Society | जन्मदिन

आज 71 साल के हो रहे रजनीकांत की पहली हिंदी फिल्म ‘अंधा कानून’ देखना कैसा अनुभव है

साल 1983 में रिलीज हुई, रजनीकांत की हिंदी डेब्यू फिल्म ‘अंधा कानून’ में अमिताभ बच्चन गेस्ट अपीयरेंस में नजर आए थे

Anjali Mishra | 12 December 2021

साल 1981 में तमिल फिल्म ‘सत्तम ओरू इरुत्तराई’ रिलीज हुई हुई थी. जबर्दस्त हिट रही इस फिल्म में आज के नेता और उस समय के मशहूर अभिनेता विजयकांत ने मुख्य भूमिका निभाई थी. फिल्म की सफलता इस एक बात से भी समझी जा सकती है कि दो साल के भीतर ही इसके तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी रीमेक आ गए थे. ये सभी फिल्में न सिर्फ अपने आप में सुपरहिट रहीं बल्कि रजनीकांत, चिरंजीवी जैसे कई सुपरसितारों के भविष्य की नींव भी बनीं.

‘सत्तम ओरू इरुत्तराई’ का हिंदी रीमेक थी ‘अंधा कानून’. 1983 में रिलीज हुई इसी फिल्म से रजनीकांत ने हिंदी सिनेमा में एंट्री की थी. इससे पहले करीब आठ साल के अपने फिल्मी करियर में रजनीकांत कई सफल तमिल और तेलुगु फिल्में दे चुके थे और तीन राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीत चुके थे. शायद यही वजह थी कि अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार ने भी अंधा कानून में गेस्ट अपीयरेंस करना स्वीकार कर लिया था. आज अपने डेब्यू के 36 साल बाद रजनीकांत सिर्फ हिंदी या तमिल ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा की पहचान बन चुके हैं.

रजनीकांत की पहली फिल्म से पहले जरा उनके पहले निर्देशक का किस्सा जान लेते हैं जो वे अक्सर सुनाया करते हैं. वे बताते हैं कि ‘अपूर्वा रंगांगल’ (तमिल-1975), जो उनकी पहली फिल्म थी, के पहले भी वे के बालाचंद्रन को ऑडिशन देने गए थे. वहां पर रजनीकांत – जो तब शिवाजी राव गायकवाड़ थे – ने उन्हें उस समय के सुपरस्टार जेमिनी गणेशन के कुछ पॉपुलर डायलॉग उन्हीं के अंदाज में बोलकर दिखाए. रजनीकांत बताते हैं कि उन्हें तब बहुत निराशा हुई जब बढ़िया ऑडिशन के बावजूद बालाचंद्रन ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें खुद का कोई स्टाइल डेवलप करना चाहिए. वे मानते हैं कि उस महान फिल्मकार की इसी एक सलाह ने उन्हें शिवाजी राव से रजनीकांत बनने के लिए जरूरी एक खूबी ढूंढ़ने को प्रेरित किया. बाद में इस जोड़ी ने करीब दर्जन भर सुपरहिट फिल्में कीं जिसने रजनीकांत को ‘थलाइवा’ बनाया. थलाइवा यानी ‘बॉस.’

रजनीकांत ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में अविश्वसनीय एक्शन और कविताई संवाद बोलने का चलन शुरू किया था, जो आज भी कायम है. यह स्टाइल उस दौर की तमाम क्षेत्रीय फिल्मों में तो खासा पॉपुलर रहा लेकिन इनसे सजी हिंदी फिल्मों को बी-ग्रेड माना जाता था. रजनीकांत इस स्टाइल के साथ जब खुद बॉलीवुड पहुंचे तो कहानी एकदम बदल गई. झटके से चश्मा पहनने का अंदाज रजनीकांत ने हिंदी दर्शकों को अपनी पहली फिल्म के जरिए ही सिखा दिया था. ‘दिखा दिया’ की जगह ‘सिखा दिया’ इसलिए कि फिल्म के रिलीज होते ही न सिर्फ उनका स्टाइल बल्कि वे गॉगल्स भी खासे डिमांड में आ गए थे, जो उन्होंने फिल्म में पहने थे. बाकी उनका हेयर स्टाइल तो इस कदर पॉपुलर हुआ कि वे खुद भी सालों इसे ही दोहराते रहे. फिल्म के कुछ दृश्यों में रजनीकांत का ब्लैक लेदर जैकेट और ब्लैक गॉगल्स वाला लुक, आपको रोबोट फ्रेंचाइज की फिल्मों में नज़र आने वाले चिट्टी – द रोबो की याद भी दिला देता है.

