जितने रंग मोनालिसा की तस्वीर में हैं, उससे कहीं ज्यादा इसके रचनाकार और महान कलाकार लियोनार्दो द विंची की जिंदगी में थे
पुलकित भारद्वाज | 02 मई 2021
हमारे यहां आमतौर पर बच्चों से पूछा जाता है, ‘बड़े होकर क्या बनोगे?’ बदले में अलग-अलग जवाब सुनने को मिलते हैं. कोई कहता है डॉक्टर, कोई इंजीनियर, किसी का सपना कलाकार बनने का होता है तो कोई आर्किटेक्ट बनने की ख्वाहिश रखता है. लेकिन अगर कोई बच्चा जवाब में इन सारे पेशों को गिना दे तो? और अगर आपसे कहा जाए कि उस बच्चे को आंशिक डिस्लेक्सिया (अक्षर समझने में दिक्कत होना) भी है. जाहिर है आप चौंक जाएंगे. लेकिन लियोनार्दो द विंची ने इस दिक्कत के बावजूद न सिर्फ इन सभी क्षेत्रों में अपने हुनर को आजमाया बल्कि अमिट शोहरत भी हासिल की.
लियोनार्दो का जन्म 15 अप्रैल 1452 को टस्कनी (वर्तमान इटली) के अंचियानो गांव में हुआ था. चूंकि यह गांव विंची कस्बे के नजदीक स्थित था इसलिए लियोनार्दो के साथ ‘विंची’ हमेशा के लिए जुड़ गया और उन्हें लियोनार्दो द विंची कहा जाने लगा. लेकिन इसके अलावा एक नाम और था जिससे उन्हें जाना जाता था. दरअसल कला, विज्ञान, वास्तु और तकनीक जैसे तमाम क्षेत्रों में उनके अद्भुत योगदान को देखते हुए लोग उन्हें ‘पुनर्जागरण का प्रणेता’ भी कहते थे. यूरोप के लिए पुनर्जागरण वह दौर था जब यह पूरा महाद्वीप प्लेग की महामारी (14वीं सदी) से हुई अभूतपूर्व क्षति से उभर रहा था.
लियोनार्दो के जीवन का कड़वा सच
बताया जाता है कि बचपन से ही लियोनार्दो में वह विलक्षणता कूट-कूट कर भरी थी जो उन्हें हमउम्र बच्चों से अलग करती थी. लेकिन इस विलक्षणता से कहीं ज्यादा लियोनार्दो के जीवन से जुड़ा एक कड़वा सच उनके और बाहर की दुनिया के बीच दीवार बनकर खड़ा था. दरअसल लियोनार्दो का जन्म उनके माता-पिता की शादी से पहले हो गया था. उनकी मां एक गरीब परिवार से थीं और पिता बेहद कुलीन. नतीजतन उन दोनों की शादी नहीं हो पायी. पांच साल तक लियोनार्दो अपनी मां के साथ ही रहे. बाद में उनकी मां ने अपनी बिरादरी के किसी दूसरे आदमी से शादी कर ली और लियोनार्दो अपने पिता के पास चले आए.
चित्रकार बनने की तरफ पहला कदम
अपनी पहचान को लेकर झिझक और पढ़ाई-लिखाई में मन न लगने के कारण लियोनार्दो स्कूल से ज्यादा वक्त नजदीकी जंगल में घूमने-फिरने में गुजारते थे. यहां पक्षियों से लेकर झरनों तक हर वह चीज जिसे लियोनार्दो घर नहीं ले जा सकते थे, उसकी तस्वीर बनाकर वे अपने साथ रखने लगे. कुछ सालों बाद जब उनके पिता को यह बात पता चली तो पहले-पहल तो वे नाराज़ हुए, लेकिन बाद में बेटे के हुनर को समझते हुए उन्होंने लियोनार्दो को फ्लोरेंस शहर के सबसे मशहूर चित्रकार और मूर्तिकार वेरोचियो के पास भेज दिया.
हमेशा शब्दों से उलझते लियोनार्दो को वेरोचियो इस कदर भाए कि उनके साथ रहते हुए उन्होंने रसायन शास्त्र, धातु शास्त्र, त्वचा और चमड़े से जुड़े ज्ञान, प्लास्टर बांधना, लकड़ी का काम, मॉडलिंग और चित्रकारी जैसी कई विधाओं का बारीकी से अध्य्यन किया. बाएं हाथ से काम करने वाले लियोनार्दो में एक खूबी यह भी थी कि वे सबसे अलग कागज पर दायें से बायें लिख सकते थे. उनकी लिखावट की खासियत यह भी थी कि उनके सारे शब्द उल्टे यानी दर्पण प्रतिबिम्ब होते थे जिन्हें सिर्फ लियोनार्दो समझ पाते थे.
