जोहरा सहगल इतनी जिंदादिल और खुशमिजाज थीं कि अपनी कला से इतर उन्हें सिर्फ इसी बात के लिए भी याद रखा जा सकता है
अंजलि मिश्रा | 27 अप्रैल 2020
फिल्म इंडस्ट्री में दो दशक बिता चुकी करीना कपूर ने कुछ समय पहले कहा था कि वे जोहरा सहगल जैसा फिल्मी कैरियर चाहती हैं. जोहरा सहगल का यही करिश्मा है कि आज की सफलतम अभिनेत्रियों में शुमार करीना भी उनसे प्रेरित हैं और 80 साल की उम्र में उनकी तरह कैमरे के सामने खड़े होने का ख्वाब देखती हैं. जोहरा सहगल के करिश्माई होने की शायद एक सबसे महत्वपूर्ण वजह यह थी कि 102 साल की उमर में जब उन्होंने दुनियावी मुश्किलों को अलविदा कहा तब भी वे उतनी ही खुशदिल और जीवंत थीं, जितनी अपने 80 बरस के कैरियर में रहीं. जिंदगी के पूरे 80 साल जोहरा सहगल ने अभिनय और नृत्य किया. नृत्य के प्रति उनकी दीवानगी 19वीं शताब्दी की प्रसिद्ध अमेरिकी डांसर इजाडोरा डंकन से प्रेरणा पाकर बढ़ी और बाद में जोहरा हिंदुस्तान की इजाडोरा कहलाईं.
जोहरा सहगल बतौर साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजेउल्लाह खान 27 अप्रैल, 1912 को सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में पैदा हुई थीं. मां ने बिलकुल सही नाम दिया था – जोहरा. जोहरा का मतलब होता है एक हुनरमंद लड़की. लेकिन यह हुनरमंद लड़की एक खुशकिस्मत लड़की नहीं थी. बहुत छोटी उम्र में उन्होंने अपनी मां खो दिया था. मां की आखिरी इच्छा थी कि बेटी ग्रेजुएशन करे सो जोहरा सहगल ने 1929 में मेट्रिक पास किया और 1933 में लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया.
कॉलेज की पढ़ाई और उम्र के 25 बरस पूरी कर चुकी जोहरा सहगल पर अब तक इजाडोरा डंकन के नृत्य का जादू सिर चढ़ चुका था. लेकिन एक रुढ़िवादी सुन्नी मुस्लिम परिवार, तिस पर वह रामपुर के शाही घरानों में से एक हो, कैसे अपने खानदान की लड़की को नाचने-गाने की इजाजत दे देता. लेकिन जोहरा, जोहरा थीं. उस वक्त उन्होंने अपने परिवार की एक नहीं सुनी, और भविष्य में कभी किस्मत की भी नहीं मानी. जोहरा रिश्तेदारों के साथ पहले विदेश यात्रा पर गईं और बाद में जर्मनी के एक मशहूर डांस स्कूल में दाखिला ले लिया. यहां से जो सिलसिला शुरू हुआ उसे सन 1935 में रफ़्तार मिली जब वे पंडित उदयशंकर की नृत्य मंडली में शामिल हुईं. बैले नर्तक पंडित उदयशंकर, प्रसिद्ध सितारवादक पंडित रविशंकर के बड़े भाई थे. पंडित उदयशंकर के साथ उन्होंने जापान, सिंगापुर, रंगून और दुनियाभर के तमाम देशों में प्रस्तुति दी. इस बार भारत लौटकर आने तक जोहरा सहगल बतौर कलाकार प्रसिद्ध हो चुकी थीं.
इजाडोरा डंकन से न सिर्फ जोहरा प्रभावित थीं उनकी जिंदगी के कई किस्से भी इजाडोरा की जिंदगी से मेल खाते हैं. जैसे इजाडोरा की तरह जोहरा ने भी दुनियाभर में अपने नृत्य का लोहा मनवाया था. इजाडोरा ने बतौर डांस टीचर अपना कैरियर शुरू किया था. जोहरा ने भी बतौर डांस टीचर ही जिंदगी से बहुत कुछ पाया. 1939 में उदयशंकर ने अलीगढ़ में ‘उदयशंकर सांस्कृतिक केंद्र’ खोला था जहां जोहरा सहगल युवाओं को नृत्य करना सिखाती थीं. यहीं इंदौर से आए उनके एक छात्र कामेश्वर सहगल से उन्हें प्रेम हुआ था. आगे चलकर कामेश्वर सहगल के साथ उन्होंने घर बसाया और युवाओं को नृत्य की तालीम देने के लिए लाहौर में ‘जोरेश डांस इंस्टिट्यूट’ की स्थापना भी की.