फिल्म में रजनीकांत के किरदार पर आएं तो उन्हें विजय यानी वह नाम दिया गया था जो सबसे ज्यादा बार अमिताभ बच्चन का स्क्रीननेम रहा था. देखा जाए तो अकेला यह नाम ही उनके कंधों पर ढेर सारा बोझ लादने के लिए काफी था. तिस पर फिल्म में अमिताभ बच्चन खुद भी मौजूद थे और उनके अलावा हेमा मालिनी और रीना रॉय जैसी अभिनेत्रियां भी थीं. इनके भारी-भरकम सितारा कद के बावजूद फिल्म में एक भी ऐसा दृश्य नहीं जिसके बारे में कहा जा सके कि यहां पर रजनीकांत जरा साइड में चले गए हैं.

हर डेब्यू करने वाले कलाकार के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यह होती है कि बड़े नामों के आगे भी दर्शक यह न भूलें कि फिल्म का नायक वह है. रजनीकांत ने पूरी फिल्म में यह बात याद रखवाने में पूरी सफलता हासिल की थी. उनका यह मिज़ाज आज भी कायम है, और यही वजह है कि सालों-साल उनकी फिल्मों की टिकटें अपनी असल कीमत से कई गुना अधिक पैसों में बिकती आई हैं. नवंबर 2018 में रिलीज हुई ‘2.0’ की टिकटों की कीमत तो लगभग 1600 रुपए तक पहुंच गई थी, वह भी तब जब आलोचकों ने भर-भरकर इस फिल्म की बुराइयां लिखी थीं.

नायकत्व के जिस ग्रे-शेड को क्रांतिकारी बताते बॉलीवुड आज अघाता नहीं है, रजनीकांत ने ‘अंधा कानून’ में वही शेड अपनाया था. फिल्म में वे इस बात के लिए पूरी तरह कॉन्फिडेंट नज़र आते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं, उसे जस्टिफाई करने की जरूरत जरा भी नहीं है. इससे पहले भी, रिवेंज फिल्मों में इस तरह की कहानियां दिखाई जाती रही थीं, लेकिन उनमें नायक के अपराधी बनने को जस्टिफाई करने का दबाव हमेशा नज़र आता था. मजबूरन और ठेंगा दिखाकर ग्रे-हीरो बनने का फर्क रजनीकांत ने ही हमें अपनी इस फिल्म से बताया था.

आने वाले वक्त में उन्हें देवताओं की तरह पूजा जाने वाला महानायक बनना था और हर दूसरे चुटकुले में पाया जाने वाला किरदार भी. लेकिन इसका अंदाजा आप सिर्फ ‘अंधा कानून’ देखकर नहीं लगा सकते!

>> Receive Satyagrah via email or WhatsApp
>> Send feedback to english@satyagrah.com

  • After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Society | Religion

    After all, how did a tribal hero Shri Krishna become our Supreme Father God?

    Satyagrah Bureau | 19 August 2022

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Politics | Satire

    Some pages from the diary of a common man who is living in Bihar

    Anurag Shukla | 15 August 2022

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    World | Pakistan

    Why does Pakistan celebrate its Independence Day on 14 August?

    Satyagrah Bureau | 14 August 2022

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Society | It was that year

    Could a Few More Days of Nehru’s Life Have Resolved Kashmir in 1964?

    Anurag Bhardwaj | 14 August 2022