कोरोना वायरस से उपजे संकट ने मोदी सरकार को यह साबित करने का मौका दिया था कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाते वक्त उसने जो कहा था वह गलत नहीं था
सत्याग्रह ब्यूरो | 24 जुलाई 2020 | फोटो: पिक्साबे
पूरे देश में कोरोना वायरस के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और जम्मू-कश्मीर (जो कि अब एक केंद्र शासित राज्य है) में भी इन मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. यहां अब तक 15 हजार से ज्यादा कोरोना वायरस पॉज़िटिव मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें से करीब 12 हजार मामले कश्मीर घाटी के 10 जिलों में ही हैं. करीब पौने दो सौ लोगों ने इस बीमारी से अभी तक जम्मू-कश्मीर में अपनी जान गंवाई है.
केंद्र सरकार ने जब अनुच्छेद-370 को अप्रभावी करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का निर्णय लिया था तब उसकी ओर से कहा गया था कि इससे बेहतर शासन को सुनिश्चित करके राज्य का सही मायनों में विकास किया जा सकेगा. जानकारों के मुताबिक कोरोना संकट के समय मोदी सरकार के पास यह दिखाने का अवसर था कि अगस्त 2019 में उसने जो कहा था वह सही था. कहा गया कि अगर कोविड-19 के समय केंद्र सरकार थोड़ी सूझ-बूझ के साथ काम करेगी तो कश्मीर में मौजूद अविश्वास के माहौल को थोड़ा ठीक किया जा सकता है. लेकिन अगर राज्य के जमीनी हालात को आज देखें तो कश्मीर घाटी के लोग पिछले चार महीनों में नई दिल्ली के पास नहीं बल्कि उससे और दूर होते दिखाई देते हैं.
अगर कश्मीर घाटी में रहने वाले लोगों से बात करके उनके आक्रोश को समझने की कोशिश की जाये तो इस मुश्किल वक्त में भी दिल्ली से उनका इतना नाराज होना उतना चौंका देने वाली बात भी नहीं लगती है.
पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य में अभूतपूर्व लॉकडाउन के बीच देश के गृह मंत्री, अमित शाह ने संविधान के अनुच्छेद-370 को अप्रभावी बनाने का ऐलान किया था. यह अनुच्छेद पहले जम्मू-कश्मीर को भारत में एक विशेष स्थिति दिया करता था. लेकिन इसके बाद से देश का संविधान पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पर लागू हो गया.
इसके साथ-साथ भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य के दो टुकड़े करके लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र प्रशासित राज्यों में तब्दील कर दिया. इसके बाद कश्मीर घाटी में छह महीने से ज़्यादा तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही, दो महीने से ज़्यादा समय तक यहां पर फोन पूरी तरह से बंद रहे, छह महीनों से ज़्यादा समय तक कश्मीर के ज्यादातर राजनेता हिरासत में रहे (इनमें से कई अभी भी बंद ही हैं) और राज्य में 4जी मोबाइल इंटरनेट सेवा अभी तक बंद ही है.
‘इस सब के बीच जब कोरोना वायरस का आगमन हुआ तो लोगों ने यह सोचा कि शायद इस वजह से भारत सरकार की विशेष स्थिति को खत्म करने की कोशिशों और उसके स्वभाव में थोड़ी सी नरमी देखने को मिलेगी. लेकिन हुआ बिलकुल उल्टा. उसकी गतिविधियां कोरोना वायरस वाले लॉकडाउन के बीच और तेज़ हो गयीं’, दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविध्यालय में कश्मीर पर अनुसंधान कर रहे, बशारत अली, सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं. अली के मुताबिक भारत सरकार राज्य में कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन को कई तरीकों से अपने हितों को साधने के लिए इस्तेमाल कर रही है.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट (मूलनिवासी प्रमाणपत्र):
मई के महीने में कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर के नेतृत्व वाले प्रशासन ने लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किए जाने की घोषणा की. नए नियमों के अनुसार कोई भी ऐसा व्यक्ति जो जम्मू-कश्मीर में 15 साल से अधिक समय के लिए रहा हो, या राज्य में सात साल के लिए पढ़ा हो या फिर उसने दसवीं, बारहवीं की परीक्षा यहां से पास की हो, वह इस प्रमाण पत्र का हकदार हो जाता है.
पहले ऐसा नहीं था. पहले अनुच्छेद 35 ए के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा यह तय करती थी कि कौन इस राज्य का मूल निवासी है और कौन नहीं. लेकिन अब लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट ऑनलाइन मिलने लगा है.
‘यहां के लोगों को यह तो पता था कि अनुच्छेद-370 हटने के बाद यह सब ज़रूर होगा, लेकिन जिस वक़्त पूरा देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है उस वक़्त ऐसा करना लोगों के मन में भारत सरकार के इरादों को लेकर कई सवाल खड़े कर देता है’, श्रीनगर में काम कर रहे एक वरिष्ठ पत्रकार सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं. वे कहते हैं कि ऐसे समय पर जब कश्मीर में इंटरनेट अभी भी पूरी तरह से बहाल नहीं हुआ है और कोरोना वायरस के चलते लोगों को अपने घरों से निकलने की अनुमति नहीं है यह निर्णय लेना साफ-साफ दर्शाता है कि भारत सरकार का इरादा सिर्फ जम्मू-कश्मीर की ‘डेमोग्राफी’ को बदलना है.
