नमाज रमज़ान इस्लाम

Society | सिर-पैर के सवाल

रमज़ान हर साल एक ही मौसम में क्यों नहीं आता?

सवाल जो या तो आपको पता नहीं, या आप पूछने से झिझकते हैं, या जिन्हें आप पूछने लायक ही नहीं समझते

Anjali Mishra | 18 April 2021 | फोटो: पिक्साबे

शहादा, सलात, साम, ज़कात और हज इस्लाम के पांच स्तंभ बताए जाते हैं. शहादा यानी अल्लाह पर विश्वास, सलात यानी पांच वक्त की प्रार्थना (नमाज़), ज़कात यानी दान-पुण्य, हज यानी मक्का की तीर्थयात्रा और साम यानी रमज़ान के महीने में रोजे रखना.

इस्लाम को मानने वाले रमज़ान के महीने में लगातार तीस दिनों तक सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच रोज़ा रखते हैं. यानी इस दौरान वे कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं. इतने लंबे समय तक उपवास रखना वैसे भी मुश्किल काम है और यह तब और भी मुश्किल हो जाता है जब रमज़ान का महीना गर्मियों के मौसम में पड़ता है. अब यहां पर सवाल किया जा सकता है कि ऐसा क्यों जरूरी नहीं है कि रमज़ान हर बार एक ही मौसम में आए?

दरअसल रमज़ान इस्लामिक या हिज़री कैलेंडर का नवां महीना है और ईद इसी कैलेंडर के दसवें महीने (शव्वाल) की पहली तारीख. हिज़री कैलेंडर चंद्रमा की गति पर आधारित होता है. यानी इस कैलेंडर में नए महीने की शुरुआत नया चांद दिखने के साथ होती है. इसके उलट, लगभग दुनिया भर में इस्तेमाल किया जाने वाला ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य की गति पर आधारित होता है.

इन कैलेंडरों में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार गणना होने के चलते हर साल दस दिनों का फर्क आ जाता है. इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर में जहां 365 दिन होते हैं, वहीं हिज़री कैलेंडर में केवल 355 दिन ही होते हैं. इस फर्क के कारण रमज़ान का महीना ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर साल दस दिन पीछे चला जाता है. ऐसा होने पर हमें लगता है कि बीते साल जुलाई यानी बारिशों में पड़ने वाला रमज़ान इस बार जून यानी गर्मियों में आया है. या फिर पिछली साल मार्च में आने वाला रमजान इस बार फरवरी में पड़ रहा है. इससे और थोड़ा आगे जाएं तो अगर किसी साल रमजान जून यानी तपती गर्मियों में पड़ा है तो उसके 18 साल बाद वह दिसंबर यानी उत्तर भारत की कंपकंपाने वाली सर्दियों में शुरू होगा.

कैलेंडरों में फर्क होने के अलावा इस्लाम के अलग-अलग फिरक़ों में भी नए महीने की शुरूआत निर्धारित करने के अलग-अलग तरीके हैं, उनके कारण भी रमज़ान के शुरू होने की तारीख अलग-अलग इलाकों में बदल जाती है. उदाहरण के लिए ज्यादातर फिरके जहां चंद्रमा पर आधारित हिजरी कैलेंडर पर भरोसा करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नए चांद का उदय जानने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर भरोसा करते हैं. साथ ही, कहीं-कहीं पर लोग अपने समुदाय के मुखिया द्वारा चांद के देखे जाने की घोषणा का भी इंतज़ार करते हैं और इससे रमज़ान की शुरूआत मानी जाती है या ईद मनाने की घोषणा की जाती है.

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