Science-Technology | स्वास्थ्य समस्याएं

वजन कम करने के चमत्कारी दावों में कोई वजन नहीं होता, लेकिन ये खतरनाक जरूर हो सकते हैं!

रातों-रात वजन कम नहीं किया जा सकता और ऐसा करने की कोशिश भी नहीं की जानी चाहिए

Satyagrah Bureau | 30 December 2018

हमारी तरफ मोटे को मोटा नहीं कहते. कहते हैं यार तुम ‘हेल्दी’ हो रहे हो. ऐसा हम ‘हेल्दी’ शब्द का अर्थ न जानने के कारण करते हैं या अपनी उस सांस्कृतिक विरासत के कारण जहां अंधे को अंधा न कहकर ‘सूरदास’ कहने का रिवाज है. बहरहाल, वास्तविकता, बल्कि कटु वास्तविकता यही है कि समाज में ऐसे ‘हेल्दी’ (मोटे) लोग बढ़ रहे है.

मोटे आदमी (इसमें औरतें भी शामिल हैं और खासतौर पर शामिल हैं) की दिली ख्वाहिश होती है कि वे छरहरे बदन के हो जाएं और यह भी कि यह सब काम खटिया पर पड़े-पड़े हो. वे भोजन की मात्रा या उसके वजन बढ़ाने वाले वाले तत्व को कम करना अपने पेट पर लात मारना मानते है. ये लोग पूड़ी, परांठे, अंडा, मुर्गा इत्यादि भकोसते हुए वजन कम कर सकने वाले चमत्कारी फॉर्मूले की तलाश में रहते हैं.

यही लोग हैं जो रातों-रात मोटे आदमी को दुबला बनाने का दावा करने वाली दुकानों के चक्कर में फंसते हैं. क्या चार सप्ताह में दस किलो वजन कम करने की कोई जादुई डाइट या प्रोग्राम हो सकता है? यदि ऐसा हो भी जाए तो क्या यह सुरक्षित है? और क्या ऐसा करने वाले का वजन यह ‘विशेष डाइट’ छोड़ने पर वापस ‘अपनी पुरानी वाली स्थिति’ पर नहीं आ जाएगा?

क्या यह संभव है कि जो वजन आपने वर्षों तक ठूंसकर, अल्लम-गल्लम खाकर तथा आरामतलबी का एक अपनी तरह का सुनहरा जीवन बिताकर हासिल किसा है, उसे रातोंरात कम किया जा सके! इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है जो आप भी खूब जानते है.

ऐसी कुछ भी जादुई चीज नहीं है और जो बताई जाती है उसका आज तक कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. वैसे भी जो चीज स्वयंसिद्ध है उसके लिए वैज्ञानिक क्यों समय खराब करें? दूसरी बात यह कि दुबला करने, तेजी से छरहरे बनाने और इसी तरह के चमत्कारिक परिणाम देने वाली एक बड़ी ‘हेल्थ इंडस्ट्री’ खड़ी हो गई है. यह धंधे के सारे हथकंडे अपनाकर अपने ग्राहकों को यह भ्रम देती रहती है कि वे एक सिद्ध वैज्ञानिक गणित पर चलते हुए गोलमटोल को सरल रेखा में तब्दील कर देंगे.

आप अच्छी तरह जान लें कि रातों-रात वजन कम नहीं किया जा सकता. करने की कोशिश भी नहीं की जानी चाहिए, वे सटीक, आकर्षक विज्ञापन जिनमें एक तरफ एक थुलथुल भद्दी सी मोटी महिला की तसवीर होती है और दूसरी ओर चार सप्ताह का कोर्स लेने के बाद इसी महिला की छरहरी सुंदर काया वाली कामिनी की तसवीर होती है – कृपया इनके चक्कर में न पड़ें. हमें ये प्रस्ताव लुभाते अवश्य हैं क्योंकि आदमी की मानसिकता शार्टकट्स तलाशने और चोर रास्तों पर चलने की बन गई है. मैं इन चोर रास्तों से आपको आगाह करने के लिए ही यह लेख लिख रहा हूं.