‘जब पूरा प्रशासन एक बीमारी के खिलाफ लड़ने में व्यस्त हो, ऐसे समय पर तहसीलदारों पर यह दबाव डालना कि डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने में देर लगने की सूरत में उन पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगेगा और क्या दिखाता है’, वे पत्रकार नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर सत्याग्रह को बताते हैं.
आम लोगों से बात करें तो उनका भी यही मानना है.
‘हमारे पास इंटरनेट नहीं है, ऑनलाइन अप्लाई करने के लिए, हम बाहर नहीं जा सकते लॉकडाउन के चलते. और बाहर के लोग, जिनमें बाहर के ही नौकरशाह लोग शामिल हैं, आराम से इस सर्टिफिकेट के लिए ऑनलाइन अप्लाई कर रहे हैं’, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले से आने वाले 70 साल के एक दुकानदार ग़ुलाम मुहम्मद भट, ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
इस बात पर मई, जून के महीनों में कश्मीर के लोगों में खूब चर्चा हुई. अब बात पुरानी हो गयी है, लेकिन यह भाव कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक समझती है पुराना नहीं हुआ है. वह अब थोड़ा और मजबूत हो गया है और उसके सिर्फ यही एक कारण नही है.
पर्यटन, अमरनाथ यात्रा और बाहर के मजदूर
हाल ही में कोरोना वायरस के बढ़ते हुए मामलों के चलते कश्मीर में प्रशासन ने फिर से लॉकडाउन घोषित कर दिया. कई जिलों में दफा-144 लागू कर दी गई और लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने पर रोक लगा दी गयी. श्रीनगर, अनंतनाग, पुलवामा और कई अन्य जिलों में सड़कें बंद कर दी गयीं और उन पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गयी, ताकि लोग ज़्यादा लोग एक जगह से दूसरी जगह न जा सके.
प्रशासन के इन फैसलों का सब, हिचकिचाते हुए ही सही, पर स्वीकार कर रहे थे. लेकिन तभी प्रशासन के कुछ और निर्णय सामने आए जिन्होंने कश्मीर के लोगों में पहले से ही पनप रहे संदेह को और गहरा कर दिया. इसके बाद कश्मीर में लोग पूछ रहे थे कि अगर वे बाहर नहीं जा सकते, दुकानें नहीं खोल सकते, अपने काम काज पर नहीं जा सकते तो अमरनाथ यात्रियों को राज्य में आने देना कितना बुद्धिमानी का काम है.
‘मेरी दुकान पिछले लगभग एक साल से बंद ही पड़ी है. मैं अब इसे खोलने की कोशिश भी नहीं कर रहा हीं क्यूंकि महामारी फैली हुई है. लेकिन क्या महामारी के बीच अमरनाथ यात्रा की इजाज़त देना सही है?’ अनंतनाग जिले के पहलगाम में किराने की दुकान चलाने वाले, अली मुहम्मद शाह पूछते हैं.
हालांकि राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति को देखते हुए श्री अमरनाथ बोर्ड ने 21 जुलाई को एक बैठक कर इस साल की यात्रा स्थगित करने का फैसला ले लिया है, लेकिन इससे पहले स्थानीय लोगों के मन में जो भाव आ गया था वह शायद अभी रहने वाला है.
जम्मू-कश्मीर के प्रशासन ने कश्मीर में हवाई जहाज़ से आने वाले पर्यटकों के लिए भी अपने द्वार खोल दिये हैं और यह बात भी लोगों को काफी खल रही है, क्यूंकि अगस्त 2019 से लगभग कोई भी पर्यटक कश्मीर नहीं आया है.
‘अब कोरोना वायरस के बीच पर्यटकों को आने देना कौन सी समझदारी है? क्या यह सिर्फ यहां के लोगों को यह बताने के लिए किया जा रहा है कि कश्मीर कश्मीरियों का न रहकर भारत के अन्य राज्यों में बसे लोगों का हो गया है?’ बशारत अली पूछते हैं.
इसी बीच कश्मीर में कुछ क़ानूनों में भी बदलाव हुआ है जिसमें से एक यह है कि सुरक्षा बल अब अपनी छावनियों के बाहर भी, कुछ सामरिक स्थानों पर, निर्माण कार्य कर सकते हैं. यह अनुमति ‘कंट्रोल ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट-1988’ और ‘जेएंडके डेव्लपमेंट एक्ट-1970’ में संशोधनों के द्वारा दी गयी है. इसके साथ-साथ हजारों मजदूर भी भारत के अन्य राज्यों से कश्मीर की तरफ लाये जा रहे हैं. अगर सोशल मीडिया पर वाइरल हुए एक स्थानीय न्यूज चैनल – गुलिस्तान न्यूज – के वीडियो की मानें तो इन मजदूरों का कोरोना वाइरस टेस्ट भी नहीं किया जा रहा है.
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