स्टेफी ग्राफ

Sports | जन्मदिन

स्टेफी ग्राफ को मैदान से गए दो दशक हो गए, लेकिन उनके रिकॉर्ड आज भी कायम हैं

महिला टेनिस की दुनिया में 377 हफ्तों तक नंबर एक रहीं स्टेफी ग्राफ का आज जन्मदिन है

राम यादव | 14 June 2020 | फोटो; स्क्रीनशॉट

‘मैंने 17 साल टेनिस खेलने में लगाये हैं. जब मैंने उससे विदा ली तो मुझे यही महसूस हो रहा था कि मैं अपना सब कुछ दे चुकी हूं,’ स्टेफी ग्राफ ने एक बार कहा था. 1980 और 90 के दशक लॉन टेनिस की दुनिया में जर्मनी की चमत्कारिक प्रतिभा स्टेफी ग्राफ के दशक थे. उनका नाम महिला टेनिस के विश्व वरीयता-क्रम में, 17 अगस्त 1987 से 1997 तक, पूरे 377 सप्ताह पहले नंबर रहा. यह एक ऐसा कीर्तिमान है, जो आज तक नहीं टूटा है.

14 जून 1969 को दक्षिण जर्मनी के मानहाइम में जन्मी स्टेफी ग्राफ ने 13 अगस्त 1999 के दिन व्यावसायिक टेनिस की प्रतियोगिताओं से विदा ली. तब तक 22 ग्रैंड स्लैम टाइटलों सहित कुल 107 प्रतियोगिताएं उनकी विजय का कीर्तिमान बन चुकी थीं. ग्रैंड स्लैम खिताब थे – सात विम्बलडन, छह फ्रेंच ओपन, पांच यूएस ओपन और चार ऑस्ट्रेलियन ओपन. 1999 के ही फ्रेंच ओपन के दौरान उनका अमेरिका के टेनिस दिग्गज आंद्रे अगासी से पेरिस में परिचय हुआ. निकटता बढ़ी और अक्टूबर 2001 में दोनों परिणयसूत्र से बंध गये. दोनों की दो संतानें हैं- एक बेटा और एक बेटी.

900 बार जीत

टेनिस खेलने के अपने सक्रिय जीवनकाल में स्टेफी ग्राफ को, सभी तरह के टूर्नामेंटों में कुल मिलाकर 900 बार विजय प्राप्त हो चुकी थी. केवल 115 बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इस तरह देखें तो 88.7 प्रतिशत बार जयमाला स्टेफी ग्राफ के ही गले में पड़ी. 1988 में ओलंपिक स्वर्ण पदक के रूप में उन्होंने एक ऐसा ‘गोल्डन स्लैम’ भी जीता, जो बाद में दूसरी कोई महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं जीत पायी है.

स्टेफी ग्राफ को निस्संदेह एक चमत्कारिक टेनिस प्रतिभा ही कहा कहा जायेगा. पर, कोई प्रतिभा भी तभी निखर पाती है जब उसे पहचानने और निखारने वाला कोई पारखी भी मिलता है. संयोग से, स्टेफ़ी के पिता ही वह पारखी थे. वे टेनिस शिक्षक थे. मात्र चार साल की आयु में ही वे ताड़ गये कि स्टेफ़ी टेनिस के खेल-मैदान का एक होनहार बिरवा है. उन्होंने उसे टेनिस का रैकेट पकड़ाया और शीघ्र ही पाया कि उसके पैरों की चपलता और उसकी ‘फ़ोरहैंन्ड’ कुशलता ग़ज़ब की है. पिता पेटर ने स्टेफी को बड़ी बारीक़ी से एक पेशेवर भावी टेनिस खिलाड़ी के रूप में गढ़ना-तराशना शुरू कर दिया. जब वह 13 साल की थी तो पहली बार उन्होंने अपनी इस होनहार बेटी को ‘डब्ल्यूटीए’ (विमन्स टेनिस एसोशिएसन) की प्रतियोगिता में उतार दिया.

विश्व वरीयता-क्रम में नाम चढ़ा

14 साल की होते-होते स्टेफी ग्राफ ‘डब्ल्यूटीए’ के विश्व वरीयता-क्रम में 98वें नंबर पर पहुंच गईं. तब जर्मन राज्य बाडेन-व्युर्टेम्बेर्ग की राज्य सरकार ने उन्हें स्कूल छोड़ कर पूरी तरह टेनिस पर ही ध्यान देने की विशेष अनुमति प्रदान की. इसके बाद तो चमत्कारों की झड़ी लग गयी. 15 साल की होते-होते स्टेफी ग्राफ के नाम की धूम मच गयी थी. विम्बलडन और फ्रेंच ओपन, दोनों में वे प्री-क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंच गईं. 1986 में अमेरिका के ‘हिल्टन हेड आइलैंड टूर्नामेंन्ट’ के फ़ाइनल में उस समय के एक बड़े नाम क्रिस एवर्ट-लॉयड को हरा कर स्टेफी ग्राफ ने अपने जीवन का पहला व्यावसायिक टाइटल जीता.

