ऐसा क्यों लगता है कि सुशांत सिंह राजपूत अब वह बेशकीमती सिक्का बन चुके हैं जिसे भुनाने की जुगत में आज हर कोई लगा हुआ है
Anjali Mishra | 22 August 2020 | फोटो: फेसबुक/सुशांत सिंह राजपूत
यूट्यूब पर ज़ारी किए गए ‘सड़क-2’ के ट्रेलर पर आई एक पाकिस्तानी यूजर की टिप्पणी कई वजहों से ध्यान खींचती है. टिप्पणी कुछ इस तरह है कि ‘मैं पाकिस्तानी हूं लेकिन मैंने अपना काम कर दिया है, समझदार को इशारा काफी है.’ आम तौर पर जब कोई पाकिस्तानी यूजर किसी सोशल मीडिया मंच पर मौजूद किसी भारतीय कॉन्टेट पर कोई टिप्पणी करता है तो उसे भारत की अलग-अलग भाषाओं में छंटी हुई गालियों से नवाजा जाता है. लेकिन इस टिप्पणी पर आने वाली प्रतिक्रियाओं में कुछ उल्टा देखने को मिला. यानी इन प्रतिक्रियाओं में से ज्यादातर सकारात्मक थीं. कई प्रतिक्रियाओं में ‘भाई है तू अपना’ जैसी भावपूर्ण लाइनों का इस्तेमाल किया गया. कुछ में अंदाज़ा लगाया गया कि ‘तुम जेहादी नहीं होगे और पाकिस्तान में हिंदुओं से सही बर्ताव करते होगे’. वहीं कुछ में कहा गया कि ‘इस अच्छे काम के लिए तुम्हारे पाकिस्तानी होने से फर्क नहीं पड़ता है.’
दरअसल, यहां पर पाकिस्तानी यूजर ने ‘समझदारों’ को इस बात का इशारा किया है कि उसने भी ‘सड़क-2’ के ट्रेलर को अनलाइक कर दिया है. यह आलेख लिखे जाने तक सड़क-2 के ट्रेलर पर सवा पांच करोड़ से ज्यादा व्यूज, लगभग छह लाख लाइक और एक करोड़ से ज्यादा अनलाइक आ चुके थे. इस तरह यह भारत का पहला और दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा नापसंद किया जाने वाला वीडियो बन चुका है. नफरत और नापसंदगी का यह कैंपेन चलाने वालों की मानें तो वे सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसक हैं. चूंकि उनके हिसाब से ‘सड़क-2’ में अभिनय कर रही आलिया भट्ट नेपोटिज्म की सबसे बड़ी प्रतीक हैं और यह फिल्म भी उनके पिता महेश भट्ट ने बनाई है, इसलिए वे इसका विरोध कर नोपोटिज्म का शिकार बने सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाना चाहते हैं.
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसकों बाढ़ आई है, उसे देखकर यह आश्चर्य होता है कि उनकी सभी फिल्में सुपर-डुपरहिट क्यों नहीं रहीं! इसका एक मतलब यह हो सकता है सुशांत जब तक जीवित रहे, तब तक इनमें से ज्यादातर लोग या तो उनके फैन नहीं थे या इतने बड़े फैन नहीं थे. पिछले दिनों फिल्म निर्देशक हंसल मेहता ने तो अपने ट्विटर पर इस तरह के फैन्स को पहचानने का कैंपेन ही शुरू कर दिया था. वे सुशांत के बारे में टिप्पणी करने वाले हर व्यक्ति से पूछते दिखते थे कि क्या उसने ‘सोनचिड़िया’ फिल्म देखी है. आश्चर्यजनक यह रहा कि ज्यादातर लोग इसका हां में जवाब देने की बजाय उनसे बहस करने लग जाते थे.