जोरेश डांस इंस्टिट्यूट जल्दी ही बंद हो गया क्योंकि विभाजन के चलते जोहरा और कामेश्वर सहगल को लाहौर छोड़ मुंबई में बसना पड़ा. भारत को आजादी मिलने की घटना से जोहरा सहगल की जिंदगी का एक बड़ा ही दिलचस्प वाकया जुड़ा हुआ है. हुआ ये कि जब देश को आजादी मिलने की खबर मुंबई में फैली तो जोहरा सब भूलकर आजादी के जुलूस के साथ सारी रात नाची थीं. यही देखकर फिल्म निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास ने कहा था कि जोहरा सहगल हिंदुस्तान की इजाडोरा डंकन है.
मुंबई आकर जोहरा सहगल ‘इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा)’ का हिस्सा बन गई थीं. मुंबई में उस समय थिएटर और सिनेमा साथ-साथ तरक्की कर रहे थे. इप्टा के बाद जोहरा पृथ्वी थिएटर से भी जुड़ीं. पृथ्वीराज कपूर को गुरू मानकर जोहरा सहगल ने अभिनय में कदम रखा. 1946 में उन्होंने इप्टा की मदद से बनी चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर’ में अभिनय किया था. कान फिल्म महोत्सव में पुरस्कार जीतकर अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म थी. इसके बाद जोहरा सहगल ने इप्टा और पृथ्वी थिएटर के साथ कई नाटक किए साथ ही कई हिंदी फिल्मों के लिए कोरियोग्राफी भी की.
हालांकि किस्मत से जोहरा की आंख-मिचौली अभी जारी थी. कामेश्वर सहगल कला-विज्ञान के जानकार और प्रतिभावान व्यक्ति थे लेकिन उनकी प्रतिभा ने कभी सफलता का स्वाद नहीं चखा. इस बात से कामेश्वर अवसाद में रहने लगे और आखिरकार उन्होंने 1959 में आत्महत्या कर ली. अब जोहरा सहगल अकेली रह गईं. यह अकेलापन भी उनकी और इजाडोरा डंकन की कहानी में एक जैसा है. एक साक्षात्कार के दौरान जब जोहरा से पति की आत्महत्या की वजह पूछी गई तो उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में जवाब दिया कि जो आदमी उनके जैसी लड़की से शादी करेगा वो आत्महत्या नहीं तो और क्या करेगा. जोहरा की यही जिन्दादिली थी और इसमें वे इजाडोरा से भी आगे रहीं.
पति के जाने के बाद जोहरा 1962 में लंदन चली गईं. यहां उन्होंने फिल्म, टीवी और रेडियो के लिए जमकर काम किया. इस दौरान उन्होंने कुछ उल्लेखनीय अंग्रेजी फिल्मों जैसे ‘नेवर से डाई’, ‘रेड बिंदी’, ‘पार्टीशन’, और ‘तंदूरी नाइट्स’ में काम किया. 1990 के दशक में जोहरा एक बार फिर हिंदी सिनेमा के परदे पर उसी ठसक के साथ लौटीं. ‘दिल से’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘वीर जारा’, ‘चीनी कम’ और ‘सांवरिया’ इसी दौर की फिल्में हैं.
हिंदुस्तान की इजाडोरा डंकन, जोहरा सहगल ने 80 बरस का यह सफर कितनी गर्मजोशी से पूरा किया था इसे महसूस करने के लिए आप जोहरा सहगल के सौवें जन्मदिन की एक तस्वीर याद कर सकते हैं. इसमें वे केक काटने के लिए चाकू उठाए दिखाई दे रही हैं. उस दिन जोहरा ने चाकू भी कुछ यूं उठाया था मानो चाक़ू नहीं वक्त का खंजर है और जिसे वे अपने सौ बरस के संघर्षों के सीने में घोंप देना चाहती हैं. जोहरा ऐसी ही जिंदादिल थी और इसलिए उन्हें ‘सौ बरस की बच्ची’ और ‘सदी की लाडली’ जैसे तमगे दिए गए.
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