18 साल की होते ही 1987 में उस समय की टेनिस की सबसे दिग्गज महिला खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा को पेरिस के फ्रेंच ओपन के फ़ाइनल में स्टेफी ग्राफ के आगे हार माननी पड़ी. स्टेफी का वह पहला ‘ग्रैंड स्लैम’ टाइटल था. उसी साल उन्होंने विश्व वरीयता-क्रम में नवरातिलोवा का पहला स्थान भी छिन लिया. 176 सेंटीमीटर लंबे छरहरे बदन और सुनहरे बालों वाली स्टेफी ग्राफ टेनिस की दुनिया की अब निर्विवाद महारानी बन गई थीं.

1988 में सफलताओं की झड़ी

स्टेफी ग्राफ के खेल-जीवन के वर्षों में 1988 को सबसे शानदार माना जाता है. उस साल उन्होंने टेनिस-जगत की चारों ग्रैंन्ड स्लैम प्रतियोगिताएं, यानी एक के बाद एक मेलबर्न, विम्बलडन, पेरिस और न्यूयॉर्क में ग्रैंड स्लैम खिताब तो जीते ही, दक्षिण कोरिया में सियोल ओलंपिक का एकल स्वर्ण पदक और युगल कांस्य पदक भी आपने नाम किया. युगल में उनका साथ दिया था जर्मनी की ही क्लाउडिया कोडे-किल्श ने. उस एक ही वर्ष में स्टेफी ग्राफ को 73 विजयें मिलीं और केवल तीन पराजयें झेलनी पड़ीं.

जिन दिनों स्टेफी ग्राफ का विजयरथ सरपट दौड़ रहा था, उन्हीं दिनों पुरुषों के टेनिस जगत में जर्मनी के ही बोरिस बेकर के नाम की भी धूम मची हुई थी. 1989 का पुरुषों का विम्बलडन फ़ाइनल बोरिस बेकर ने और महिलाओं का स्टेफी ग्राफ ने जीता था. पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का तब तक एकीकरण नहीं हुआ था. लेकिन इस दोहरी विजय पर अपार खुशी सीमाओं के आर-पार एक समान थी. संयोग से उसी वर्ष नवंबर में बर्लिन दीवार भी गिर गयी और 40 वर्षों से विभाजित जर्मनी के एकीकरण का मार्ग भी प्रशस्त हो गया. इसी को कहते हैं, ‘ऊपर वाला जब देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है.’

सात बार विम्बलडन विजेता

कुछ ऐसा ही शुभसमय उनके लिए 1992 भी सिद्ध हुआ. उस वर्ष स्टेफी ग्राफ ने विम्बलडन की घास पर सातवीं बार चैंपियनशिप जीती. पुरुषों के एकल फ़ाइनल में आंद्रे अगासी को विजय मिली. दोनों का कहना है कि उस समय वे एक-दूसरे को केवल व्यावसायिक खिलाड़ियों के तौर पर ही जानते थे, न कि कोई प्रेमी युगल थे. लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उस साल की सफलता ने ही दोनों की आंखें पहली बार लड़ाई थीं, भले ही दोनों ने विवाह नौ साल बाद किया.

महिला टेनिस की दुनिया में स्टेफी ग्राफ का दबदबा 1990 तक अक्षुण रहा. उनके पिता, जो साथ ही उसके प्रशिक्षक, प्रबंधक, परामर्शदाता इत्यादि सब कुछ थे, एक महिला-मॉडल के साथ कथित प्रेम-प्रकरण के कारण उस साल सड़क-छाप पत्र-पत्रिकाओं में बहुचर्चित हो गये. यह चर्चा कई महीनों तक चलती रही. स्वाभाविक है कि पिता की बदनामी से स्टेफी ग्राफ की मनोदशा भी अछूती नहीं रह सकती थी. साथ ही टेनिस कोर्ट में एक नयी प्रतिस्पर्धी, सर्बिया की मोनिका सेलेस, उन्हें भारी चुनौती देने लगी थी. वह भी एक चमत्कारिक खिलाड़ी थी और आयु में स्टेफी से चार साल छोटी भी थी.

जब विजय का तांता टूटा

1990 में बर्लिन में खेले गये जर्मन ओपन में स्टेफी ग्राफ को मोनिका सेलेस के हाथों मात खानी पड़ी. इसी के साथ लगातार 66 विजयों का उनका क्रम भंग हो गया. मार्च 1991 में मोनिका सेलेस ने स्टेफी ग्राफ को विश्व वरीयता-क्रम के प्रथम स्थान से भी हटा दिया.