आज सोशल मीडिया पर सुशांत सिंह राजपूत को ‘सुशांत भइया’ कहकर संबोधित करने वाला एक अलग ही समूह है जो उनके जीवन और मृत्यु से जुड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरीज पर पूरा भरोसा करता है. और, न सिर्फ भरोसा करता है बल्कि कुछ इस तरह की रचनात्मकता के साथ इन्हें रचकर सोशल मीडिया पर शेयर करता है, मानो अपनी आंखों के सामने घटी कोई घटना बता रहा हो.अगर प्रशंसकों द्वारा बताई जा रही सुशांत की मौत की वजहों पर गौर करें तो पहले उनकी मौत नेपोटिज्म कल्चर की वजह से, फिर यशराज-धर्मा जैसे प्रोडक्शन बैनरों की बिजनेस पॉलिसीज़ के कारण, उसके बाद रिया चक्रवर्ती के जादू-टोने के चलते और अंत में शिवसेना नेताओं के इन्वॉल्वमेंट के कारण हुई है. ये तमाम बातें जबर्दस्त यकीन और बारीकियों के साथ कई-कई बार बताई जाती हैं. मामले को न जानने वाला कोई भी सामान्य व्यक्ति इन पर पूरी तरह से इसलिए भी विश्वास कर सकता है कि सैकड़ों-हजारों लोग अगर एक ही बात कह रहे हैं तो उसमें कुछ तो सच होगा ही.
सुशांत सिंह राजपूत के इस तरह के प्रशंसकों के चलते ही सोशल मीडिया पर उनकी मौत, पारिवारिक स्थिति, करियर और तमाम तरह की निजी जानकारियां देने वाले तमाम अकाउंट्स और चैनल्स शुरू हो गए हैं. इन चैनल्स पर सुशांत की हत्या का सिलसिलेवार ब्यौरा देने वाले, उनकी मौत के पहले और बाद में हुई घटनाओं का विश्लेषण करने वाले और मुंबई फिल्म उद्योग या राजनीति से जुड़ी हर घटना को सुशांत से भी जोड़कर लगभग हर दिन हत्या का नया खुलासा करने वालों की भरमार हो गई है. इंटरनेट पर सुशांत इन दिनों कुछ इस तरह चलने वाला सिक्का बन चुके हैं कि वे लोग जो कल्पना या तर्कों के सहारे कोई बहुत रुचिकर कहानी नहीं सुना सकते हैं, वे उनके लिए किसी पारलौकिक शक्ति से संपर्क करने या भगवान से प्रार्थना करने के बहाने भीड़ जुटा रहे हैं. इनमें टैरो कार्ड रीडर, वैदिक ज्योतिष के जानकार और उनकी आत्मा से बातचीत के दावे करने वाले पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स शामिल हैं. हालांकि यहां पर हर रोज होने वाले खुलासों में लगभग वही बातें दोहराई जाती हैं जो पहले से ही सार्वजनिक चर्चाओं का हिस्सा बन चुकी होती हैं, लेकिन फिर भी इस तरह के वीडियोज पर लाखों की संख्या में व्यूज देखे जा सकते हैं. सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर आज तमाम लोगों की ऑनलाइन दुकानें चल रही हैं और कई लोगों ने इसे अपने फॉलोअर्स बढ़ाने, लाइक्स बटोरने और प्रसिद्धि पाने का जरिया बना लिया है.
सुशांत सिंह राजपूत के अचानक पैदा हो गये इतने ज्यादा प्रशंसकों के संदर्भ में एक बात यह भी खटकती है कि इनका एक बड़ा हिस्सा राजनीति से प्रेरित दिखाई देता है. यह हिस्सा केंद्र में सत्ताधारी पार्टी का समर्थक है और महाराष्ट्र की सरकार या पुलिस पर ज़रा भी भरोसा जताता नहीं लगता है. इनके ट्वीट्स, पैटर्न और भाषा पर गौर करें तो यह बहुत हद तक एक पार्टी के आईटी सेल की कार्यशैली से मिलते-जुलते लगते हैं. इसके अलावा पार्टी के नेता और उनके सहयोगी-समर्थक भी इस मामले में खासी रुचि लेते और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करते दिखते हैं. ऐसे में इस बात का अंदेशा होना स्वाभाविक हो जाता है कि कहीं सुशांत की मौत पर मचाई गई उठापटक चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के लिए तो नहीं है.
