‘प्रेम कैदी’ में नीली आंखों वाली गुड़िया सरीखी करिश्मा कपूर का आना बहुतों को सिर्फ नेपोटिज्म की देन लगी होगी
अंजलि मिश्रा | 25 जून 2022
21 जून, 1991 को यानी करिश्मा कपूर के सत्रहवें जन्मदिन से ठीक चार दिन पहले उनकी पहली फिल्म ‘प्रेम कैदी’ रिलीज हो चुकी थी. जैसा कि हमारे यहां होता है, तब भी पहली बार गुलाबी फ्रॉक में नीली आंखों वाली करिश्मा कपूर को सिल्वर स्क्रीन पर देखकर देखने वालों ने यह चर्चा जरूर की होगी कि बॉलीवुड में एक और गुड़िया सरीखी सुंदर हीरोइन आ गई है. हालांकि उस समय लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित और दिव्या भारती के बाद इस हीरोइन के पोस्टर भी लड़कों के कमरे में लगने वाले हैं. और हां, मीडिया में उन दिनों ये खबरें जरूर ही छपी होंगी कि पहली बार कपूर खानदान की कोई बेटी फिल्मों में काम करने जा रही है!
‘प्रेम कैदी’ में एक रईस बाप की जिद्दी बेटी बनकर जरूरत से ज्यादा एटीट्यूड दिखाने वाली करिश्मा कपूर बहुत से लोगों को उतनी ही क्यूट भी जरूर लगी होंगी. लेकिन उस समय उन्हें अभिनय की एबीसीडी तक ढंग से नहीं आई थी. इस फिल्म में करिश्मा को देखकर कोई इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि छह साल बाद वे ‘दिल तो पागल है’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतेंगी. इसके चलते, सिनेमा प्रेमियों ने एक और खूबसूरत और खानदानी चेहरा देने के लिए नेपोटिज्म को कोसा भी खूब होगा. इसके बावजूद ‘प्रेम कैदी’ में कुछेक दृश्य ऐसे जरूर हैं जिन्हें आज देखो तो एहसास होता है कि करिश्मा को कॉमेडी का ‘अआ इई उऊ ओ…’ जरूर आता था और यही बाद में गोविंदा के साथ आई उनकी फिल्मों राजा बाबू, कुली नं 1, साजन चले ससुराल में खुलकर नजर आता है.
‘प्रेम कैदी’ एक ऐसी फिल्म थी जिसमें अस्सी के दशक के सारे क्लीशे देखे जा सकते थे. इसलिए जैसी यह फिल्म थी उसमें काम करने वाली किसी भी हीरोइन का भविष्य इससे शुरू और खत्म भी माना जा सकता था. तिस पर फिल्म में उनके हीरो थे हरीश कुमार और निर्देशक थे के मुरली मोहन राव. हरीश कुमार की भी यह पहली फिल्म ही थी और इसके आगे उनका करियर कुछ चरित्र भूमिकाओं तक ही सीमित रहा और निर्देशक मुरली मोहन का करियर भी इसके बाद कुछेक सफल-असफल फिल्में बनाने में सिमट गया. अगर करिश्मा कपूर इस फिल्म में न होतीं तो शायद ही कोई इस फिल्म का नामलेवा होता, यह बात आज जितना जोर लगाकर कही जा सकती है, तब सोची भी नहीं जा सकती थी.
भारतीय अभिनेत्रियों के भरे-भरे बदन में कामुकता खोजने वाले भारतीय दर्शकों के एक बड़े हिस्से को तब करिश्मा कपूर की बॉडी-लैंग्वेज जरा मर्दाना लगी होगी. लेकिन बदलते दौर के साथ वे न सिर्फ निर्देशकों की बल्कि दर्शकों की भी पहली पसंद बन गईं. पहली ही फिल्म में वनपीस स्विमसूट में नजर आने वाली करिश्मा ने यह तो जरूर बता दिया था कि बोल्ड-ब्यूटी का टाइटल उनका है और आने वाले वक्त में वे फैशन और ग्लैमर के मामले में ट्रेंडसेटर होने जा रही हैं. अच्छे खासे फिगर के साथ लहराते बाल, नीली आंखें और गुलाबी-पतले होंठों का कॉम्बिनेशन, यानी वे अंतरराष्ट्रीय (या हॉलीवुड) मानकों के साथ-साथ सुंदर होने के परंपरागत भारतीय मानकों पर भी खरी उतरती थीं. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदी सिनेमा के लगातार बदलते दौर में भी करिश्मा कपूर ने बड़े परदे पर क्यों राज किया!
‘प्रेम कैदी’ घोर मसाला फिल्म थी इसलिए उसमें गाने खूब रखे गए थे. इन गानों में करिश्मा कपूर का बेहद सेक्सी डांस भी रखा गया था. हर पंद्रह मिनट पर आने वाले इन गानों में अपने सुंदर शरीर को पूरी एनर्जी और मस्ती से थिरकाकर वे किसी को भी दीवाना बना सकतीं थीं. इन गानों में उन्हें देखकर आपको दिल तो पागल है का वो रेज डांस परफॉर्मेंस याद आ जाता है, जिसमें उन्होंने माधुरी दीक्षित के साथ कॉम्पिटीशन किया था. करिश्मा के बेहतर अभिनेत्री होने से ज्यादा बेहतर डांसर होने की बात यह फिल्म ज्यादा जोर लगाकर कहती है. कुल मिलाकर, प्रेम कैदी यह तो नहीं कह पाती कि करिश्मा कपूर एक बेहद कमाल की अभिनेत्री होने जा रही हैं, लेकिन यह जरूर बता देती है कि यह लड़की यूं ही आकर खो जाने के लिए नहीं आई है.
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