अप्रैल 1993 में जर्मनी के ही हैम्बर्ग शहर में खेले जा रहे एक क्वार्टर फ़ाइनल के समय एक बहुत ही वीभत्स घटना ने स्टेफी ग्राफ को और भी हिला दिया. उनके एक प्रशंसक (फ़ैन) ने, जिसे मानसिक रूप से विक्षिप्त बताया गया, हैम्बर्ग में खेल के दौरान मोनिका सेलेस की पीठ में छुरा भोंक दिया. सेलेस उस समय मग्दालेना मलीवा नाम की एक दूसरी उभरती हुई प्रतिभा के विरुद्ध खेल रही थी. सेलेस की जान बच तो गयी, पर पहले जैसा वे फिर कभी नहीं खेल पाईं. हमलावर स्टेफी ग्राफ का प्रशंसक था, भले ही वे उसे नहीं जानती थीं, तब भी इस घटना से उन्हें आघात पहुंचना स्वाभाविक था.

कर चोरी का संदेह

इन आघातों को पीछे छोड़ते हुए स्टेफी ग्राफ 1993 में एक बार फिर विश्व वरीयता-क्रम के शिखर पर पहुंची. 1995 और 1996 में उन्होंने पेरिस, विम्बलडन और न्यूयॉर्क के ग्रैंड स्लैम जीते. इस बीच 1995 से जर्मनी में मानहाइम का सरकारी अभियोक्ता कार्यालय स्टेफी ग्राफ और पिता पेटर ग्राफ़ के विरुद्ध करचोरी के संदेह में जांच करने लगा था. स्टेफी ने अपने करों आदि का सारा हिसाब-किताब अपने पिता को ही सौंप रखा था. इसलिए अंत में उनको तो निर्दोष माना गया, पर पिता पेटर ग्राफ़ को पौने चार साल जेल की सज़ा हो गयी.

इन सब कारणों से स्टेफी ग्राफ 1997 में केवल पांच टूर्नामेंन्टों में खेल सकीं. शरीर भी अब पहले जैसा नहीं रह गया था. बार-बार घायल हो जाती थीं. विशेषकर घुटनों और कमर में दर्द होने लगा था. उसी साल उन्हें स्विट्ज़रलैंड से निकली नयी सनसनी मार्टिना हिंगिस के हाथों मात खानी पड़ी. घुटने का ऑपरेशन कराना पड़ा. वे एक साल तक खेल नहीं पाईं. लेकिन, कमाल यह रहा कि 1999 में पेरिस के फ्रेंच ओपन के फ़ाइनल में पहुंच कर और फिर तीन सीधे सेटों में हिंगिस को हरा कर उन्होंने दिखा दिया कि हाथी कितना भी दुबला हो जाए लेकिन रहेगा हाथी ही!

अंतिम विजय वाला दिन

स्टेफी ग्राफ ने फ्रेंच ओपन की अपनी अंतिम विजय वाले दिन को बाद में अपने खेल-जीवन का सबसे सबसे अच्छा दिन बताया. इसका एक कारण यह भी रहा हो सकता है कि उसी दिन आंद्रे अगासी ने भी फ्रेंच ओपन का खिताब जीता था. उसी साल स्टेफी ग्राफ ने विम्बलडन में भी एक फिर अपना बाहुबल आजमाया. फ़ाइनल में भी पहुंचीं. पर, वहां उन्हें अमेरिका की 190 सेंटीमीटर लंबी लिंड्से डेवेनपोर्ट से हार माननी पड़ी. इस हार के बाद स्टेफी ग्राफ ने व्यावसायिक टेनिस खेलना छोड़ दिया. 2001 में आंद्रे अगासी से विवाह किया और अमेरिका में ही अपना घर-परिवार बसाया.

उन्हीं दिनों जर्मनी के एक अखबार के साथ भेंटवार्ता में स्टेफी ग्राफ ने कहा, ‘मुझे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है. मैं अपनी जीवन-यात्रा में कुछ नहीं बदलना चाहती.’ पति आंद्रे अगासी ने एक दूसरे जर्मन दैनिक से कहा, ‘वो अपने मूल्यों के प्रति सच्ची है. उन्हीं के अनुसार जीती है. कुछ बोलती नहीं. बस, जीती है.’ अगासी की सबसे बड़ी कामना ‘यही है कि वो मुझे कभी छोड़ कर न जाए. मैं हर साल यही कामना करता हूं कि वह अगले 20 वर्ष भी मेरा साथ देती रहे.’ स्टेफी ग्राफ और आंद्रे अगासी के शुभचिंतक भी यही चाहेंगे कि दोनों सदा साथ रहें, सुखी रहें.

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