अगर यह मान भी लिया जाए कि सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की मांग करने वाले सभी लोग उनके सच्चे प्रशंसक हैं तो ऐसी कई वजहें हैं जो इस भीड़ के अजीबोगरीब और मौकापरस्त व्यवहार की तरफ इशारा करती हैं. यहां पर पाकिस्तानी यूजर की टिप्पणी का फिर से जिक्र करें तो यह बात गले उतारना थोड़ा अजीब है कि जिस पाकिस्तान और पाकिस्तानियों को ‘सच्चे देशभक्त’ हमेशा दुश्मन मानते हैं, आज वे उनसे भी सहमत दिख रहे हैं. आलिया भट्ट को नीचे गिराने के लिए वे उन्हें अपना भाई तक कहकर संबोधित कर रहे हैं. इसका मतलब क्या यह है कि ये प्रशंसक पाकिस्तान से भी ज्यादा नफरत आलिया भट्ट से करने लगे हैं!
अकेले आलिया भट्ट को लेकर प्रशंसकों के रवैये पर थोड़ी और बात करें तो वे लगभग हर दिन सैकड़ों-हजारों सोशल मीडिया टिप्पणियों में आलिया को नेपोटिज्म का प्रतीक बताकर, उन्हें सुशांत की मौत का जिम्मेदार ठहराते दिखते हैं. उनके पिता महेश भट्ट और मेंटॉर करण जौहर को लेकर, उन पर जिस तरह की छींटाकशी की जा रही है, उसकी भाषा इतने निचले स्तर की है कि उदाहरण के तौर पर भी उसे यहां लिखना संभव नहीं है. आलिया के ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट पर आने वाली टिप्पणियां पढ़कर किसी भी ठीक-ठाक समझ वाले इंसान को सुशांत के कथित प्रशंसकों का रवैया गलत ही नहीं अमानवीय भी लग सकता है. महज 27 साल की आलिया भट्ट 24 घंटे, सातों दिन, हजारों लोगों के इस ऑनलाइन अब्यूज के चलते किस मानसिक त्रास से गुजर रही होंगी, इसका अंदाज़ा लगा पाना भी मुश्किल है. यहां पर सवाल किया जा सकता है कि एक इंसान की मौत की नैतिक जिम्मेदारी तय करते हुए प्रशंसक इस हद तक कैसे पहुंच गए हैं कि वे दूसरे इंसान को उसके जीने के अधिकार से ही वंचित कर देना चाहते हैं?
जहां तक प्रशंसकों द्वारा नेपोटिज्म और अन्याय के खिलाफ झंडा उठाने की बात है तो पिछले दिनों ‘गुंजन सक्सेना – द कारगिल गर्ल’ को लेकर मचा शोर इस आंदोलन के नकलीपन का किस्सा बता देता है. यह बताता है कि कैसे सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसक वह भीड़ हैं जो नाक की सीध में चलती है. गौरतलब है कि करण जौहर के प्रोडक्शन बैनर तले बनी ‘गुंजन सक्सेना’ में शीर्षक भूमिका जाह्नवी कपूर ने निभाई है. चूंकि प्रशंसकों के मुताबिक ये दोनों ही बातें नेपोटिज्म को बढ़ावा देने वाली हैं, इसलिए वे इसका बहिष्कार करने की मांग कर रहे हैं. हालांकि ऐसा करने वाले लोग, इस बात पर ध्यान देते नहीं दिख रहे हैं कि यह फिल्म कारगिल युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने वाली एक महिला एयरफोर्स ऑफिसर की प्रेरक कहानी कहती है, जिसे लोगों तक पहुंचना ही चाहिए. किसी भी आम दिन पर शहीदों और सैनिकों की दुहाई देने वाले लोग यहां पर एक बहादुर अफसर की कहानी को बहिष्कृत करने की गुहार लगा रहे हैं.
हालांकि वे ऐसा करने का तर्क इस बात में ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं कि इस फिल्म के जरिये एयरफोर्स को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. जबकि एक सामान्य सी समझ भी यह बता सकती है कि आज से 21 साल पहले, किसी ऐसे क्षेत्र में जहां पहले महिलाएं बिलकुल भी नहीं थी उन्हें कुछ लोगों का तो ऐसा व्यवहार झेलना ही पड़ा होगा जिसने उनकी यात्रा को थोड़ा मुश्किल बना दिया होगा. फिर अंत होते-होते फिल्म यह भी तो दिखाती है कि वे लोग भी जो पहले गुंजन सक्सेना को बराबरी का दर्जा देने से हिचकते थे, उनकी बहादुरी का लोहा उतनी ही बहादुरी के साथ स्वीकार करके एयरफोर्स का सम्मान बढ़ाते हैं.
