तहलका के थिंक फेस्टिवल में तरुण तेजपाल

Law | Special Report

Why punishing Tarun Tejpal would be unjust to him and not justice to the other side

तरुण तेजपाल के मामले में आया निचली अदालत का 527 पन्नों का फैसला जो बताता है, वह हैरान भी करता है और परेशान भी

Sanjay Dubey | 04 June 2021

तहलका के संस्थापक तरुण तेजपाल को बरी करने का फैसला देते हुए कोर्ट ने पृष्ठ संख्या 509 पर लिखा है – ‘इस मामले के आईओ ने सीसीटीवी फुटेज की अनएडिटेड कॉपी नहीं दी जिसके चलते अभियुक्त को माननीय सुप्रीम कोर्ट के पास जाना पड़ा और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष को अनएडिटेड सीसीटीवी फुटेज की क्लोन कॉपी देने के लिए कहा जोकि दो साल तक नहीं किया गया और अंत में आरोपित को 2016 में ही सीसीटीवी फुटेज की क्लोन कॉपी दी गई’

अदालत के इस कथन में दो महत्वपूर्ण बातें हैं. पहली इस मामले में आरोपित के लिए अपना बचाव करना आसान नहीं रहा होगा. दूसरा सीसीटीवी फुटेज में ऐसा क्या था कि बचाव पक्ष उसे पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक चला गया और अभियोजन पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी लंबे समय तक उसे बचाव पक्ष को नहीं दिया?

यह किसी से छिपा नहीं है कि हमारे देश में बलात्कार के मामलों में पीड़ित पक्ष को तरह-तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. इसका लेना-देना कानून से कम और कानून के पालन को सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं और समाज की सोच से ज्यादा है. लेकिन तरुण तेजपाल का मामला इस मामले में बिलकुल अलग है. इसमें व्यवस्था पीड़िता के साथ बेहद मजबूती से खड़ी नजर आती है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि तरुण तेजपाल के मामले में गोवा पुलिस ने अपने आप ही एफआईआर दर्ज की. इस मामले में गोवा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी विशेष रुचि दिखाई और कई प्रेस वार्ताएं कीं. निचली अदालत के निर्णय में साफ लिखा है कि इस मामले की जांच अधिकारी सुनीता सावंत का कहना था कि इसकी ‘जांच को डिप्टी एसपी सैमी टवारेस, एचपी ओआर कुदतरकर और डीआईजीपी (ओपी) मिश्रा निर्देशित और संचालित कर रहे थे. (पृष्ठ 395) क्राइंम ब्रांच की सीनियर इंस्पेक्टर सुनीता सावंत को भी बेहद सख्त पुलिस ऑफिसर माना जाता है. और शायद इसीलिए गोवा पुलिस ने इस बात की परवाह न करते हुए कि वे खुद ही इस मामले में शिकायतकर्ता हैं सावंत को ही इस मामले की जांच सौंप दी, वह भी तब जब उस समय विभाग में एक अन्य महिला पुलिस अधिकारी सुदीक्षा नाइक भी थीं जिन्हें यह जांच सौंपी जा सकती थी (506-507).

तरुण तेजपाल से जुड़े मामले में गोवा सरकार कितनी गंभीर रही होगी इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 21 मई 2021 को निचली अदालत का फैसला आते ही गोवा के मुख्यमंत्री पीबी सावंत ने खुद इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने का एलान किया. और इस जजमेंट की कॉपी मिलते ही न केवल हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील की गई बल्कि वहां गोवा सरकार का पक्ष देश के दूसरे सबसे बड़े लॉ ऑफिसर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे हैं.

यहां पर एक और तथ्य रखा जा सकता है. 2014 में जब तरुण तेजपाल ज्यूडिशियल कस्टडी में थे, उस वक्त गोवा पुलिस ने उन पर जेल तोड़ने की साजिश रचने का एक मामला दर्ज किया था. तरुण तेजपाल के परिजनों का आरोप है कि उनकी जमानत में बाधा डालने के लिए इसे ऐसा किया गया था. इस आरोप को इस बात से समर्थन मिल सकता है कि उसके बाद सात साल हो गए किसी को यह नहीं पता कि उस मामले का हुआ क्या.

अब आते हैं अदालत की दूसरी बात पर – सीसीटीवी फुटेज में ऐसा क्या था कि बचाव पक्ष उसे पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक चला गया और इसके बाद भी उसे सारे जरूरी सीसीटीवी फुटेज नहीं मिले?

सीसीटीवी से एक और महत्वपूर्ण बात पता लग सकती थी – क्या इस दौरान तरुण तेजपाल और पीड़िता किसी फ्लोर पर लिफ्ट से बाहर भी निकले थे?

यहां बिना किसी भूमिका के कहा जा सकता है कि जो भी सीसीटीवी फुटेज बचाव पक्ष को मिले उन्होंने तरुण तेजपाल को बरी करवाने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई. पीड़िता का आरोप था कि तरुण तेजपाल ने गोवा के ग्रैंड हयात होटल में उस पर दो बार – 7 और 8 नवंबर 2013 को – यौन हमला किया. उस समय गोवा के इस होटल में तहलका का थिंक फेस्टिवल आयोजित हो रहा था. इस महोत्सव में पीड़िता की जिम्मेदारी हॉलीवुड सुपरस्टार रॉबर्ट डी नीरो और उनकी बेटी ड्रेना डी नीरो का ध्यान रखने की थी. पीड़िता का कहना था कि थिंक फेस्ट शुरु होने से पहले वाली रात यानी 7 नवंबर को जब वह रॉबर्ट डी नीरो को उनके कमरे में छोड़ने जा रही थी तो उस समय तरुण तेजपाल भी उनके साथ गये थे. राबर्ट डी नीरो ग्रांड हयात के सात नंबर ब्लॉक के दूसरे फ्लोर पर रुके हुए थे. पीडि़ता का आरोप था कि रॉबर्ट डी नीरो को उनके कमरे में छोड़ने के बाद जब जब वे दोनों लिफ्ट से ग्राउंड फ्लोर पर आये तो तरुण ने हाथ पकड़कर उसे फिर से लिफ्ट में खींचते हुए कहा कि ‘चलो बॉब (रॉबर्ट डी नीरो) को जगाते हैं’. इसके बाद उन्होंने लिफ्ट में पीड़िता पर यौन हमला किया. इस दौरान वे लिफ्ट के कुछ बटनों को दबाते रहे जिससे उसके दरवाजे नहीं खुले और वह लगातार ऊपर-नीचे घूमती रही.

