एक समय था जब हर लड़का ख्वाबों में माधुरी दीक्षित को देखता था, हर लड़की माधुरी बनना चाहती थी और बड़ों को उनमें अपनी बहू या बेटी नजर आती थी
अंजलि मिश्रा | 15 मई 2020 | फोटो: स्क्रीनशॉट
80-90 का दशक वह वक्त था जब मीडिया फिल्म सेलिब्रिटीज की जिंदगी में अच्छे से पैठ बना चुका था. नायक-नायिकाओं के किस्से फ़िल्मी मैगजीन में छपने लगे थे. उसी दौरान अबोध (1986) के साथ एक नई अभिनेत्री ने फ़िल्मी दुनिया में पांव रखा. उसकी अदाएं सौम्य होने के साथ-साथ इतनी जानी-पहचानी थीं कि ऐसा लगता था जैसे वह अभी-अभी हमारे बीच से उठकर गई हो. यह अभिनेत्री माधुरी दीक्षित थी. माधुरी उन लोगों में शामिल थीं जिनके किस्सों के साथ-साथ उनकी खूबसूरत चेहरा भी बड़े साइज़ में फिल्म पत्रिकाओं में छपा करता था. और ये तस्वीरें बतौर पोस्टर लोगों के कमरों की दीवारों पर लगती थीं और इस पर घर के किसी सदस्य को कोई आपत्ति नहीं होती थी. माधुरी दीक्षित शायद वह आखिरी अभिनेत्री हैं जो अपने रील और रियल, दोनों जीवनों में भारतीय मध्यमवर्ग का आदर्श थीं.
एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार से ताल्लुक रखने वालीं माधुरी का जीवन भी ऐसे परिवारों के लिए आदर्श कहा जा सकता है. हिन्दुस्तान के ऐसे ज्यादातर परिवारों का सपना होता है कि उनका बेटा इंजीनियर और बेटी डॉक्टर बने. उस डॉक्टर बेटी से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह करियर के साथ अपनी गृहस्थी भी अच्छी तरह संभाले. माधुरी का अभी तक का सफर इन दोनों मोर्चों पर खरा उतरता दिखता है.
माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई करते हुए 18 साल की उम्र में जब माधुरी दीक्षित ने अभिनय करना शुरू किया था तो यह भी उनके लिए एक उपलब्धि ही थी. उनका करियर देखने से लगता है कि जैसे बस शुरुआत करने की ही देर थी. एक बार शुरुआत हो गई तो फिर ऐसा हो गया कि जिस पर वे हाथ धरें वह चीज सोना बन जाए. हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि अबोध से लेकर तेज़ाब और फिर गुलाब गैंग तक पहुंचने का उनका सफर निर्बाध रहा. अपने हिस्से का संघर्ष उन्होंने भी किया.
छोटी-बड़ी मुश्किलें उनके सफर का भी हिस्सा रहीं. ऐसी ही छोटी सी मुश्किल थी मुंहासों की जो मिडिल क्लास को फिर से उन्हें खुद से जोड़कर देखने का मौका देती है. माधुरी मराठी परिवार से हैं. मराठी खाना ढेर सारे तेल और ज्यादातर खोपरे ( नारियल) के साथ बनाया जाता है. ऐसे खानपान से मुंहासे हो जाना आम बात है. माधुरी दीक्षित भी एक वक्त में ऐसे ही मुंहासों से परेशान रहीं. इतनी परेशान कि ढेर सारा मेकअप भी कैमरे की नजर से उनके मुंहासे नहीं छुपा पाता था. लेकिन मुंहासों से परेशान यह आम लड़की तब भी ख़ास थी.
90 का दशक उनका सुनहरा दौर कहा जा सकता है. राम लखन से लेकर परिंदा, साजन, बेटा, हम आपके हैं कौन, दिल तो पागल तक तमाम फिल्में माधुरी को उस बुलंदी तक ले गईं जहां पहुंचकर किसी का भी दिमाग खराब हो सकता है. लेकिन माधुरी काफी हद तक हमेशा वैसी ही रहीं जैसी अपनी पहली फिल्म के वक्त थीं. उन्होंने लोकप्रियता का वह दौर देखा है जब हर लड़का ख्वाबों में माधुरी को देखता था और हर लड़की माधुरी दीक्षित बनना चाहती थी. माधुरी अपने वक्त का एक ऐसा चेहरा बन गई थीं कि हर कोई उनसे अपना कोई न कोई रिश्ता जोड़ ही लेता था. घर के बड़े-सयानों को शायद उनमें अपनी बेटी या बहू नजर आती थी, नई पीढ़ी को अपनी प्रेमिका और लड़कियां या तो उन जैसी बन जाना चाहती थीं या फिर उन्हें देख-देखकर थोड़ी जली-भुनी रहती थीं कि हाय मैं इतनी सुंदर क्यों न हुई.
माधुरी एक ही वक्त में कॉलेज की लड़कियों के लिए भी आदर्श थीं और गृहणियों के लिए भी. साजन और दिल तेरा आशिक देखने के बाद कॉलेज की लड़कियां जहां माधुरी जैसे बाल और मुस्कराहट चाहती थीं तो हम आपके हैं कौन के बैकलेस ब्लाउजों ने उनहें शादीशुदा महिलाओं के लिए भी फैशन आइकन बना दिया. देवदास में चंद्रमुखी बनी माधुरी के पहने लहंगे लंबे समय तक डिमांड में रहे.