इसके अलावा ‘गुंजन सक्सेना’ के लिए पंकज त्रिपाठी जैसे अभिनेता खूब-खूब तारीफ और पहचान भी बटोर रहे हैं जो न सिर्फ बेहद टैलेंटेड हैं बल्कि उन आउटसाइडर्स की कैटिगरी में भी फिट बैठते हैं जिनके लिए यह आंदोलन चलाया जा रहा है. शायद ये फैन्स इस समय यह नहीं सोच रहे हैं कि वे गुंजन सक्सेना का विरोध कर पंकज त्रिपाठी के काम को लोगों तक पहुंचने से रोक सकते हैं और अगर ऐसा हुआ तो उनके जैसे लोग इंडस्ट्री में कैसे बने रह पाएंगे. पंकज त्रिपाठी को परोक्ष रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने वाले ये प्रशंसक, इससे पहले कृति सनॉन को सुशांत की मौत पर अफसोस न जताने के लिए, दीपिका पादुकोण पर डिप्रेशन पर बात करने के लिए और आयुष्मान खुराना को रिया चक्रवर्ती का साथ देने जैसे कारणों के लिए निशाने पर लेते दिख चुके हैं. जबकि ये तीनों ही चेहरे सुशांत सिंह राजपूत की ही तरह, बाहर से आकर अपनी जगह बनाने वाले कुछ सबसे बड़े सितारों में शामिल हैं. ऐसे में यह पूछने की इच्छा हो ही जाती है कि ये प्रशंसक सचमुच नेपोटिज्म बनाम आउटसाइडर्स की लड़ाई के योद्धा हैं या फिर बहती गंगा में हाथ-धोकर कुछ लाइक्स, फॉलोअर्स और थोड़ी लाइमलाइट पा लेने की चाह रखने वाले मतलबी लोग?
आउटसाइडर्स के अलावा, सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसक उनके सबसे करीब रही दो महिलाओं के मामले में जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं वह अंत में सुशांत के बारे में भी बहुत कुछ कह जाता है. सुशांत की मृत्यु तक उनकी गर्लफ्रेंड रहीं रिया चक्रवर्ती के बारे में तमाम तरह की कहानियां चर्चा में हैं. जैसे कि वे उन्हें डिप्रेशन की दवाएं देती थीं, किसी से मिलने नहीं देती थीं, घर पर पूजा-पाठ रखवाती थीं या टोने-टोटके करती थीं. कुछ लोगों का आरोप है कि रिया ने सुशांत का बहुत सारा पैसा भी हड़प लिया था. क्या इस तरह की बातें करके वे सुशांत को ही बहुत छोटा नहीं कर रहे हैं? एक ऐसे व्यक्ति के बारे में कोई कितनी अच्छी छवि बना सकेगा जो अपने छोटे से छोटे फैसले भी खुद या सही नहीं ले सकता है? स्वाभाविक है कि उसे कमजोर, दब्बू और मूर्ख की श्रेणी में रखा जाएगा. जबकि सुशांत के मामले में इनमें से कोई भी बात सच नहीं थी. उनके साक्षात्कारों और कॉलेज के दौरान हासिल की गई उनकी उपलब्धियों को देखकर यही अंदाज़ा लगता है कि वे विलक्षण बुद्धिमत्ता के मालिक थे. पिछले दिनों उनकी वकील प्रियंका खिमाणी ने भी साफ किया है कि सुशांत सिंह अपने फैसले खुद लेने वाले लोगों में से एक थे. ऐसे में इस तरह की कहानियां रचकर उनके प्रशंसक अपनी किस तरह की सोच का परिचय दे रहे हैं?