पीड़िता का अपने आरोपों में यह कहना था कि जब दो मिनट बाद लिफ्ट के दरवाजे खुले तो वह रुआंसी थी और लिफ्ट से निकलकर तेज़ी से बाहर चली गई. बाद में वह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पहुंची, जहां तहलका का स्टाफ रुका हुआ था और अपने तीन दोस्तों और सहकर्मियों – इशान तन्खा, शौगत दास गुप्ता और जी विष्णु – को इस बारे में सबसे पहले बताया.

यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि ग्रांड हयात होटल की लिफ्ट्स में तो सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे थे लेकिन उसके हर फ्लोर पर यानी कि लिफ्ट्स के बाहर कैमरे मौजूद थे. इनकी फुटेज से यह भले नहीं पता लगता कि लिफ्ट के अंदर क्या हुआ था लेकिन यह तो पता लग ही सकता था कि क्या अपराध का समय दो मिनट ही था? क्या इस दौरान लिफ्ट का दरवाजा वाकई बंद रहा? क्या आरोपित यानी तरूण तेजपाल ने हाथ पकड़कर पीड़िता को लिफ्ट में खींचा था? और जब आरोपित और पीड़िता लिफ्ट से बाहर निकले तो उनके हाव-भाव कैसे थे?

सीसीटीवी से एक और महत्वपूर्ण बात पता लग सकती थी – क्या इस दौरान तरुण तेजपाल और पीड़िता किसी फ्लोर पर लिफ्ट से बाहर भी निकले थे? तरुण तेजपाल का अपने बचाव में कहना था कि इस दौरान वे दोनों सेकंड फ्लोर के बजाय गलती से फर्स्ट फ्लोर पर लिफ्ट से बाहर चले गये थे. यानी वे लगातार दो मिनट लिफ्ट में थे ही नहीं बल्कि दो टुकड़ों में करीब आधा मिनट ही उसमें थे.

इसका मतलब यह कि सात नंबर ब्लॉक के सीसीटीवी फुटेज बहुत महत्वपूर्ण थे और केवल उनसे ही बड़ी आसानी से यह सिद्ध किया जा सकता था कि तरुण तेजपाल ने अपराध किया था या नहीं? अगर उन्होंने यह अपराध किया था तो ये फुटेज अभियोजन पक्ष के लिए बहुत जरूरी थे. और अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया था तो इन फुटेज का सामने आना बचाव पक्ष के लिए उतना ही जरूरी था. लेकिन अभियोजन पक्ष ने केवल ग्राउंड और सेकंड फ्लोर के फुटेज ही जब्त किये. अदालत का मानना है कि उसने इतने महत्वपूर्ण होते हुए भी फर्स्ट फ्लोर के फुटेज को या तो नष्ट कर दिया या हो जाने दिया या उसे कोर्ट में पेश नहीं दिया (पृष्ठ संख्या 421, 507). अपने निर्णय में कोर्ट का यह भी कहना है कि तरुण तेजपाल ने अपने बचाव में फर्स्ट फ्लोर पर जाने की बात कही थी और उनकी इस बात को गलत सिद्ध करने के लिए भी पहली मंजिल की सीसीटीवी फुटेज बेहद जरूरी थी.

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि इस मामले की आईओ सुनीता सावंत सहित कई पुलिस अधिकारियों ने नवंबर 2013 में फर्स्ट फ्लोर के सीसीटीवी फुटेज देखने की बात अदालत में स्वीकारी थी (पृष्ठ संख्या 419). लेकिन उनका कहना था कि उन्हें यह याद नहीं कि उसमें क्या था. बाद में अभियोजन पक्ष के वकील का कहना था कि वे शायद कोर्ट के प्रॉपर्टी रूम में सही तरह से स्टोर न किये जाने के चलते नष्ट हो गये होंगे. इस पर कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि अगर ऐसा होता तो सारे सीसीटीवी फुटेज नष्ट होते केवल फर्स्ट फ्लोर के और वह भी कुछ ही दिनों के (30 अगस्त 2013 के बाद के) फुटेज ही डीवीआर से नष्ट क्यों हुए (पृष्ठ 432, 435). यहां कुछ और अहम तथ्य ये हैं कि पुलिस ने न तो कभी ब्लॉक सेवन के डीवीआर रूम को सील किया, न ही समय पर डीवीआर को जब्त किया न ही उसे जब्त करते वक्त उसके लिए कोई हैश वैल्यू ही जेनरेट की ताकि उसमें मौजूद फुटेज के साथ कोई छेड़छाड़ न हो सके (पृष्ठ संख्या, 423, 507, 509). इसके अलावा डीवीआर को जब्त किये जाने की जानकारी न तो चार्जशीट में दी गई है और न केस डायरी में और इस मामले में आईओ का कहना था कि उसे नहीं पता कि ऐसा कैसे हुआ.

सात नवंबर की सीसीटीवी फुटेज बताती है कि पीड़िता का यह आरोप सही नहीं था कि आरोपित ने लिफ्ट से निकलते ही फिर से पीड़िता को हाथ पकड़कर लिफ्ट में खींच लिया था.

दूसरी तरफ तरुण तेजपाल ने 22 नवंबर 2013 को इस मामले की एफआईआर दर्ज होते ही एक प्रेस रिलीज़ के जरिये संबंधित सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक किये जाने की मांग की थी. जाहिर सी बात है ऐसा नहीं किया गया. और जैसा कि ऊपर स्पष्ट ही हो चुका है कोर्ट में भी जो फुटेज पेश की गई वह सिर्फ वही थी जो सीधे-सीधे अभियोजन पक्ष के खिलाफ जाने वाली नहीं लगती थी. अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि जब बचाव पक्ष ने डीवीआर को प्ले करके आईओ सुनीता सावंत का क्रॉस एक्जामिनेशन करने का अनुरोध किया तो अभियोजन पक्ष ने इसका पुरजोर विरोध यह कहते हुए किया कि डीवीआर काम नहीं कर रहा है. जब उससे कहा गया कि उस फुटेज को ग्रैंड हयात से दूसरा डीवीआर लाकर देखा जा सकता है तो अभियोजन पक्ष ने इसका भी विरोध किया. (पृष्ठ संख्या 433).

अब बात उस सीसीटीवी फुटेज की जो अदालत में पेश की गईं. अगर सात तारीख के सीसीटीवी फुटेज की बात करें तो उससे सबसे पहली बात यह पता चलती है कि राबर्ट डी नीरो को सेकंड फ्लोर पर छोड़ने के बाद ग्राउंड फ्लोर पर उतरते ही तरुण तेजपाल पीड़िता का हाथ पकड़कर उसे लिफ्ट में नहीं ले गये थे.