खुद की पहचान बनाई
20 वर्ष के होते-होते लियोनार्दो की चित्रकारी की शिक्षा पूरी हो चुकी थी. इसके बाद उन्होंने अपने उस्ताद वेरोचियो के साथ जीसस क्राइस्ट के बैप्टिज्म (ईसाइयों में पवित्र जल छिड़कने की रस्म) की तस्वीर बनाई. कहते हैं यह तस्वीर वेरोचियो के जीवन की सर्वश्रेष्ठ कृति थी. इसे बनाने में लियोनार्दो ने ऑयल पेटिंग की जिन तकनीकों का इस्तेमाल किया उन्हें पहले किसी और ने इस्तेमाल नहीं किया था. अपने शागिर्द का यह हुनर देखकर गद्गद हुए वेरोचियो ने हमेशा के लिए कूची नीचे रख दी और चित्रकारी से संन्यास ले लिया. इस तरह लियोनार्दो फ्लोरेंस के जनमानस में एक प्रभावशाली चित्रकार के रूप में पैठ बनाने में सफल रहे.
जब लियोनार्दो मौत की सजा से बाल-बाल बचे
1476 में लियोनार्दो और उनके चार दोस्तों पर गैरकानूनी ढंग से यौनाचार करने का आरोप लगा. उस समय फ्लोरेंस में इसके लिए मौत की सजा का प्रावधान था. लियोनार्दो की जीवनी ‘लाइफ फ्रॉम बिगिनिंग’ के मुताबिक लियोनार्दो को उस समय फ्लोरेंस की सबसे मशहूर तवायफ के साथ पकड़ा गया था. लेकिन पर्याप्त गवाहों और सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया. इस घटना के बाद लियोनार्दो दो साल तक किसी को नजर नहीं आए.
विवादित संबंध
लियोनार्दो ने ताउम्र शादी नहीं की थी. लेकिन इस बीच उनके कई महिला मित्रों से संबंध होने की खबरें सामने आती रहीं. इनमें बीट्राइस और इजाबेला नाम की दो बहनें सबसे प्रमुख थीं. लाइफ फ्रॉम बिगिनिंग में लिखा है कि लियोनार्दो ने इजाबेला की कई तस्वीरें भी बनाई थीं जो वक्त के साथ खोती चली गयीं.
लियोनार्दो से जुड़े विवाद यहीं आकर नहीं थमे. उनके दो चहेते शागिर्द थे, सलाइ और मेल्जी. बताया जाता है कि इन दोनों के साथ उनको कई बार आपत्तिजनक अवस्थाओं में देखा गया था.
फ्लोरेंस से मिलान का सफ़र
लियोनार्दो को संगीत से भी गहरा लगाव था. 1482 में उन्होंने घोड़े के सिर के आकार का एक वाद्ययंत्र बनाया. इसे देख फ्लोरेंस के ड्यूक (सामंत जैसी एक पदवी) लियोनार्दो से बेहद खुश हुए और उन्होंने वह उपकरण बतौर तोहफा मिलान के ड्यूक के पास भिजवाया. इसे खुद लियोर्दो लेकर गए थे. वहां जाकर लियोनार्दो ने खुद को किसी चित्रकार के बजाय फौजी मशीनरी के जानकार की तरह पेश किया. उनको लगता था कि इस तरह उन्हें मिलान में अपेक्षाकृत ऊंचा पद मिल सकता है. ड्यूक की नजरों में खुद को साबित करने के लिए लियोनार्दो ने जंगी मशीनों के कई चित्र बनाए जिनमें दोनों तरफ तलवार लगे रथ, धातु के टैंक और बड़े धनुष शामिल थे. ड्यूक लियोनार्दो की कलाकारी से बेहद प्रसन्न हुए और इसके बाद लियोनार्दो के 17 साल मिलान में ही गुजरे.
‘द लास्ट सपर’ की रचना और मिलान छोड़ना
समय के साथ लियोनार्दो की प्रसिद्धि चारों तरफ फैल रही थी. उस जमाने में ड्यूक नाममात्र के शासक होते थे. सारा नियंत्रण पोप और चर्च के हाथों में रहता था. इसलिए राजसंरक्षण पाने वाले सभी कलाकारों को उसी तरह की कृतियों की रचना करनी होती थी जो धार्मिक होने के साथ-साथ चर्च को भी स्वीकार्य हों. इसी दौर (1490 के दशक में) में लियोनार्दो ने ‘द लास्ट सपर’ नाम की वह रचना पूरी की जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा.