दिलचस्प है कि रिया चक्रवर्ती को तमाम गालियां देते वक्त कहा जा रहा था कि अगर सुशांत अपनी पूर्व गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे के साथ ही रहते तो शायद आज जीवित होते. इसलिए कुछ प्रशंसक जहां अंकिता से सहानुभूति जताते दिखाई दिए वहीं कुछ ने सुशांत सिंह राजपूत का साथ छोड़ने के लिए उन्हें खूब बुरा-भला भी कहा. बाद में एक मीडिया रिपोर्ट में यह कहे जाने के बाद कि लोखंडे के मकान के लिए लिया गया कर्ज सुशांत ही भर रहे थे, प्रशंसक अंकिता की लानत मलानत करने से नहीं चूके. महज, 24 घंटों में अंकिता इससे इतनी परेशान हो गईं कि उन्होंने अपने घर के कागजात के साथ-साथ बैंक स्टेटमेंट भी सोशल मीडिया पर शेयर कर डाले ताकि लोगों को सच का पता चल सके. यहां पर फिर वही सवाल है कि अंकिता लोखंडे को अपने से दूर करने वाले कौन थे? सुशांत सिंह राजपूत. इंजीनियरिंग को छोड़कर अभिनय की दुनिया में जाने वाले कौन थे? सुशांत सिंह राजपूत. आउटसाइडर्स की फिल्मों को छोड़कर यशराज बैनर की फिल्में चुनने वाले कौन थे? सुशांत सिंह राजपूत. रिया चक्रवर्ती को अपनी गर्लफ्रेंड बनाने वाले कौन थे… लेकिन प्रशंसक उनके इस अधिकार का तो सम्मान करना ही नहीं चाहते बल्कि ऐसी बेकार की बातों के जरिये उनके मामले में सच सामने लाने की राह भी लगातार मुश्किल कर रहे हैं?
सुशांत के तथाकथित प्रशंसकों का यह अतार्किक व्यवहार कई बार उनके परिवार को भी झेलना पड़ा है. परिवार से अनबन और पिता की दूसरी शादी की अफवाह के अलावा और भी कई मौकों पर ये लोग उनके परिजनों को अपने निशाने पर लेते रहे हैं. हाल ही में सुशांत सिंह राजपूत की बहन मीतू सिंह ने उनके साथ अपनी एक तस्वीर, बेहद भावुक कर देने वाले संदेश के साथ शेयर की थी. इस पर आने वाली टिप्पणियों में लोग उनसे बेहद बेरुखी से यह कहते दिखाई दे रहे थे कि ‘क्या पैसे भाई की कमी पूरी कर देंगे’ या ‘आप लवलेटर लिखना बंद करें और सीबीआई जांच की मांग करें.’
ये बातें कुछ-कुछ वैसी ही हैं जो गली-मोहल्लों के नुक्कड़ या छत की मुंडेरों पर बैठकर टाइम पास करने, या अपनी भड़ास निकालने, या अपने आप को शेरलॉक होम्स या दूसरों से बेहतर साबित करने के लिए, या इन सभी मकसदों को एक साथ साधने के लिए की जाती हैं. इसके लिए जितनी चाहे कल्पनाओं, झूठ और चकल्लसबाज़ी का सहारा लिया जा सकता है. सुशांत सिंह राजपूत के मामले में ऐसी बातें ‘न्याय’ की मांग करते हुए की जा रही हैं, इसलिए इन पर सवाल उठाने वालों को गलत ठहराना काफी आसान हो जाता है. वैसे ही जैसे गली-मोहल्लों में इन्हें अक्सर नैतिकता की रक्षा के लिए किया जाता है.
सुशांत के कई फैन्स को देखकर कई बार यह भी लगता है कि उनके लिए यह हादसा लॉकडाउन के दौरान जबरन घर बैठे पैदा होने वाले फ्रस्ट्रेशन को निकालने का बहाना बन गया है. कुछ इसी तरह की बात जाने-माने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने भी अपने हाल ही में दिए इंटरव्यू में कही है कि हर कोई जो फिल्म इंडस्ट्री से किसी भी वजह से नाराज़ है, इस मौके को भुना लेना चाहता है.
यहां कमाल की एक बात यह भी दिखती है कि अब तक हर फिल्म स्टार को अपने को बड़ा बनाने के लिए जितने हो सकें प्रशंसकों की जरूरत रहा करती थी. लेकिन ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी फिल्म स्टार के अनगिनत कथित प्रशंसक खुद को आगे बढ़ाने के लिए उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. कुल मिलाकर, सुशांत सिंह राजपूत के ज्यादातर प्रशंसक सोशल मीडिया पर जिस तरह का व्यवहार दिखा रहे हैं, वह कहीं न कहीं उन्हें असंवेदनशील और मतलबी लोगों की भीड़ भी साबित करते दिखता है.
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