यहां जरा सा भटककर एक और महत्वपूर्ण बात की जा सकती है. पीड़िता का अपने शुरुआती बयानों में ऐसा न कहने के बाद, बाद में कोर्ट में यह कहना था कि चूंकि 7 नवंबर थिंक फेस्टिवल का पहला दिन था इसलिए तरुण तेजपाल ने उससे कहा था कि वे खुद भी उसके साथ रॉबर्ट डी नीरो को छोड़ने उनके सुईट तक जाएंगे. अभियोजन पक्ष के ऐसा कहने का मतलब यह दर्शाना था कि तरुण तेजपाल पीड़िता के साथ जाने के लिए रॉबर्ट डी नीरो को छोड़ने जाने का बहाना बना रहे थे. लेकिन अभियोजन पक्ष के गवाह नंबर 43 प्रवाल श्रीवास्तव का अदालत में कहना था कि पीड़िता ने उनके सामने तरुण तेजपाल से उसके साथ चलने के लिए कहा था (पृष्ठ, 249, 251). यहां सहज बुद्धि यह कहती है कि अगर तरुण तेजपाल पीडि़ता के साथ दुष्कर्म करने के लिए ही रॉबर्ट डी नीरो को छोड़ने जाना चाहते थे तो क्या ऐसा उन्हें सेकंड फ्लोर से ग्राउंड फ्लोर पर आते वक्त यानी पहला मौका मिलते ही नहीं करना चाहिए था? कोई ऐसा क्यों करेगा कि पहले लिफ्ट से नीचे आ जाएगा और फिर जैसा कि पीड़िता का आरोप था, उससे बाहर निकलते ही यौन हमला करने के लिए फिर से पीड़िता को लेकर उसमें चला जाएगा?

सात नवंबर की सीसीटीवी फुटेज बताती है कि पीड़िता का यह आरोप सही नहीं था कि आरोपित ने लिफ्ट से निकलते ही फिर से पीड़िता को हाथ पकड़कर लिफ्ट में खींच लिया था. इसके बजाय वे दोनों रॉबर्ट डी नीरो को दूसरी मंजिल पर छोड़कर नीचे आ जाने के छह मिनट बाद ( रात के 10:34 बजे) लिफ्ट में दुबारा घुसे थे. अदालत में पीड़िता ने बाद में यह माना कि इन छह मिनट में उन्होंने कई लोगों के बारे में कई तरह की बातें कीं (पृष्ठ 249, 263). इसका सीधा सा एक मतलब यह भी हो सकता है कि वे जब इसके तुरंत बाद लिफ्ट में गये तो उसका कुछ न कुछ रिश्ता उन बातों या उनमें से किसी एक बात से रहा होगा. इसके बारे में भी अदालत के फैसले में लिखा है लेकिन हम ज्यादा न भटकते हुए सीसीटीवी फुटेज पर आ जाते हैं.

पीड़िता का पुलिस से लेकर अदालत तक अपने हर बयान में बार-बार यह कहना था कि लिफ्ट में घुसने के बाद उस पर यौन हमला करते समय तरुण तेजपाल लगातार लिफ्ट के पैनल पर लगे बटनों को दबा रहे थे जिसके चलते उसका दरवाजा नहीं खुल रहा था और वह ऐसे ही ऊपर-नीचे घूम रही थी. लेकिन अदालत में जब लिफ्ट कंपनी के प्रतिनिधि अमीन जब्बार (पीडब्ल्यू 44) और होटल के तत्कालीन सुरक्षा अधिकारी प्रियन केएस (पीडब्ल्यू 16) का बयान हुआ तो उनका साफ कहना था कि लिफ्ट को बिना उसका दरवाजा खोले ऊपर-नीचे घुमाते रहना संभव नहीं है (पृष्ठ संख्या 385).

अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि आईओ सुनीता सावंत ने न तो एफआईआर दर्ज करने से पहले और न ही बाद में इस बात की जांच करना जरूरी समझा कि लिफ्ट को बिना दरवाजा खोले ऊपर-नीचे घुमाते रहा जा सकता है या नहीं (पृष्ठ 520). लेकिन जब गवाहों के बयान से स्थिति साफ हो गई तो पुलिस नवंबर 2020 में एक बार फिर से ग्रैंड हयात में लिफ्ट से जुड़ी जानकारी लेने गई. इसके बाद दिसंबर 2020 में क्रॉस इग्जामिनेशन के दौरान पीड़िता ने अपना बयान बदल दिया (पृष्ठ संख्या 512. 518). अब उसका कहना था कि आरोपित कई बटन नहीं बल्कि लिफ्ट का एक ही बटन दबा रहा था. हालांकि बाद में यह भी साबित हो गया कि लिफ्ट के पैनल पर मौजूद इमरजेंसी बटन से भी लिफ्ट के दरवाजे को अंदर से लगातार बंद नहीं रखा जा सकता था (पृष्ठ संख्या 396).

इससे दो मतलब निकाले जा सकते हैं – या तो उन दो मिनट में जब लिफ्ट का दरवाजा खुला था तब आरोपित और पीड़िता उसके अंदर ही थे या उस वक्त वे लिफ्ट में नहीं थे.

लेकिन अपने क्रॉस इग्ज़ामिनशन में पीड़िता इस बात पर टिकी रही कि लिफ्ट में घुसने के बाद दो मिनट तक उसका दरवाज़ा नहीं खुला था. हालांकि कई गवाहों के बयानों से यह पहले ही साबित हो चुका था कि ऐसा होना संभव नहीं है लेकिन सीसीटीवी के फुटेज भी यह दिखाते हैं कि इस दौरान केवल ग्राउंड फ्लोर का दरवाज़ा ही दो बार खुला था. चूंकि फर्स्ट फ्लोर के फुटेज नहीं थे इसलिए कोर्ट का कहना है कि यह नहीं कहा जा सकता कि वहां पर लिफ्ट का दरवाज़ा कितनी बार खुला था. (पृष्ठ 389) 

इससे दो मतलब निकाले जा सकते हैं – या तो उन दो मिनट में जब लिफ्ट का दरवाजा खुला था तब आरोपित और पीड़िता उसके अंदर ही थे या उस वक्त वे लिफ्ट में नहीं थे. तरुण तेजपाल का कहना था कि इस दौरान वे सेकंड फ्लोर के बजाय गलती से फर्स्ट फ्लोर पर चले गये थे. अगर उनकी इस बात को सही मान लिया जाये तो ग्राउंड फ्लोर से सेकंड फ्लोर तक पहुंचने में लगभग उतना ही वक्त लगेगा जितना तरुण तेजपाल और पीड़िता ने लिया था – करीब डेढ़ मिनट लिफ्ट से उस जगह तक जाकर लौटकर आने में जिसके ठीक ऊपर (दूसरी मंजिल पर) रॉबर्ट डी नीरो का कमरा था और बाकी आधा मिनट ग्राउंड फ्लोर से फर्स्ट फ्लोर पर और फिर वहां से दूसरी मंजिल पर जाने में. कोर्ट का अपने फैसले में कहना है कि इससे बचाव पक्ष की बातों को बल मिलता है (पृष्ठ 443).