इस चित्र में ईसा मसीह (जीसस) अपने बारह शिष्यों के साथ सफेद चादर बिछी एक मेज पर रखे भोजन को ग्रहण करते दिखाए हैं. बताया जाता है कि जूडस नाम का वह अनुयायी भी इस समय भोज में शामिल था जिसने आगे चलकर ईसा मसीह को धोखा दिया. जीसस इस बात को जानते थे. बाइबिल के मुताबिक वे कहते हैं कि ‘तुम लोगों में से कोई एक विश्वासघात करने वाला है.’ ये शब्द सुनकर उनके अनुयायियों में हलचल मच जाती है और वे इस पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया देते हैं. बताया जाता है कि इन्ही क्षणों की कल्पना करते हुए लियोनार्दो ने इस तस्वीर को उकेरा था.
कहते हैं कि इसे बनाने में लियोनार्दो को तकरीबन तीन साल का समय लगा था. द लास्ट सपर की खासियत यह है कि इसमें सभी अनुयायियों के चेहरे और भावभंगिमाएं बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती हैं. वे एक-दूसरे के निकट और जीसस से दूर हैं. दूसरी तरफ इस तस्वीर के मध्य में जीसस हैं जो अपने अनुयायियों से घिरे हुए हैं और उसके बावजूद बिल्कुल अकेले दिखते हैं. इस तरह के गूढ़ संदेशों के चलते इस तस्वीर को दुनिया भर में एक अलग ही स्थान प्राप्त है.
लेकिन द लास्ट सपर लियोनार्दो की अंतिम रचना नहीं थी. इसके बाद भी वे ड्यूक की पसंद की कलाकृतियां बनाते रहे. लेकिन जब 1499 में जंग के दौरान फ्रांसिसी सेना ने मिलान में प्रवेश किया तो ड्यूक और उसके परिवार के साथ लियोनार्डो को भी यह शहर छोड़ना पड़ा.
उस अद्भुत कृति की रचना जिसने लियोनार्दो को अमर कर दिया
मिलान को छोड़े चार साल होने को आए थे. लियोनार्दो ने एक बार फिर अपनी कूची उठाने की ठानी. शायद ही उन्हें अंदाजा रहा हो कि भविष्य में यही कृति उनकी पहचान बनने वाली है. 1503 में लियोनार्दो ने रहस्यमयी मुस्कान वाली रहस्यमयी महिला ‘मोनालिसा’ के चित्रण का काम शुरु कर दिया. जानकार कहते हैं कि लियोनार्दो ने इस तस्वीर में मोनालिसा के मुंह के किनारों और आंखों को इस तरह छायांकित किया है कि मोनालिसा की मुस्कान के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं. इन्हीं अलग-अलग मतों के चलते यह तस्वीर हमेशा विवादस्पद रही है.
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मोनालिसा की मुस्कान में दैवीय प्रभाव है तो वहीं दूसरों का मानना है कि इन भावों के जरिए वह अपने दुखों को छिपाने की कोशिश कर रही है. उधर, कुछ लोग कहते हैं जिस तरह से मोनालिसा का चित्रण किया गया है उससे पता चलता है कि वह गर्भवती होने के साथ-साथ अपने जीवन को लेकर बहुत निश्चिन्त भी है.
मोनालिसा के भावों के अलावा मोनालिसा की पहचान भी आज तक रहस्यमयी बनी हुई है. कुछ लोगों का मानना है कि मोनालिसा नेपल्स की राजकुमारी की तस्वीर है. कई जानकार कहते हैं कि यह चित्र लियोनार्दो ने अपनी मां की याद में बनाया था. वहीं कई विशेषज्ञों का कहना है कि मोनालिसा कोई औरत थी ही नहीं बल्कि वह लियोनार्दो के शिष्य सलाई का औरत के भेष में बनाया गया चित्र है. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मोनालिसा कोई और नहीं बल्कि लियोनार्दो द्वारा औरत के भेष में खुद की ही बनाई तस्वीर है. कई आधुनिक जांचों में मोनालिसा के भावों और लियोनार्दो द विंची के चेहरे में कई समानताएं होनें की खबरें सामने आती रही हैं.
इन रहस्यों के अलावा मोनालिसा कई और मायनों में भी खास है. कई जानकार कहते हैं कि इस तस्वीर को लियोनार्दो ने 1506 तक तैयार कर लिया था, जबकि कुछ लोगों का यह मानना है कि वे इस तस्वीर में मोनालिसा के होठों को 1517 तक बनाते रहे थे. इसके अलावा यह तस्वीर अपने-आप में ऐसा पहला उदाहरण है जिसमें किसी विषयवस्तु के पीछे काल्पनिक प्राकृतिक दृश्यों को उकेरा गया हो. साथ ही जब आप इस तस्वीर को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि लियोनार्दो ने क्षितिज की रेखा को आम तरीके की तरह मोनालिसा की गर्दन के पीछे बनाने के बजाय उसकी आंखों के पीछे बनाया है. यह एक ऐसा तरीका है जो मोनालिसा के भावों को और रहस्यनुमा बनाता है.
