG की विद्युत तरंगों की गति तथा मात्रा बेहद कम हो जाती है. यह जितनी कम होगी, उतनी गहरी नींद आएगी. सोते समय आपकी मांसपेशियों को भी मस्तिष्क शिथिल कर देता है. हम EMG (इलेक्ट्रोआक्यूलोग्राम) द्वारा इसे रिकॉर्ड कर सकते हैं.

सोते समय नींद के बीच-बीच में, आंखें कुछ देर के लिए बेहद तेज गति से दोलायमान होती हैं जिसे EOG (इलेक्ट्रोआक्यूलोग्राम) द्वारा रिकॉर्ड किया जा सकता है. तेज गति से आंखें चलते समय नींद उथली हो जाती है. इसको REM (rapid eye movement sleep) कहते हैं. बाकी समय नींद में आंखें तेज नहीं चलती और नींद अपेक्षाकृत गहरी होती है. इसे Non rem sleep कहते हैं. नवजात में 50 प्रतिशत नींद REM वाली होती है. वह सोता तो है पर बीच-बीच में उथली नींद के कारण जाग जाता है.

Non rem sleep में भी उथली नींद से गहरी नींद तक चार चरण होते हैं. चौथे चरण की नींद बेहद गहरी होती है. इस स्टेज में EEG में विद्युत तरंगें कम तथा छोटी हो जाती है. रातभर REM और Non rem sleep के बीच आपकी नींद चलती रहती है – कभी गहरी, कभी उथली. साठ प्रतिशत नींद Non REM की स्टेज-I और स्टेज-II में गुजर जाती है तथा बीस प्रतिशत REM में. मतलब यह कि जवानी गुजरते-गुजरते मुश्किल से 20 प्रतिशत नींद ही स्टेज III-IV वाली गहरी नींद होती है. उम्र बढ़ने के साथ यह और कम होती जाती है.

अब आप पूछेंगे कि यह सारी तकनीकी शब्दावली वाला खेल मैंने क्यों दिखाया आपको. यह यूं कि उपर्युक्त जादुई से लगते शब्द आपको ‘स्लीप स्टडी’ नामक जांच के बाद डॉक्टर बता सकता है. नींद की कई तरह की व्याधियों में आजकल ‘स्लीप स्टडी’ की जाती है. इस स्टडी में EEG, EOG तथा EMG तीनों एक साथ किए जाते हैं. तीनों जांचों को मिलाकर बहुत-सी सूचनाएं मिल जाती हैं जो डॉक्टर को दिशा देती है कि नींद की बीमारी की जड़ में आखिर है क्या.

नींद की बीमारियां कौन-कौन सी हो सकती है? उनके बारे में अगली बार.

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