पीड़िता का कहना था कि जब लिफ्ट रुकी तो वह लिफ्ट से तेज़ी से बाहर निकली (शुरुआत में उसका कहना था कि दोनों ग्राउंड फ्लोर पर लिफ्ट से बाहर निकले लेकिन बाद में पीड़िता ने अपने इस बयान में सुधार कर इसे सेकंड फ्लोर कर दिया) और तरुण उसके पीछे-पीछे यह पूछते हुए चल रहे थे कि ‘हुआ क्या है?’ पीड़िता का यह भी कहना था कि उस समय वह रुंआसी थी. लेकिन सीसीटीवी फुटेज देखने से पता चलता है कि पीड़िता का ऐसा कहना सही नहीं है. सेकंड फ्लोर की उस समय की फुटेज देखने पर पता चलता है कि वहां पर पहले तरुण तेजपाल लिफ्ट से बाहर आये थे और इसके बाद वे और उनके पीछे-पीछे पीड़िता आराम से नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ चले गए. ग्राउंड फ्लोर की फुटेज दिखाती है कि जब दोनों लगभग आधा मिनट बाद सीढियों से वहां पहुंचे तब भी तरुण तेजपाल ही जरा सा आगे थे और दोनों कुछ बातें करते हुए ब्ल़ॉक सात की लॉबी से बाहर निकल गये.

अगर आठ नवंबर की बात करें, जिस दिन पीड़िता का कहना था कि तरुण तेजपाल ने उस पर दुबारा यौन हमला किया था, तो उस दिन के सीसीटीवी फुटेज में फिर से ऐसे ही कई विरोधाभास देखने को मिलते हैं. लेकिन इससे पहले 7 नवंबर से ही जुड़ा एक बेहद महत्वपूर्ण तथ्य जिसे वादी यानी पीड़िता ने सबसे छिपाया.

पीड़िता का कहना था कि पहली बार जब उस पर यौन हमला हुआ तो इसके बारे में सबसे पहले उसने अपने दोस्तों और सहकर्मियों –  इशान तन्खा, शौगत दास गुप्ता और जी विष्णु – को जिस होटल में तहलका का स्टाफ रुका हुआ था, वहां जाकर बताया. इसके बाद उसने इन लोगों को 15 नवंबर को एक मेल भी लिखा जिसके साथ एक अटैचमेंट था जिसमें इस पूरी घटना को सिलसिलेवार लिखा गया था. चूंकि यह अटैचमेंट इशान से खुल नहीं रहा था इसलिए पीड़िता ने यह मेल उसे दुबारा 16 नवंबर को भी भेजी. इन तथ्यों के बीच और भी कई परतें हैं जैसे कि इशान तन्खा, शौगत दास गुप्ता और जी विष्णु को मेल पर अटैचमेंट से पहले पीड़िता ने अपनी सौतेली मां को भी यही मेल भेजा था. और बाद में इसी के आधार पर तहलका की मैनेजिंग एडीटर शोमा चौधरी को 16 नवंबर को अपनी पहली शिकायत भेजी थी. मेलों के इस पूरे लेन-देन में कई अगर-मगर होने के बाद भी पुलिस ने इनमें से केवल कुछ ईमेल ही जब्त कीं और बाकी छोड़ दीं. फिलहाल हम भी इसे यहीं छोड़कर आगे की बात करते हैं (पृष्ठ 282-286).

अपने सहकर्मियों को 15 नवंबर को लिखे यौन हमले के पहले ब्यौरे में पीड़िता का यह भी कहना था कि सात नवंबर 2013 की घटना के बाद जब वह आरोपित के साथ ब्लॉक सात से बाहर आई तो निखिल अग्रवाल नाम के उनके दोस्त ग्रैंड हयात के मेन लॉन में खड़े थे. पीड़िता के मुताबिक उसने फौरन ‘अपने दोस्त’ निखिल से कहा कि वे वहीं खड़े रहें और उससे बात करें. पीड़िता ने निखिल को बताया कि उसे आरोपित से डर लग रहा है और जब तक आरोपित मौके से चला न जाए वे खड़े रहें और उससे बात करते रहें. पीड़िता के मुताबिक हालांकि उसने निखिल को अपने ऊपर हुए यौन हमले के बारे में नहीं बताया. (पृष्ठ 258)

अदालत के मुताबिक पीड़िता घटना के कुछ ही मिनट बाद निखिल से मिली थी, लेकिन उसने यह तथ्य जान-बूझकर छिपा लिया

इसके बाद पीड़िता ने निखिल अग्रवाल के नाम का जिक्र अपने किसी भी बयान आदि में कभी नहीं किया. अदालत के मुताबिक जब पीड़िता से इसे बारे में पूछा गया तो उसने यह बात मान ली और कहा कि ऐसा उसने कई कारणों से किया. हालांकि उसने इन कारणों के बारे में कुछ नहीं बताया ( पृष्ठ 258-260).

बलात्कार की घटना के बाद पीड़िता सबसे पहले जिससे मिलती है उस शख्स की गवाही को ऐसे मामलों में बहुत अहम माना जाता है. ऐसे शख्स को कानूनी शब्दावली में कॉन्टेंपोरेनियस विटनेस कहा जाता है. अदालत के मुताबिक पीड़िता घटना के कुछ ही मिनट बाद निखिल से मिली थी, लेकिन अदालत से यह तथ्य जान-बूझकर छिपाया गया और पीड़िता ने निखिल से जुड़ी बातें हटा दीं.

यहीं नहीं, अदालत के मुताबिक जांच अधिकारी ने जो दस्तावेज जब्त किए थे उनमें पीड़िता की वह ईमेल भी थी जिससे साबित होता है कि निखिल अग्रवाल इस मामले के पहले और अकेले कॉन्टेंपोरेनियस विटनेस थे. लेकिन जांच अधिकारी ने न तो कभी निखिल से संपर्क कर उनसे पूछताछ की और न ही पीड़िता से यह सवाल किया कि उसने तहलका को भेजी शिकायत में इतने अहम गवाह से संबंधित बातें क्यों हटा लीं.  