पिछले 500 सालों से यह तस्वीर लियोनार्दो के अद्भुत हुनर की गवाह बनी हुई है. हालांकि इसके बाद उन्होंने और भी कई तस्वीरें बनाईं जो प्रसिद्ध तो हुईं लेकिन उनमें से कोई भी मोनालिसा की बराबरी नहीं कर पायी. बाद के वर्षों में लियोनार्दो ने ‘वर्जिन एंड चाइल्ड विद सेंट एन्ने’ नाम की एक तस्वीर बनाई थी जो काफी सराही गयी थी. इस तस्वीर में जीसस को एक मेमने के साथ खेलता दिखाया गया है. लियोनार्दो मानते थे कि किसी भी चित्रकार को चित्रकारी के लिए सिर्फ दो विषयवस्तु चाहिए होती हैं. एक तो कोई इंसान और दूसरी, उसकी रूह की चाह.
विज्ञान से जुड़ाव
लियोनार्दो द विंची ने अपनी प्रतिभा को सिर्फ चित्रकारी तक समेट कर नहीं रखा बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में भी उन्होंने जमकर हाथ आजमाया. वे कला और विज्ञान में कोई फर्क नहीं समझते थे. उनके नजरिए में दोनों ही विषयों की अहमियत बराबर थी. लियोनार्दो का मानना था कि विज्ञान पढ़ने वाला व्यक्ति हमेशा एक बेहतर कलाकार साबित होता है. अपनी बात को बखूबी साबित करते हुए विंची ने अपने जीवनकाल में वनस्पति शास्त्र, प्राणी शास्त्र, जीव विज्ञान, भूगर्भ शास्त्र और द्रव विज्ञान सहित ज्ञान के कई क्षेत्रों का अध्ययन किया था.
इन विषयों का अध्ययन करते हुए लियोनार्दो मनुष्य समेत जानवरों के मृत शरीरों पर प्रयोग कर अंगों की कार्यप्रणाली समझने की कोशिश करते थे. बताया जाता है कि उन्होंने स्नायुतंत्र और मांसपेशियों के शरीर के अंगों पर प्रभाव को अपने समय में सर्वाधिक सटीकता के साथ समझाया था. वे ऐसे पहले वैज्ञानिक थे जिसने जिगर से जुड़ी भयंकर बीमारी सिरोसिस को परिभाषित किया था.
इसके अलावा लियोनार्दो को मानव शरीर के चित्र बनाना भी बेहद पसंद था. उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का चित्र बनाया था जिसके हाथ-पैरों की अवस्थाएं सोलह आकृतियां बनाती हैं. जानकार मानते हैं कि इस चित्र में मानव काया को ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड को उकेरा गया है.
इसके अलावा लियोनार्दो को प्रकाशिकी, भौतिकी, रसायन शास्त्र, उड्डयन विज्ञान, अभियांत्रिकी और ज्यामिती शास्त्र में भी महारत हासिल थी. उन्होंने उस जमाने में सफलतापूर्वक आज की मशीनों की कार्यप्रणाली की मूल अवधारणा को प्रतिपादित कर दिया था.इनमें पुली, क्रैंक, गियर आदि शामिल हैं. उन्होंने विमानों के अलावा पैराशूट और ग्लाइडर की कार्यप्रणाली की भी कल्पना की थी जिनकी कार्यप्रणाली आज के विमानों से काफी मिलती जुलती है.
हालांकि लियोनार्दो की खोजों को उस समय के विद्वानों ने नकार दिया था. इसकी वजह थी कि उन्हें तत्कालीन लैटिन भाषा नहीं आती थी. फिर भी विलक्षण प्रतिभा के धनी लियोनार्दो द विंची ने कभी हालात से हार नहीं मानी और अपनी चित्रकारी के साथ अपने शोध हमेशा जारी रखे. हां, यह बात और है कि असाधारण ढंग से इतने क्षेत्रों में छोटी-बड़ी कई देनों के बावजूद लियोनार्डो अपनी उपलब्धियों से खासे खुश नहीं थे. बताया जाता है कि दो मई 1519 को प्राण त्यागने से पहले उनके अंतिम शब्द थे, ‘मैं ईश्वर और समस्त मानवजाति का गुनहगार हूं. मेरा काम गुणवत्ता के उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया जहां उसे पहुंचना चाहिए था .’
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