आपका वजन हड्डियों, फैट (वसा), प्रोटीन (मांसपेशियां) तथा पानी से बनता है. जब आप वजन बढ़ा लेते हैं तो यह मूलत: फैट अर्थात चर्बी के कारण ही बढ़ता है. चर्बी शरीर को यहां-वहां से बेडौल बनाती है और कैंसर, डायबिटीज, हार्ट-अटैक तथा आर्थराइटिस आदि बीमारियों को न्योता भी देती है. अब यदि आप आज अपना वजन कम करना चाहेंगे तो कायदे से इसी चर्बी को कम करने की कोशिश करनी होगी. वजन भी कम होगा और आप उक्त बीमारियों से भी बचेंगे परंतु चर्बी कम करना, वह भी रातोंरात, लगभग असंभव बात है. तो ये लोग जो रातोंरात वजन कम कर देते हैं वह कहां से कम होता है? वह कितना सुरक्षित है? यह जान लें कि आधा किलो चर्बी का मतलब है चार हजार पांच सौ कैलोरी जबकि आधा किलो प्रोटीन का मतलब है मात्र दो सौ कैलोरी.

तो जो तुरंत वजन कम कर देने वाले फॉर्मूले हैं वे शरीर की मांसपेशियों और पानी को कम करके वजन कम करते है. चर्बी पर उनका प्रभाव बहुत कम होता है. यह नुकसानदायक है. कुछ ऐसे फॉर्मूलों में ‘हाई प्रोटीन डाइट’ दी जाती है जो लिवर तथा किडनी पर इतना लोड डाल सकती है कि इससे गॉल ब्लेडर की पथरी हो सकती है, वहीं यह पोटेशियम में तब्दीली लाकर दिमाग तथा दिल पर जानलेवा असर डाल सकती है.

मार्च, 1990 में अमेरिकी संसद की सब कमेटी ने इस तरह के डाइट प्रोग्रामों को ‘अवैज्ञानिक’ तथा ‘खतरनाक’ बताया था. उस कमेटी में 48 वर्षीय एक कॉलेज प्रोफेसर का केस भी प्रस्तुत हुआ था जिसका मस्तिष्क प्रोटीन तथा पोटेशियम की कमी के कारण हमेशा के लिए डैमेज हो गया था – वे ऐसे ही ‘रातोंरात वजन कम करने’ की किसी क्लीनिक में ऐसा करते हुए कोमा में चले गए थे और फिर स्थायी रुप से मानसिक विकलांग हो गए. ऐसे ही अनगिनत केस गॉल ब्लेडर में पथरी के भी हुए थे. इनके लिए ‘कोर्ट के बाहर’ लाखों रुपयों की क्षतिपूर्ति भी हुई थी.

एक जमाने में मोटापा पश्चिमी जगत की समस्या थी, खासकर अमेरिका वालों की. अब यह हमारी भी समस्या बन गई है. ‘मोटापा कम करना’ एक बड़े बाजार की संभावना भी बनी है. तभी तो कानपुर, लखनऊ और भोपाल जैसे शहरों तक ‘रातोंरात वजन घटाने’ की दुकानें खुल गई हैं. तरह-तरह के विज्ञापन हैं. बिना हिले-डुले, बिना खाना कम किए ही वजन कम करने के दावे हैं. पढ़कर अच्छा भी लगता है. विश्वास करने का मन भी करता है. लोग करते भी हैं. पैसे भी फूंकते हैं. जबकि कौन नहीं जानता कि ठीक से भोजन की मात्रा, मीठे व्यंजनों तथा तेल-घी की मात्रा पर समझदारी से नियंत्रण किया जाए और बीस- पच्चीस मिनट का व्यायाम हो तो प्राय: सभी केसों में मोटापा कम किया जा सकता है. इनके बारे में मैं आगे आपको बताऊंगा. अभी तो बस यह संदेश पर्याप्त है कि रातों-रात दुबला कर देने वाले मायावी झांसों में न आएं.

>> Receive Satyagrah via email or WhatsApp
>> Send feedback to english@satyagrah.com

  • After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Society | Religion

    After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Satyagrah Bureau | 19 August 2022

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Politics | Satire

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Anurag Shukla | 15 August 2022

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    World | Pakistan

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    Satyagrah Bureau | 14 August 2022

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Society | It was that year

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Anurag Bhardwaj | 14 August 2022