निखिल अग्रवाल ने बाद में पुलिस को एक चिट्ठी लिखकर कहा था कि वे भी इस मामले से जुड़ी कुछ जानकारियां देना चाहते हैं. फिर भी उनसे कोई पूछताछ नहीं हुई. इस मामले में आईओ का कहना था कि उसने अपने उच्चाधिकारियों के निर्देश पर उनका बयान नहीं लिया (पृष्ठ 271). बाद में बचाव पक्ष ने उन्हें अपना गवाह बनाया.

अदालत का कहना है कि इस मामले में निखिल अग्रवाल का बयान पीड़िता के बयान के बिल्कुल उलट था. निखिल अग्रवाल का सात नवंबर को पीड़िता से अपनी मुलाकात के बारे में कहना था कि ‘उन्होंने पीड़िता और आरोपित को पूल साइड और कैपिज बार की तरफ से साथ-साथ गार्डन की तरफ आते हुए देखा था, और उसके बाद उन्होंने आरोपित को बार की तरफ मुड़ते और पीड़िता को उस तरफ आते देखा था जहां वे अपनी मंगेतर के साथ खड़े थे.’ निखिल के मुताबिक इसके बाद पीड़िता उनकी तरफ आई. उस समय उसके चेहरे पर मुस्कान थी. वह मुस्करा रही थी और बहुत रोमांचित लग रही थी. पीड़िता ने हाथ हिलाकर निखिल की तरफ इशारा किया और उन्हें अपने पास बुलाया. निखिल के मुताबिक जब वे पीड़िता के पास पहुंचे तो उसने मुस्कराते हुए उन्हें यह भी बताया कि वह तरुण तेजपाल के साथ फ्लर्ट कर रही है. निखिल के मुताबिक इस दौरान पीड़िता किसी भी तरह से परेशान नहीं लग रही थी (पृष्ठ 260 – 262).

एक बात और कही जा सकती है – पीड़िता ने अगले दिन निखिल को कई वॉट्सएप मैसेज किये थे जिनमें से दो में से पहला था – ‘लेकिन थैंक गॉड मुझे तुम मिल गए’ और दूसरा – ‘जाहिर है तुम इसके बारे में किसी को बताओगे नहीं.’

पीड़िता के बयानों में मौजूद तमाम विरोधाभासों पर अदालत का अपने फैसले में कहना है कि ‘ये इस तरह के हैं कि पीड़िता जो दावा कर रही है स्क्रीन पर उसका ठीक उल्टा घटता दिखता है.

अदालत के मुताबिक क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान पीड़िता ने निखिल अग्रवाल से अपने संबंधों के बारे में भी झूठ बोला. व्हाट्सएप मैसेजेस में निखिल को ‘निक्की’ कहने वाली पीड़िता का तब यह कहना था कि निखिल से उसका सामान्य सा परिचय ही है और वे उसकी अच्छी दोस्त नहीं हैं. लेकिन अदालत के मुताबिक सबूत बताते हैं कि निखिल और पीड़िता के बीच पुलिस द्वारा जब्त किये गये फोन पर ही 53,176 हजार वाट्सएप संदेशों का आदान-प्रदान हुआ था. इन संदेशों से उनके बीच गहरे संबंधों की बात भी पता चलती है जिसकी पुष्टि निखिल ने भी अदालत में की. अदालत के मुताबिक यह मानना थोड़ा अजीब है कि पीड़िता ने अपने इतने नजदीकी किसी व्यक्ति को यौन हमले के तुरंत बाद तब भी कुछ नहीं बताया जब वह बहुत परेशान और रुंआसी हो रही थी. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि पीड़िता के फोन में शौगत दास गुप्ता के साथ एक भी व्हाट्सएप संदेश नहीं मिला था और इशान और जी विष्णु के साथ उसके 10 और 500 व्हाट्सएप संदेश ही थे. लेकिन निखिल के इतने करीब होने और घटना के तुरंत बाद ही उससे मिलने के बावजूद पीड़िता ने उसे यौन हमले के बारे में कुछ नहीं बताया. इसके बजाय उसने यह बात दो घंटे बाद अपने होटल पहुंचकर इशान, शौगत और जी विष्णु को उनके कमरे में जाकर बताई. (पृष्ठ 134, 253)

अब बात आठ नवंबर की. शोमा चौधरी को 18 नवंबर को भेजी गई अपनी शिकायत में और पुलिस को दिये गये अपने बयान में भी पीड़िता का कहना था कि आठ नवंबर की रात को जब वह ब्लॉक 7 के ग्रैंड क्लब में पहुंची तो तरुण तेजपाल उसके पास आए और कहा, ‘मेरे साथ चलो, बॉब के कमरे से कुछ लाना है.’ पीड़िता का कहना था कि वह उस समय इसलिए भी बहुत डरी हुई थी कि इस बार तरुण तेजपाल उसे रॉबर्ट डी नीरो के कमरे में अकेले चलने के लिए कह रहे थे. इसलिए उसने तरुण से कहा कि जो चाहिए उसे वह अकेले ही ले आएगी. लेकिन पीड़िता के मुताबिक तरुण उसे कलाई से पकड़कर लिफ्ट में ले गए और जैसे ही उसके दरवाजे बंद हुए उन्होंने फिर से उस पर यौन हमला किया (पृष्ठ 191).

इसके बाद पीड़िता का आरोप था कि जब वे दोनों सेकंड फ्लोर पर पहुंचे तो तरुण ने मुझसे कहा कि ‘यूनीवर्स इज़ टेलिंग अस समथिंग’ जिसके जवाब में उसने कहा कि मैं सीढ़ियों से जा रही हूं. लेकिन तरुण तेजपाल ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और वापस लिफ्ट में खींच लिया.

लेकिन सीसीटीवी फुटेज देखने से पता लगता है कि आठ तारीख को ग्राउंड और सेकंड फ्लोर पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. न तो ग्राउंड फ्लोर पर तरुण ने पीड़िता का हाथ पकड़ा था और न सेकंड फ्लोर पर उसे लिफ्ट में खींचा था. सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखता है कि रात को 8:10 बजे ग्राउंड फ्लोर पर लिफ्ट की तरफ तरुण आगे-आगे जा रहे हैं और पीड़िता उनके पीछे. लिफ्ट के पास उन्हें जाने-माने फोटोग्राफर रोहित चावला मिलते हैं जिनसे तरुण की हल्की सी बात होती है. इस दौरान पीड़िता उनके पीछे खड़ी होती है. तभी दूसरी लिफ्ट आ जाती है, तरुण रोहित से फोन करने जैसा कुछ इशारा करते हैं और उस लिफ्ट में चले जाते हैं. उनके पीछे-पीछे पीड़िता भी लिफ्ट में घुस जाती है. (पृष्ठ 444)