फ़िल्मी दुनिया में कलाकारों से जुड़ी लव गॉसिप्स सबसे ज्यादा मिर्च-मसाला लगाकर सुनाई और बेची जाती हैं. माधुरी भी इन सबसे अछूती नहीं रहीं. अनिल कपूर, संजय दत्त और यहां तक कि तीनों खानों के साथ भी उनके प्रेम के किस्से फ़िल्मी पत्रिकाओं में जमकर छपे. इन सबमें सबसे ज्यादा समय तक उनका नाम संजय दत्त के साथ जोड़ा गया. कहा जाता है कि खलनायक फिल्म की शूटिंग के दौरान ये दोनों एक दूसरे के करीब आए थे. कहा यह भी जाता है कि संजय दत्त का नाम टाडा में आते ही माधुरी ने बड़ी सफाई के साथ उनसे किनारा कर लिया.
माधुरी दीक्षित ने अपने करियर का चढ़ाव देखा, शीर्ष देखा लेकिन, ढलान वाले रास्ते से उन्हें नहीं गुजरना पड़ा. इसकी वजह भी उनकी समझदारी ही थी. सुनहरा दौर देखने के बाद माधुरी ने एक सही वक्त चुनकर डॉ श्रीराम नेने से शादी कर ली. इसके बाद अपने दो बेटों की परवरिश के लिए उन्होंने पूरा वक्त लिया और इस दौरान सिनेमा से दूरी बनाये रखी. श्रीराम नेने ने एक साक्षात्कार में स्वीकारा था कि उन्हें लंबे समय तक यह अंदाजा नहीं हुआ कि उनकी पत्नी हिन्दुस्तान की कितनी बड़ी हस्ती है. अपनी पढ़ाई और प्रैक्टिस के चलते नेने लंबे समय से भारत से दूर रहे थे और फिल्मों में रुचि न होने से उन्हें बॉलीवुड की जानकारी न होना स्वाभाविक था. यह माधुरी की सरलता ही थी कि उन्होंने न सिर्फ खुद को बल्कि अपने करीबियों को भी फ़िल्मी दुनिया की चौंधिया देने वाली चमक से दूर रखा और एक आदर्श गृहस्थी बनाई. अब इससे फुर्सत पाकर वे करियर की दूसरी पारी खेल रही हैं.
मशहूर कोरियोग्राफर टेरेंस लुईस ने एक रियलिटी शो के दौरान माधुरी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सुनाया था. देवदास के बाद के दौर में माधुरी ने फिल्मों से थोड़ी दूरी बना ली थी. उस समय उनका वजन थोड़ा बढ़ गया था जिसे नियंत्रित करने के लिए टेरेंस उन्हें सुबह-सबेरे एरोबिक्स सिखाने जाया करते थे. टेरेंस बताते हैं कि हर सुबह उन्हें माधुरी के हाथ की बनी चाय मिलती थी और ऐसा माधुरी सिर्फ इसलिए करती थीं कि दिनभर उनकी सेवा में रहने वाले उनके नौकरों की नींद में कोई खलल न पड़े. संभव है कि चाय बनाना माधुरी के लिए छोटी बात हो मगर, जिसने माधुरी के हाथ की चाय पी उसके लिए तो यह किसी सपने जैसा था और इसलिए टेरेंस टीवी पर यह किस्सा सुनाते हुए अभिभूत थे. माधुरी की यही सहजता उन्हें अब तक माध्यम वर्ग का आखिरी आदर्श बनाए हुए है.
बहुत से लोग मानते हैं कि शोखी, हुनर और खूबसूरती की जैसी मिसाल मधुबाला थीं वैसी दूसरी मिसाल माधुरी बनीं. मधुबाला के बाद जिस मुस्कराहट पर हर भारतीय फ़िदा रहा वह माधुरी दीक्षित के चेहरे पर आती है. इस मुस्कराहट में वह जादू है कि हर कोई उसे अपना मान बैठता है. यह मुस्कराहट अब गाहे-बगाहे किसी रियलिटी शो या फिर माधुरी की ऑनलाइन डांस क्लास ‘डांस विद माधुरी’ में देखने को मिलती रहती है. साल 2018 में माधुरी अपने चाहने वालों के लिए खास तोहफा लेकर आईं. इस साल मई में उनकी पहली मराठी फिल्म ‘बकेट लिस्ट’ रिलीज हुई. गैर-मराठी दर्शकों ने इसे सिनेमा हॉल में न सही लेकिन इंटरनेट पर खूब देखा और सराहा. बीते कुछ वक्त से वे बतौर प्रोड्यूसर मराठी के कई सिने प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. लेकिन, उम्मीद है कि इसके बाद भी माधुरी सालों साल उसी अंदाज में, परदे पर भी अपनी वही मुस्कान बिखेरती रहेंगी जिसे देखकर हर कोई सोचेगा कि अरे, यह तो बस मेरे ही लिए है!
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