इसके लगभग 20 सेकंड बाद की सेकंड फ्लोर की सीसीटीवी फुटेज बताती है कि वहां लिफ्ट से पहले पीड़िता निकली, उसके पीछे तरुण निकले और निकलते ही फिर से लिफ्ट में घुस गए. और उनके पीछे भागकर पीड़िता भी लिफ्ट में चली गई. (पृष्ठ 445)

दोनों दिनों के सीसीटीवी फुटेज और पीड़िता के बयानों में मौजूद तमाम विरोधाभासों पर अदालत का अपने फैसले में कहना है कि ‘ये इस तरह के हैं कि पीड़िता जो दावा कर रही है स्क्रीन पर उसका ठीक उल्टा घटता दिखता है, लेकिन आईओ ने इसके बाद भी उससे इस पर कोई सवाल नहीं किया’. (पृष्ठ 520) अदालत ने इस तरह के विरोधाभासों, तथ्यों को छिपाने और अपने बयानों को बार-बार बदलने की वजह से ही इस मामले की पीड़िता को एक ‘स्टर्लिंग क्वालिटी’ का ऐसा गवाह नहीं माना जिसकी अकेले की गवाही के आधार पर आरोपित को दोषी करार दिया जा सकता था. (पृष्ठ 229) इसके अलावा इस मामले में कोई मेडिकल एविडेंस भी नहीं था. जब अदालत में इस बारे में पूछा गया तो पीड़िता का कहना था कि पुलिस ने उससे मेडिकल एग्जामिनेशन कराने के बारे में पूछा ही नहीं था. हालांकि बाद में उसने यह मान लिया कि उसने ही 26 नवंबर 2013 को अपना मेडीकल एग्जामिनेशन कराने से इनकार कर दिया था. (पृष्ठ 47) वैसे कथित घटना के इतने दिनों बाद मेडिकल एग्ज़ामिनेशन से शायद ही कुछ हासिल होता लेकिन इस मामले में भी पीड़िता का व्यवहार वैसा ही था जिसकी वजह से अदालत ने उसे ‘स्टर्लिंग विटनेस’ मानने से इनकार कर दिया.

यौन हमले की बात अपनी प्रबंध संपादक को न बताने के सवाल पर पीड़िता का कहना था कि शोमा आयोजन में अपने तमाम कार्यक्रमों के सिलसिले में काफी व्यस्त थीं और उनके पास समय नहीं था.

इस मामले से जुड़े ऐसे कितने ही पहलू हैं जिनके बारे में कितनी ही बातें की जा सकती हैं लेकिन इनमें से कम से कम दो पर विस्तार से बात करना जरूरी है. इन दो में से एक – इस मामले में पुलिस की भूमिका – पर हम थोड़ी-बहुत चर्चा कर चुके हैं. लेकिन अदालत ने अपने फैसले में उसके बारे में जो और जितना लिखा है उसे देखते हुए यह पर्याप्त नहीं लगती. इस मामले के जिस पहलू पर अब तक हमने चर्चा नहीं की है उस पर सोशल मीडिया में बड़े ऊपरी तरीके से काफी चर्चा होती रही है. यह पहलू है कथित यौन हमले के बाद पीड़िता का व्यवहार.

अदालत ने फैसले में अपनी मनोदशा को लेकर पीड़िता के बयान और उसके व्यवहार के विरोधाभास का कई जगह जिक्र किया है. अदालत के मुताबिक पीड़िता का कहना था कि सात और आठ नवंबर को उसके साथ जो हुआ उसके बाद न सिर्फ वह बेहद सदमे में थी बल्कि उसे बहुत डर भी लग रहा था. लेकिन यह उसके व्यवहार में कहीं से भी नहीं झलक रहा था.

पीड़िता के मुताबिक सात नवंबर 2013 को यौन हमले की घटना के बाद जब वह आरोपित के साथ लिफ्ट से बार निकली तो वह सदमे की हालत में थी और अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी. लेकिन अदालत के मुताबिक सीसीटीवी फुटेज में ऐसा नहीं दिखता. लिफ्ट से बाहर निकलने के बाद जिन निखिल अग्रवाल से पीड़िता सबसे पहले मिली उन्होंने भी इसके एकदम उलट बात कही है.

फैसले में यह भी कहा गया है कि आठ नवंबर 2013 को आरोपित के साथ लिफ्ट से बाहर निकलने, यानी दूसरे यौन हमले के ठीक बाद पीड़िता उस वीवीआईपी लाउंज में गई थी जहां आयोजन में आए हुए अति विशिष्ट लोगों की पार्टी चल रही थी. वहां उस समय तहलका की तत्कालीन प्रबंध संपादक शोमा चौधरी भी मौजूद थीं जो अभियोजन पक्ष की गवाह संख्या 45 हैं. पीड़िता और शोमा ने पार्टी में आपस में काफी देर तक बात की थी. इस समय के कुछ फोटोग्राफ भी हैं जिन्हें देखकर अभियोजन पक्ष के गवाह शौगत दास गुप्ता ने भी अदालत में माना कि पीड़िता इनमें खुश दिख रही है और मुस्कुरा रही है. शोमा चौधरी का भी उस पार्टी में उनके व्यवहार के बारे में यही कहना था. (पृष्ठ 250)

फैसले में सवाल उठाया गया है कि पीड़िता ने शोमा चौधरी को तभी इस घटना के बारे में क्यों नहीं बताया. यौन हमले की बात अपनी प्रबंध संपादक को न बताने के सवाल पर पीड़िता का कहना था कि शोमा आयोजन में अपने तमाम कार्यक्रमों के सिलसिले में काफी व्यस्त थीं और उनके पास समय नहीं था. लेकिन आठ नवंबर को पीड़िता की शोमा से हुई मुलाकात बताती है कि ऐसा नहीं था और उसके पास इस घटना के बारे में उन्हें बताने का पूरा मौका था.

अदालत के मुताबिक कथित यौन हमलों के बाद खींची गई पीड़िता की अन्य कई तस्वीरों में भी यह साफ दिख रहा है कि वह सदमे में या डरी हुई नहीं थी. यहां एक ऐसी ही तस्वीर का उदाहरण दिया जा सकता है जिसे 10 नवंबर 2013 को थिंक फेस्टिवल के आखिरी दिन इशान तन्खा ने खींचा था. इशान को पीड़िता अपना करीबी दोस्त बताती है. इस तस्वीर में पीड़िता, आरोपित और रॉबर्ट डी नीरो साथ खड़े हैं और तीनों ही मुस्करा रहे हैं. फैसले में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या 43 प्रवाल श्रीवास्तव भी इस दौरान वहां मौजूद थे. अपनी गवाही के दौरान उनका कहना था, ‘पीड़िता अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो के साथ तस्वीर खिंचवा रही थी और इसी दौरान उसने जोर से आरोपित को आवाज दी और कहा, ‘टीटी (तरुण तेजपाल), यहां आइए और मेरे साथ खड़े होइए, मिस्टर डी नीरो के साथ एक फोटो खिंचवाते हैं.’ कमोबेश यही बात कई दूसरे गवाहों ने भी कही है. अभियोजन पक्ष के एक गवाह का तो इस तस्वीर को देखकर यहा तक कहना था कि इसमें पीड़िता तरुण तेजपाल और रॉबर्ट डी नीरो से ज्यादा खुश नज़र आ रही है. (पृष्ठ 489)

अदालत के मुताबिक पीड़िता की यह बात बिल्कुल झूठ थी और उसका मकसद उस असल कारण को छिपाना था जिसके चलते पीड़िता अस्वाभाविक रूप से इतनी देर रात रॉबर्ट डी नीरो के सुईट में गई थी.

पीड़िता के व्यवहार का जिक्र करते हुए अदालती फैसले के पृष्ठ संख्या 469 पर एक बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी दर्ज है. इसके मुताबिक सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग दिखाती है कि आठ नवंबर 2013 को, यानी जिस दिन पीड़िता के मुताबिक आरोपित ने उस पर दूसरी बार यौन हमला किया था, देर रात करीब एक बजकर पांच मिनट पर पीड़िता रॉबर्ट डी नीरो के सुईट में गई थी. वीडियो रिकॉर्डिंग बताती है कि पीड़िता दो बजकर 30 मिनट तक वहां रही. इसके अगले दिन भी रात साढ़े 11 बजे से लेकर 12 बजकर पांच मिनट तक पीड़िता हॉलीवुड अभिनेता के सुईट में मौजूद थी. और उसके बाद वह उस रात थिंक फेस्टिवल की प्रोडक्शन टीम के सदस्य कार्तिकेय के कमरे में ठहर गई. अदालत के मुताबिक यह अहम है कि पीड़िता ने न तो अपनी शिकायत और न ही गवाही आदि में कभी इन तथ्यों का जिक्र किया.

इस बारे में पूछताछ करने पर पीड़िता ने बाद में कहा कि अगले दिन रॉबर्ट डी नीरो को अपनी बेटी ड्रेना के साथ गोवा घूमने और खरीदारी करने जाना था इसलिए वह दिन भर की योजना बनाने के लिए उनके पास गई थी. अदालत के मुताबिक पीड़िता की यह बात बिल्कुल झूठ थी और उसका मकसद उस असल कारण को छिपाना था जिसके चलते पीड़िता अस्वाभाविक रूप से इतनी देर रात रॉबर्ट डी नीरो के सुईट में गई थी. अदालत के मुताबिक इस बात की पुष्टि उन वाट्सएप संदेशों से होती है जिनका आदान-प्रदान पीड़िता, आरोपित की बेटी टिया तेजपाल और उनकी एक करीबी दोस्त मलिका सिंह के बीच हुआ था. ये संदेश नौ तारीख की सुबह एक वाट्सएप ग्रुप पर भेजे गए थे. पीड़िता इस ग्रुप की एडमिन थी और उसने बाद में यह ग्रुप डिलीट कर दिया था. लेकिन इसमें भेजे गए संदेश बचाव पक्ष की गवाह मलिका सिंह के फोन पर मौजूद थे.

इन जानकारियों से किसी को भी हैरानी हो सकती है. खुद पर हुए यौन हमले के थोड़ी ही देर बाद पीड़िता का रॉबर्ट डी नीरो के सुइट में जाना, अभिनेता से अंतरंग संबंध बनाना और इसके कुछ घंटे बाद ही एक वाट्सएप ग्रुप में इस बात की जानकारी देना जाहिर सी बात है एक अविश्वसनीय किस्म का व्यवहार है. यही नहीं, पीड़िता ने यह जानकारी जिस वाट्सएप ग्रुप में दी उसमें आरोपित की बेटी टिया तेजपाल भी मौजूद थी जिन्हें पीड़िता के मुताबिक उसने पिछली रात को ही आरोपित के यौन हमले की बात बताई थी.

उधर, शोमा चौधरी ने अपने बयान में कहा है कि आयोजन में आए किसी मेहमान के कमरे में इस तरह से जाना पीड़िता को दी गई किसी जिम्मेदारी का हिस्सा नहीं था. अभियोजन पक्ष की एक और गवाह नीना शर्मा का भी कहना था कि रॉबर्ट डी नीरो के शेड्यूल के बारे में उनसे तभी चर्चा कर ली गई थी जब वे गोवा पहुंचे थे और इसमें आखिरी समय में कोई बदलाव नहीं किया गया था.

अदालती फैसले में निखिल अग्रवाल सहित तमाम गवाहों का जिक्र है जिन्होंने कहा है कि उन्होंने सात, आठ और नौ नवंबर 2013 को पीड़िता को रात में होने वाली पार्टियों में प्रसन्नता के साथ समय बिताते देखा था. (पृष्ठ 484, 485). अदालत के मुताबिक इससे जाहिर होता है कि पीड़िता को देर रात और अगले दिन तड़के तक उस होटल में घूमने में कोई डर नहीं लग रहा था जिसमें उस पर यौन हमला करने वाला आरोपित भी ठहरा हुआ था. जबकि अपने बयान में पीड़िता ने बार-बार जिक्र किया है कि वह बेहद डरी हुई थी.

पीड़िता के मुताबिक थिंक महोत्सव खत्म हो जाने के बाद उसने कुछ दिन के लिए गोवा में ही रुकने का फैसला किया. इसकी वजह बताते हुए उसका कहना था कि जैसे ही वह मुंबई जाने को तैयार हुई उसे याद आया कि वहां उसकी मां उसके फ्लैट पर रुकी हुई थी और एक दिन बाद बेंगलुरू से उनके तीन सहयोगियों को भी मुंबई आकर उनके साथ ही रुकना था. और वह अपने साथ जो हुआ था उससे भी बेहद परेशान थी और उसके बारे में भी सोचना चाहती थी. लेकिन अदालत के मुताबिक उसके सामने आए सबूतों से यह साबित होता है कि पीड़िता ने थिंक महोत्सव खत्म होने के बाद गोवा में रुकने की योजना पहले से ही बनाई हुई थी. अदालत के मुताबिक पीड़िता और उसके मित्रों ने आपस में वाट्सएप पर जो संदेश भेजे हैं उनसे पता चलता है कि उसने इस आयोजन के बाद गोवा में पार्टी करने और अपने एक रूसी मित्र डैनी के साथ रुकने की योजना पहले से ही बना रखी थी. इसमें पीड़िता ने सात और आठ नवंबर की घटना के बाद भी कोई बदलाव नहीं किया.

जांच अधिकारी सुनीता सावंत ने 26 नवंबर को पीड़िता का बयान लेते समय उसका मिलान ब्लॉक 7 के सीसीटीवी फुटेज से करने का सामान्य काम तक नहीं किया, जबकि वे इन फुटेज को कई बार देख चुकी थीं.

पीड़िता के मुताबिक उसने अपनी मां को सात नवंबर को ही खुद पर हुए यौन हमले की जानकारी दे दी थी. अदालती फैसले के पृष्ठ संख्या 499 में कहा गया है कि बेटी के साथ इतने बड़े हादसे की जानकारी मिलने के बावजूद पीड़िता की मां ने अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों में कोई बदलाव नहीं किया. इस तरह की जानकारी मिलने पर स्वाभाविक व्यवहार यह होता कि वे अपनी बेटी के साथ होने की कोशिश करतीं और इसके लिए और कुछ नहीं तो अपने सहयोगियों से यह कहतीं कि वे अपने रहने की व्यवस्था कहीं और कर लें. इन सहयोगियों में से हर एक को रहने की व्यवस्था करने के लिए उनकी कंपनी से भत्ता भी मिलना था. लेकिन पीड़िता की मां ने ऐसा कुछ नहीं किया. और पीड़िता मुंबई तब पहुंची जब उसकी मां वहां से जा चुकी थी.

इन मिली-जुली वजहों से ही अदालत का अपने फैसले में यह कहना था कि पीड़िता का व्यवहार उस अपराध के साथ मेल खाता हुआ नहीं लग रहा था जिसका आरोप उसने तरुण तेजपाल पर लगाया था.

जहां तक इस मामले में पुलिस के व्यवहार की बात है तो उसके बारे में अदालत ने अपने निर्णय में इतना कहा है कि उसके लिए एक से ज्यादा लेख अलग से लिखे जा सकते हैं. लेकिन पुलिस से अदालत की निराशा का अंदाजा इस एक बात से ही लगाया जा सकता है कि जांच अधिकारी सुनीता सावंत ने 26 नवंबर को पीड़िता का बयान लेते समय उसका मिलान ब्लॉक 7 के सीसीटीवी फुटेज से करने का सामान्य काम तक नहीं किया, जबकि वे इन सीसीटीवी फुटेज को पहले ही कई बार देख चुकी थीं. इसके अलावा उन्होंने पीड़िता से यह तक नहीं पूछा कि उसे कैसे पता चला कि वह 7 नवंबर को दो मिनट के लिए ही आरोपित के साथ लिफ्ट के अंदर थी. पुलिस ने पीड़िता से कभी भी यह भी नहीं पूछा कि वे कौन से बटन थे जिन्हें दबाकर लिफ्ट के दरवाजे लगातार दो मिनट तक बंद रखने का आरोप उसने तरुण तेजपाल पर लगाया था. इसके अलावा पुलिस ने वह ईमेल भी जब्त नहीं की जो पीड़िता ने 15 नवंबर को इशान, शौगत और जी विष्णु को लिखी थी और जो अपराध के बारे में बताने वाला पीड़िता का पहला बयान था. और उसने जितनी भी मेलों को सबूत के तौर पर पेश किया उनमें से किसी को भी सीधा तहलका के सर्वर से डाउनलोड नहीं किया. उसने निखिल का बयान नहीं लिया और टिया तेजपाल का भी और न ही थिंक फेस्ट की प्रोडक्शन टीम के सदस्य कार्तिकेय का जिसके साथ पीड़िता 9 नवंबर की रात को होटल ग्रांड हयात में ही रुकी थी. यहां तक कि उसने अदालत के सामने मित्सुबिशी की उस लिफ्ट का मैन्युअल तक पेश नहीं किया कथित तौर पर जिसके दरवाजे को किसी आश्चर्यजनक तरीके से दो मिनट तक बंद करके पीड़िता पर यौन हमला किया गया था. उसने कभी पीड़िता से यह सवाल नहीं किया कि उसके बयानों में इतना विरोधाभास क्यों है.

और तरुण तेजपाल की लिखी उन दो मेलों का क्या जिनमें से एक उन्होंने पीड़िता को लिखी थी और दूसरी तहलका के स्टाफ को भेजी गई थी. उनके बारे में फैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए लिखा है कि ‘अगर पर्सनल टाइटल वाली ईमेल (जिसे तरुण ने पीड़िता को 20 नवंबर को लिखा था) को ऊपर दिये गये (सुप्रीम कोर्ट के) फैसले के प्रकाश में देखा जाए तो उसमें आरोपित द्वारा पीड़िता पर यौन हमला करने को लेकर दूर-दूर तक कोई स्वीकारोक्ति नहीं है’. (पृष्ठ 300) अदालत ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि साक्ष्यों से यह पता चलता है कि पीड़िता ने ‘यह दावा करके कि ऐसा करने से मामला खत्म हो जाएगा, तहलका की मैनेजिंग एडीटर शोमा चौधरी पर माफी के लिए दबाव बनाया. जबकि पीड़िता के वहाट्सएप रिकॉर्ड बताते हैं कि उसने अपने कई मित्रों और जानकारों को माफीनामा मिलते ही उसे सोशल मीडिया पर रिलीज करने के लिए तैयार कर रखा था. यह साफ है कि वादी ने पीडब्ल्यू 45 शोमा से आरोपित की माफी को इस मामले को सार्वजनिक करने से पहले हासिल किया था.’ (पृष्ठ 230)

अंत में एक छोटी सी बात जिसने शायद तरुण तेजपाल को पिछले साढ़े सात सालों में सबसे ज्यादा परेशान किया होगा. पीड़िता ने अपनी पहली शिकायत से लेकर पुलिस को दिये अपने बयान और अदालत तक में लगातार एक बात यह कही कि तरुण तेजपाल को वह बचपन से जानती थी और वे उसके लिए पिता सरीखे थे. यानी इसलिए उनका अपराध और पीड़िता का दुख और भी बड़ा था. लेकिन 2013 में ही तरुण के 50 साल का होने पर पीड़िता ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए जो मेल लिखा था उससे यह बात भी सही नही लगती है. इस मेल में पीड़िता ने साफ-साफ लिखा था कि वह पहली बार तरुण तेजपाल से तब मिली थी जब वह तहलका में काम करने लगी थी. (पृष्ठ 110)

(विकास बहुगुणा के सहयोग के साथ)

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